मेरी प्रकाशित पुस्तकें :-


(1) एक लपाग ( गढ़वाली कविता-गीत संग्रह)- समय साक्ष्य, (2) गढ़वाळि भाषा अर साहित्य कि विकास जात्रा (गढ़वाली भाषा साहित्य का ऐतिहासिक क्रम )-संदर्भ एवं शोधपरक पुस्तक - विन्सर प्रकाशन, (3) लोक का बाना (गढ़वाली आलेख संग्रह )- समय साक्ष्य, (4) उदरोळ ( गढ़वाली कथा संग्रह )- उत्कर्ष प्रकाशन ,मेरठ


Sunday, December 27, 2020

Satire in Garhwali Poems by Sandeep Rawat -----Bhishma Kukreti Copyright © Bhishma Kukreti 24/4/2013

    Satire in Garhwali Poems by Sandeep Rawat


                                   Bhishma Kukreti
Copyright@ Bhishma Kukreti 24/4/2013


                    Sandeep Rawat is critics and poet of modern Garhwali literature.

Recently, Sandeep published his first Garhwali poetry collection ‘Ek Lapang’.

There are many satirical poems as Ultant, Vyvstha, Bhrastachar, Kab Ali bari , Ajkayalai halat,Ucchedi Bathaun, Kuttak, Cunau, Teen Bhai, March Fainal and many more in the collection.

 From the striking the culprit point of view, the Satirical Poems by Sandeep Rawat are sharp, middle and mild.  

 Sandeep is worried about the wrong happenings in the society as he dpicts that leech like worms are now stronger and are sucking the resources.

उलटंत  
 
गंडेळो  का सिंग पैना ह्वेगैनी 
जूंका का हडका कटगड़ा ह्वेगैनी  
 Sandeep shows his concern for the strong coalition between politics and administration for  looting India.
व्यवस्था
नेता अर अफसरों हाथ बिंडी खज्याणा छन
सरकर्या खजानों की
यूँ बांठी लगै खाणा छन
Sandeep is expert in using symbols for creating sharp satire
भ्रष्टाचार
भ्रष्टाचार
जन ल्वे को अंश ह्वेगे
Sandeep Rawat tactically uses animals as human beings for showing worsening India and is good example of personification in satirical poems.
कब आली बारी
कुकुर लग्यां छन पत्यला चटण पर
बिरळा  मिस्या छन थाळी  

अजक्यालै हालत
गळसट्या , गलादर अर चकडैत
आज संड मुसंड बण्या छन   
The poet uses symbols successfully for creating  desired images.
उछेदी बथों
मनखी आज उडणा छन
मनख्यात रखीं च ढुंगा मा

Most of Indians are aware that the government agencies do not spend money on developmental works till February but due to fear of not getting budget for next year, the government officials spend money on non developmental works to show the uses of budget.
मार्च फैनल
मार्च फैनल ऐग्ये भैजी 
मार्च फैनल ऐग्ये
सरकार बजट बल
सफाचट ह्वेगे 
Sandeep Rawat has been successful in ridiculing the wrongs.

 The poet is successful in showing the differences between incorrect and right through his satirical verses.

In his satirical poems, Rawat shows his concern for justice, morality and virtue.

Copyright@ Bhishma Kukreti 24/4/2013

---- Regards
Bhishma  Kukreti

Wednesday, December 23, 2020

"गढ़वाळि भाषा अर साहित्य की विकास जात्रा "एक उपादेय ग्रन्थ समीक्षक-- * डाॅ0 अचलानन्द जखमोला* (विन्सर पब्लिकेशन, देहरादून से वर्ष -2014 में प्रकाशित पुस्तक )


पुस्तक समीक्षा --
*गढ़वाळि भाषा अर  साहित्य की विकास जात्रा* एक उपादेय ग्रन्थ 
 *समीक्षक- डाॅ0 अचलानन्द जखमोला*
                 
