मेरी प्रकाशित पुस्तकें :-


(1) एक लपाग ( गढ़वाली कविता-गीत संग्रह)- समय साक्ष्य, (2) गढ़वाळि भाषा अर साहित्य कि विकास जात्रा (गढ़वाली भाषा साहित्य का ऐतिहासिक क्रम )-संदर्भ एवं शोधपरक पुस्तक - विन्सर प्रकाशन, (3) लोक का बाना (गढ़वाली आलेख संग्रह )- समय साक्ष्य, (4) उदरोळ ( गढ़वाली कथा संग्रह )- उत्कर्ष प्रकाशन ,मेरठ


Monday, February 21, 2022

'आखर चैरिटेबल ट्रस्ट ने मनाया अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस ' ©संदीप रावत, न्यू डांग, श्रीनगर गढ़वाल।

'आखर चैरिटेबल ट्रस्ट ने मनाया अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस '
              
श्रीनगर गढ़वाल (21 फरवरी 2022)- गढ़वाली भाषा -साहित्य के संरक्षण एवं सम्बर्धन हेतु प्रयासरत 'आखर चैरिटेबल ट्रस्ट' ने 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर ट्रस्ट के कार्यालय रावत, न्यू  डांग में कार्यक्रम आयोजित किया । इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि -हमारी मातृभाषा ही हमारी पहचान है । मातृभाषा के पक्ष में विचार रखते हुए रचनाकारों /वक़्ताओं ने गढ़वाली भाषा को बढ़ावा देने, नई पीढ़ी को अपनी मातृभाषा से जोड़ने एवं इस भाषा के संरक्षण पर जोर दिया।
      आखर ट्रस्ट द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन एवं कवयित्री अंशी कमल द्वारा गढ़वाली सरस्वती वंदना से हुई। कार्यक्रम में साहित्यकार एवं शिक्षाविद डॉ.अशोक बडोनी कहा कि - गढ़वाली भाषा के जो शब्द प्रचलन से बाहर हो रहे हैं उनको संरक्षित करने की आवश्यकता है।प्रत्येक को अपनी मातृभाषा के विकास व संरक्षण हेतु आगे आना ही होगा।'
      ट्रस्ट के उपाध्यक्ष एवं हे. न. ब. ग. विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रो. नागेंद्र रावत ने कहा कि -'अपनी मातृभाषा के प्रति हमें अपने दायित्वों को समझना होगा।एकल परिवार होने के कारण, दादा -दादी, नाना -नानी आदि के साथ नई पीढ़ी के न रह पाने के कारण भी आज अपनी मातृभाषा के प्रति हम सभी के दायित्व और भी बढ़ गए हैं । इस दिवस को मनाने का कारण यह है कि -कहीं ना कहीं आमजन अपनी दुधबोली से दूर हो रहा है।
       ट्रस्ट की कोषाध्यक्ष एवं कवयित्री रेखा चमोली ने कहा कि - " हमें मातृभाषा बचाने की पहल अपने घर से करनी होगी।हमारी मातृभाषा ही हमारी असली पहचान है । " योगा तृतीय सेमिस्टर की छात्रा श्वेता पंवार ने कहा कि - " हमें अपनी मातृभाषा में बात करते हुए शर्म महसूस नहीं होनी चाहिए एवं स्वयं ही बेझिझक होकर अपने से इसकी शुरुआत करनी चाहिए।अपनी मातृभाषा के संरक्षण एवं सम्बर्धन हेतु । "
      कार्यक्रम का संचालन करते हुए ट्रस्ट के अध्यक्ष संदीप रावत ने गढ़वाली भाषा की शब्द सामर्थ्य पर विचार रखे एवं कहा कि - अभिव्यक्ति की एक सशक्त माध्यम गढ़वाली भाषा के संरक्षण एवं सम्बर्धन की जिम्मेदारी हम सभी की बनती है। साथ ही संदीप रावत ने कहा कि - भाषाओं एवं बोलियों पर वैश्विक संकट को देखते हुए यूनेस्को ने वर्ष 2000 से प्रत्येक वर्ष 21फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने का निर्णय लिया था। मूल रूप में यह दिवस सारे विश्व में भाषा के पहले आंदोलन जो कि ढाका में बांग्ला भाषा के लिए हुआ था उसमें कई लोग शहीद हुए थे, तो उनकी याद में भी तब से यह दिवस मनाया जा रहा है। हम सभी को अपने दैनिक जीवन में इसे व्यवहार में लाना होगा।'
      इस अवसर पर कु.कंचन पंवार,अंशी कमल, रेखा चमोली आदि ने अपनी गढ़वाली रचनाएं प्रस्तुत की। कार्यक्रम में संजय रावत,मयंक पंवार, संगीता पंवार आदि भी उपस्थित थे। अंत में ट्रस्ट की मुख्य ट्रस्टी श्रीमती लक्ष्मी रावत ने कार्यक्रम में उपस्थित सभी अतिथियों का आभार व्यक्त किया।



