"भलि छ्वीं -बत्थ "
पौड़ बटि ही निकल्द दगड्या, मिठ्ठू- मिठ्ठू पाणी रे
बिन अफूं म्वर्यां स्वर्ग नि मिल्दू ,कैर ना सुद्दि कि स्याणी रे ।
मीनत का करड़ा हथ्यूंन तू , जीवन की कूड़ी-बाड़ी बणै
सगोर का छप्यला भला ढुंग्योंन ,अपणी तू ब्यौहारी बणै
धर्ती मा औण सुफल ह्वे जावु गूणी ले इन क्वी गाणी रे ।
भली छ्वीं-बत्थ -कर्मों का रँगोंन, जीवन कि तिबारी सजै
क्वाँसो- सुकेला मन-मंदिर मा ,ईमान कि फूल-पाती चढ़ै जिकुड़ि कि तौली मा भ्वरि ले दगड्या प्यार-पिरेमौ पाणी रे ।
सुकेला विचारों का मोळ-माटन लीपि मनऽ चुलखाँदी रे
सुद्दि खत्येणि नि द्येयि दगड्या जीवन कि पणदारी रे
द्यखण-भलण सब दुनिया मा ,पण काणी छ्वीं नि लाणी रे ।
© संदीप रावत ,न्यू डांग ,श्रीनगर गढ़वाल ।