                 अप्रितम अभिव्यंजनाशक्ति, प्रभावोत्पादकता, संप्रेषणीयता,   गूढ़ अर्थवता तथा अनेकार्थता को व्यक्त करने की अद्भुद क्षमता वाली गढ़वाली भाषा पुराकाल से ही अनेक विद्वतजनों के आकर्षण का केन्द्र बनी रही।
         सुप्रसिद्ध ग्रन्थ ‘काव्यमीमांसा’ के रचयिता काश्मीर निवासी आचार्य राजशेखर ने गढ़वाल क्षेत्र के भ्रमण के दौरान यहां के निवासियों को ‘सानुनासिक भाषिणः’ तथा यहां की बोलियों में कृदन्तों का प्राधान्य दखते हुए इन्हें ‘कृतप्रिया उदीच्या’ घोषित किया था। इस भाषा की महत्ता को महापंडित राहुल सांकृत्यायन् तथा शीर्षस्थ भाषाविज्ञों यथा- डाॅ0 धीरेन्द्र वर्मा, डाॅ0उदय नारायण तिवारी, डाॅ0 हरदेव बाहरी, डाॅ0 भोलाशंकर व्यास, डाॅ0 टी0 एन0 दवे आदि ने स्वीकारते हुए अपनी मान्यताएं प्रस्तुत की। व्याकरणविद् पादरी एस0एस0 केलाॅग को गढ़वाली की रूपगत विशिष्टताओं ने मुख्यतः प्रभावित किया। ‘गढ़वालि भाषा अर साहित्य कि विकास जात्रा ’के रचयिता श्री संदीप रावत मूलतः रसायन शास्त्र के अध्येयता और अध्यापक हैं। सौभाग्यवश उनका क्रियाक्षेत्र अधिकांशतः टिहरी, श्रीनगर और पौड़ी के समीपस्थ रहा है। स्मर्तव्य है कि श्रीनगर और टिहरी को दीर्घ अवधि तक गढ़वाल की राजधानी बनने का गौरव प्राप्त रहा। कालान्तर में यह श्रेय पौड़ी को भी मिला। बौद्धिक प्राचुर्य तथा सम्पर्क एंव साथ ही राजाश्रय की सुलभता से समस्त क्षेत्र की माटी साहित्यिक गतिविधियों के लिए उर्वरक सिद्ध हुई। स्वाभाविक था कि गढ़वाली की उत्कृष्ट प्रारंभिक रचनाएं इसी भू-भाग में पल्लवित और पुिष्पत हुईं। इस साहित्यिक बयार ने संदीप रावत के अन्तस में सुप्त रचनाकार को झंझावित किया। फलतः रसायन शास्त्री की लेखनी से उनका प्रथम काव्य संग्रह ‘एक लपाग’ उद्भूत हुआ, जिसका सर्वत्र स्वागत किया गया। ‘गढ़वाळि भाषा अर साहित्य कि विकास जात्रा’ उनकी द्वितीय गद्यमयी रचना है। क्योंकि पिछले दो-तीन दशकों से उत्तराखण्ड के साहित्य जगत में काव्य ग्रन्थों का सैलाब सा आ गया है। गद्य रचनाएं विरल ही मिलतीं हैं। गद्य ही भाषा का वास्तविक निकस याने कसौटी है-‘गद्य कवींना निकषं वदन्ति’ यह इस पुस्तक से सिद्ध हो जाता है।
       आकर्षक साज-सज्जा में संवरी 192 पृष्ठों की इस लुभावनी कृति की प्रभावी सामाग्री चार भागों में विभक्त है। प्रथम भाग गढ़वाली भाषा की विशिष्टताओं विषयक है। द्वितीय भाग में गढ़वाली भाषा के व्याकरण तथा भाषिक स्वरूप पर चर्चा है। पृष्ठ 69 से पृष्ठ 148 में समाहित तृतीय भाग ग्रंथ का महत्वपूर्ण अंश है जिसमें भाषा और साहित्य की विकास यात्रा सविस्तार एंव सोदाहरण वर्णित की गई है। अंतिम चतुर्थ अध्याय में गढ़वाली साहित्य की विधाओं एवं विशेषताओं का विवरण तथा मानकीकरण समबन्धी मान्यताओं का उल्लेख है। संक्षिप्ततः श्रमशील लेखक ने गढ़वालि भाषा तथा साहित्य के प्रायः सभी पक्षों पर पूर्व में किये