Thursday, February 10, 2022

' उत्तराखंड में चुनाव में यहाँ की भाषाएं कभी कोई मुद्दा नहीं होतीं।' ------संदीप रावत (गढ़वाली भाषा -साहित्य सेवी )


' चुनाव में यहाँ की भाषाएं कभी कोई मुद्दा नहीं होतीं।'
          ©संदीप रावत (गढ़वाली भाषा -साहित्य सेवी ),
          अध्यक्ष -आखर चैरिटेबल ट्रस्ट।

    हम सभी को अपना मतदान अवश्य करना चाहिए एवं सही व ईमानदार प्रत्याशी को अपना मत देना चाहिए जो विकास की बात करे,साथ ही यहाँ की लोकसंस्कृति एवं यहाँ की बोली -भाषाओं के सम्बन्ध में भी बात करे । परन्तु ये बड़ा सोचनीय विषय है कि किसी भी राजनीतिक दल के घोषणा पत्र में गढ़वाली, कुमाऊँनी भाषाएं और लोक संस्कृति कभी भी मुद्दा होतीं ही नहीं । गढ़वाली भाषा एवं कुमाऊँनी भाषा में निरंतर साहित्य रचा जा रहा है। साहित्य अकादमी, नई दिल्ली ने इन भी इन भाषाओं को मान्यता दे रखी है और मानती है कि ये भाषाएं भाषा के मानचित्र या खाके पर फिट बैठती हैं। परन्तु उत्तराखंड राज्य में इन भाषाओं को द्वितीय राज भाषा का दर्जा भी नहीं मिला जबकि ये भाषाएं आठवीं अनुसूची में शामिल होने का हक़ रखती हैं।
        इन भाषाओं को मान्यता दिलवाने की बात कोई भी दल या नेता कभी नहीं करता।केवल वोटरों को रिझाने के लिए चुनाव के समय वोट के लिए कुछ नेता गढ़वाली या कुमाउंनी में जरूर भाषण देते हैं या यहाँ की मातृभाषाओं में लोगों से बात करते हैं। गढ़वाली गीतों या कुमाऊँनी के माध्यम से भी प्रत्याशियों का खूब प्रचार हो रहा है,पर न जाने क्यों भाषा का मुद्दा हर चुनाव में गायब रहता है।

कुछ पंक्तियां चुनाव पर --
       'चुनौ'
'कैकि होंदि जीत
अर कैकि होंदि हार,
जनता उनि पित्येंद -पिसेंद
सैंदी महंगै मार।
जितणौ बाद सब्यूंन सदानि
अपणि मनै कार,
तौंकि मवासि उब्बों उठदि
अर,जनता परैं भगार।'(वर्ष 2013
में प्रकाशित पुस्तक 'एक लपाग'से ©संदीप रावत, श्रीनगर )