गए अवदान का समाहार और एकीकरण प्रभावी शैली में करते हुए जिज्ञासु पाठकों के समक्ष एक उपादेय ग्रंथ प्रस्तुत किया है। पुस्तक का प्रमुख उद्देश्य गढ़वालि भाषा के विकास और समग्र प्रकाशित साहित्य पर प्रकाश डालना है। इन पक्षों पर पूर्व में भी अनेक विद्वानों ने श्लाघनीय कार्य किया। गढ़वाली बोलियों के ऐतिहासिक, भाषिक, शास्त्रीय, तात्विक, वैज्ञानिक, व्याकरणिक तथा व्यावहारिक, पक्षों के प्रति स्वातंत्रत्योत्तर काल के उपरान्त ही कुछ अनुसंधित्सुओं का ध्यान आकर्षित हो गया था जिनमें गोविन्द सिंह कण्डारी याने गोविन्द चातक-रवांल्टी बोली का लोकसाहित्य, जनार्दन प्रसाद काला -गढ़वाली भाषा और उसका लोकसाहित्य तथा गुणानन्द जुयाल-मध्य पहाड़ी गढ़वाली, कुमाउंनी का अनुशीलन शोध प्रबन्ध प्रमुखतः उल्लेख्य हैं जिनपर डाॅक्टरेट की डिग्रियां प्रदान की गईं। सत्तर के दशक में उत्तर प्रदेश शासन के प्रयास से डाॅ0 हरि दत्त भट्ट शैलेश द्वारा रचित ‘गढ़वाली भाषा और उसका साहित्य’ तथा स्वप्रेरणा से निर्मित अबोध बहुगुणा रचित ‘गाड म्यटेकि गंगा’ अपनी गुणवत्ता और परिपूर्णता के कारण स्वागत योग्य बने। गोविन्द चातक जी का गढ़वाली भाषा और साहित्य के प्रति समर्पण अनेक गवेषणात्मक आलेखों के अतरिक्त उनकी प्रकाशित दो पुस्तकों -‘मध्य पहाड़ी की भाषिक परम्परा और हिन्दी’ तथा ‘हिमालयी भाषाःसामथ्र्य और संवेदना’ से पता चलता है। शोधपरक ग्रन्थों में अनिल इबराल प्रणीत ‘गढ़वाली गद्य परम्परा’ तथा जगदम्बा प्रसाद कोटनाला कृत ‘गढ़वाली काव्य का उद्भव, विकास और वैशिष्ट्य’ क्रमशः 2007 व 2011 मे प्रकाशित विशेष उल्लेखनीय हैं। इनके अलावा अन्य विद्वानों द्वारा दिए गए अवदान का विवरण इस पुस्तक में मिल जाता है।
      लेखक ने गढ़वालि भाषा-साहित्य की विकास यात्रा को सात कालखण्डों मे वर्गीकृत किया है। ‘काल’ अथवा ‘युग’ मे वर्गीकरण सामान्यतः ‘आदि’ अथवा ‘आधुनिक’ को छोड़कर, अधिकांश लेखकों ने उस कालावधि में रचित साहित्य की विशिष्ट प्रवृति या प्रकृति अथवा उस पर प्रभाव डालने वाले महान साहित्य रचयिता के नाम पर आधारित किया है, यथा-वीरगाथाकाल, भक्तिकाल, श्रृंगारकाल, भारतेन्दु युग, क्लासिकल सज, रोमांटिक सज, पांथरी युग, सिंह युग आदि-आदि। संदीप रावत द्वारा समस्त गढ़वाली साहित्य को 25-25 वर्षों के समूह में वर्गीकृत करने का सरल उपाय अपनाया है। समीक्षाधीन ग्रन्थ में भाषा के ऐतिहासिक विकास क्रम मे समाचार पत्र-पत्रिकाओं एवं ब्यंग्य चित्र, चिट्ठी पत्री, पर्चा पोस्टर, इलेक्टानिक मीडिया, चलचित्र, पुरस्कार, सम्मान आदि के महत्व को उल्लिखित करना एक स्तुत्य प्रयास है। पुस्तक के अन्त में भाग चार के अन्तर्गत गढ़वाली भाषा के अति चर्चित, घपरौळी व चुनौतीपूर्ण विषय-मानकीकरण पर विवरण है। अन्य 17 मनीषियों के विचार उद्धृत करने के पश्चात लेखक स्वयं इस अन्तहीन विवाद में न फंसते हुए शान्ति सहित निकल गए कि ‘मानकीकरण कि बात त बादै बात छ। ’फलतः पुस्तक में वर्तनी और विन्यास समबन्धी व्यतिक्रम कुछ स्थलों पर दिखाई देता है। समबन्ध कारक निर्दिष्ट करने के लिए गढ़वाली भाषिक प्रवृति के अनुसार कहीं स्वर परिवर्तन का आश्रय लिया गया जैसे-साहित्यै, भाषै, भाषौ, तो अन्यत्र परसर्गों का जैसे-साहित्यक, साहित्य कि, भाषा कि। वैसे व्याकरणिक दृष्टि से दोनों सही हैं। लेखक ने पूर्ण प्रयास किया है कि समस्त पुस्तक में वर्तनी समबन्धी एकरूपता का परिपालन हो तथापि थोड़ी सी भा्रन्तियां रह गईं हैं। उच्चारण का अनुसरण करते हुए पुस्तक में भी कई स्थलों पर उदारता से हल् याने हलन्त का प्रयोग है, जैसे-शैलेश जीन्, पोथिक् समाीक्षा कैरिक्, मणदन्, जणदन्, शब्दोंक्, नदियोंम्, भाषौन्, सकेंद् आदि आदि। मेरा विनम्र सुझाव है कि हल् चिह्न का प्रयोग संसुक्ताक्षर तथा केवल उन्हीं शब्दों तक सीमित रखा जाय जहां इसके बिना अर्थ में भ्रम उत्पन्न होने की सम्भावना हो।
        समग्रतः श्री संदीप रावत ने बड़े मनोयोग, निष्ठा और श्रमशीलता से पुस्तक की रचना की है। गढ़वाली भाषा, साहित्य तथा रचनाकारों सम्बन्धी विस्तीर्ण सागर को लेखक ने इस गागर में समाविष्ट कर दिया है। अत्यधिक प्रयास करने के उपरान्त भी सुधी पाठक को ऐसे न्यूनतम अंश मिलेंगे जिन्हें अनावश्यक समझ कर हटाया जा सके। महाभारत के सम्बन्ध में कहा गया है -‘यदिहास्ति तदन्यत्र यन्नैहास्ति न तत् क्वचित़् ’ अर्थात जो इसमें उपलब्ध है वह अन्यत्र भी मिल सकता है परन्तु जो यहां नहीं है वह अन्य कहीं कदाचित ही मिलेगा। प्रस्तुत पुस्तक में अब तक के सभी साहितयकारों तथा कृतियों का विवरण प्रायः मिल जाता है, कोई विरला ही छूटा होगा। यह बति प्रश्ंसनीय प्रयास है। ऐसी संग्रहणीय एवं एवं उपादेय पुस्तक की रचना के लिए श्री संदीप रावत को हार्दिक बधाई ओर शुभांक्षसा। मैं उनके भावी साहित्यिक अवदान के लिए अभ्यर्थना करता हूँ । 
       पुस्तक - गढ़वाळि भाषा अर साहित्य कि विकास जात्रा
                                      लेखक- संदीप रावत
                                       मूल्य -  रु. 275 मात्र
                             प्रकाशक -  विनसर पब्लिकेशन,देहरादून
                              समीक्षक- डॉ0अचलानन्द जखमोला
नोट (1)-   सुप्रसिद्ध भाषाविद आदरणीय "डॉ.अचलान्द जखमोला  जी की  यह समीक्षा गढ़ जागर, शैलवाणी,  रिजनल रिपोर्टर ,चैनल माउंटेन आदि में प्रकाशित हुई । 
नोट (2)- पुस्तक प्राप्ति के स्थान -
   1- भट्ट ब्रदर्स देहरादून
   2- समय साक्ष्य देहरादून
   3- विन्सर पब्लिकेशन देहरादून
    4- ट्रांसमीडिया,श्रीनगर गढ़वाल (रेनबो पब्लिक स्कूल के सामने )
     5- जय अम्बे पुस्तक भण्डार ( अगस्त्यमुनि)
     6- रावत डिजिटल (Anoop Rawat ), इन्द्रापुरम, गाजियाबाद 
    7- संदीप रावत(मोबाइल -9411155059,   9720752367) श्रीनगर गढ़वाल

Tuesday, December 22, 2020

"मूर्धन्य लोक साहित्यकार डॉ. गोविन्द चातक जी कि जयन्ती(19 दिसंबर 2020) परैं वूं तै आखर समिति द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित " ------ संदीप रावत, न्यू डांग, श्रीनगर गढ़वाल

श्रीनगर गढ़वाल : 
 "मूर्धन्य  लोक साहित्यकार डॉ. गोविन्द चातक जी कि जयन्ती परैं वूं तै " आखर " समिति द्वारा  श्रद्धांजलि अर्पित "
      मूर्धन्य लोक साहित्यकार डॉ. गोविन्द चातक जी कि जयन्ती परैं  19 दिसम्बर 2020 खुणी    " आखर " समिति का सदस्यों द्वारा स्थानीय  डालमिया धर्मशाला (बद्री -केदार धर्मशाला ), श्रीनगर गढ़वाल मा सूक्ष्म कार्यक्रम आयोजित कैरिक   वूं तै श्रद्धांजलि दिये गे । 
      ये सूक्ष्म कार्यक्रमै  सुर्वात डॉ. चातक जी  का चित्र परैं माल्यार्पण अर फूल पाति  चढ़ैकि ह्वे।   बैठक मा वक्ताओंन लोक साहित्य अर  गढ़वाळि साहित्य मा   "डॉ. चातक " जीक महत्वपूर्ण योगदान पर चर्चा करी  । "आखर "समिति का अध्यक्ष   संदीप रावतन  बोलि कि - "कोरोना  (कोविड -19)  वजौ से आज  19 दिसंबर 2020  खुणी   डॉ. गोविन्द चातक जी की जयन्ती परै  "आखर "समिति  द्वारा  श्रद्धांजलि स्वरूप ही यो सूक्ष्म  कार्यक्रम  होणु  छ।  "डॉ. गोविन्द चातक स्मृति  व्याख्यान माला अर सम्मान समारोह "  आयोजित कन्नू  संभव नी ह्वे  सकी ।  डॉ. गोविन्द चातक जी जन  विभूतियों तैं याद कर्ये जाण भौत जरूरी छ ,जौंन लोक साहित्य  अर गढ़वाळि साहित्य मा अपणो अमूल्य योगदान दे । 
      मुकेश काला जीन बोली कि - "  स्थिति सामान्य होंण परै  "आखर" द्वारा आयोजित समारोह /कार्यक्रम मा या जो बि उचित होलु   ये सालौ  आखर सम्मान यानि  "डॉ.गोविन्द चातक स्मृति आखर साहित्य सम्मान- वर्ष, 2020 " श्री ललित केशवान  जी तैं दिये जालु। आखर समिति कि तरफां बटी  सम्मानित होण वळा वरिष्ठ साहित्यकार  श्री ललित केशवान  जी तैं वूंन हार्दिक बधै  दे। मुकेश काला जीन यो बि  बोली कि - आखर समिति अपणा  हिसाबन  नई सोच का दगड़ा काम कन्नी च। वूंन आखर का उपस्थित सदस्यों आभार बि व्यक्त करी। 
     डॉ. गोविन्द चातक जी कि जयन्ती परैं  ये सूक्ष्म समारोह मा वूं तैं फूल पाति अर्पित कन्न वळों मा "आखर " समिति का   श्री मुकेश काला जी,  श्री  सौरभ बिष्ट जी, श्री संदीप रावत, मयंक पंवार जी, श्रीमती अंजना घिल्डीयाल जी,  श्रीमती अनीता काला जी , श्रीमती बविता थपलियाल  मैठाणी जी,. श्रीमती रेखा चमोली जी छा।  श्रीमती बवीता थपलियाल मैठाणी जीन ये अवसर परैं  लोकगीत बि सुणायि।  संचालन संदीप रावतन करी। 
     
                                 
                          
                 

Friday, December 18, 2020

" गढ़वाली लोक साहित्य के पहले संग्रहकर्ता एवं अनुवादक थे मूर्धन्य लोक साहित्यकार डॉ. गोविन्द चातक जी " ---- संदीप रावत, न्यू डांग, श्रीनगर गढ़वाल।

  " गढ़वाली  लोक साहित्य के पहले  संग्रहकर्ता एवं अनुवादक थे   मूर्धन्य लोक साहित्यकार  डॉ. गोविन्द चातक जी  "    ----  संदीप रावत 

         मूर्धन्य लोक साहित्यकार  डाॅ. गोविंद चातक जी  का जन्म 19 दिसम्बर, 1933 को ग्राम-सरकासैंणी (निकट - मोलधार ) पट्टी- लोस्तु -बडियारगढ़ , टिहरी गढ़वाल में  हुआ था।  इनके पिताजी स्व. धाम सिंह कंडारी  जी स्कूल में अध्यापक थे एवं माता जी स्व. चंद्रा देवी जी ग्रहणी थीं।  आछरीखुंट   से दर्जा 4 पास करने के बाद वे पिता के साथ मसूरी आ गये। बचपन से ही वे लिखने-पढ़ने में बहुत  अच्छे थे। 4-5 दिन पैदल मार्ग से वे मसूरी आये थे  और दर्जा 6 में उनका एडमिशन हुआ और  घनानंद इंटर कालेज, मसूरी से इंटरमीडिएट  किया। घनानंद इंटर कालेज, मसूरी  में  डॉ.चातक जी को उनके शिक्षक,प्रसिद्ध लेखक  शंभु प्रसाद बहुगुणा जी  ने उनकी  साहित्यिक अभिरुचि को आगे बढ़ाने में बहुत योगदान दिया।
       डॉ.गोविन्द  सिंह कंडारी जी ने अपना नाम "गोविन्द चातक " रखा  । ‘चातक पक्षी’ की तरह उनमें साहित्य सजृन की ‘प्यास’ सदैव रही।  किशोरावस्था से ही उनकी कविताएं  व कहानी विभिन्न   पत्र-पत्रिकाओं में छपने लगीं थी। घनानंद इंटर कालेज, मसूरी से इंटरमीडिएट करने के उपरांत स्नातक की पढ़ाई इलाहबाद विश्वविद्यालय से की। इलाहबाद में  उनका संपर्क मोहन उप्रेती जी, बृजेन्द्रलाल शाह,  रमा प्रसाद घील्डीयाल 'पहाड़ी ', भजन सिंह 'सिंह ',  केशव धुलिया, इलाचंद्र जोशी आदि प्रतिभाओं  से हुआ।
     डाॅ. गोविन्द चातक जी  ने MA आगरा विश्वविद्यालय से किया।  फिर " गढ़वाली की उपबोलियां  व उसके लोकगीत " विषय पर आगरा विश्वविद्यालय से ही Ph.D की और लोक साहित्य में D.Lit.की उपाधि प्राप्त की। दिल्ली में   All India Radio (Drama Section ) में
नौकरी करने के  पश्चात् "Rajdhani College, Dehli " में  हिंदी के प्राध्यापक बने और रीड़र के पद से सेवानिवृत्त हुए। 9 जून, 2007 को उनका देहान्त हुआ ।
        डाॅ. गोविन्द चातक जी की  25 किताबें प्रकाशित हुईं । वर्ष 1955

में प्रकाशित उनकी ‘गढ़वाली लोक गीत’  से लेकर  'गढ़वाली लोक गाथाएं’ उत्तराखंड की लोक कथाएं’, ‘गढ़वाली लोक गीतः एक सांस्कृतिक अध्ययन’, ‘मध्य पहाड़ी का भाषा शास्त्रीय अध्ययन’, भारतीय लोक संस्कृति का संदर्भः मध्य हिमालय , पर्यावरण और संस्कृति का संकट ,  आदि  उनकी  लोक साहित्य, लोक संस्कृति एवं  भाषा पर प्रमुख पुस्तकें  हैं।
     डाॅ. गोविन्द चातक जी ने  गाँव -गाँव जाकर  लोक साहित्य का संग्रह किया। असाधारण प्रतिभा के बावजूद वे सामान्य रूप से और बिल्कुल साधारण रूप से आम लोगों /गाँव के लोगों से मिलते थे, उनके बीच रहते थे। उन्होंने लोकसाहित्य पर माइक्रो लेवल पर सोचा और  काम किया। 

     डॉ. गोविन्द चातक जी   दिल्ली जैसी  महानगरीय जिन्दगी को छोड़कर वापस  गढ़वाल में ही रहना चाहते थे। गढ़वाल विश्वविद्यालय के शुरुआती समय में वे "हिंदी विभाग" में आना चाहते थे, परन्तु ऐसा हो नहीं पाया। दिल्ली विश्वविद्यालय से अवकाशप्राप्त होने के बाद डॉ. चातक जी ने श्रीकोट, श्रीनगर (गढ़वाल) में निवास हेतु 'देवधाम कुटी' बनाई। परन्तु उन्हें पुनः उन्हें दिल्ली में ही रहना पड़ा। 

              गढ़वाली  लोक साहित्य के पहिले संग्रहकर्ता एवं अनुवादक   लोक साहित्य अर संस्कृति के  गम्भीर अध्येता -शोधार्थी , हिंदी के  सुप्रसिद्ध नाट्यालोचक , नाटककार स्व. डॉ गोविन्द चातक जी को  उनकी  जयन्ती के सुअवसर  पर सादर श्रद्धा सुमन अर्पित। 🙏🙏🙏
                                  संदीप रावत
                            अध्यक्ष - आखर समिति
                                    श्रीनगर गढ़वाल।

                    


Wednesday, December 16, 2020

गढ़वाली साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर एवं शिक्षक महेशानन्द जी (पौड़ी ) द्वारा " गढ़वाळि भाषा अर साहित्य कि विकास जात्रा " की समीक्षा..

  "गढ़वाळि भाषा अर साहित्य कि विकास जात्रा " इत्यासकार- संदीप रावत
(क्या च यीं किताबा भित्र ? )
                      समीक्षक - महेशानन्द ( पौड़ी )
     संदीप रावत जी कु जलम ह्वा 30 जून 1972 म्. गौं अलखेतू (कसाणी) पोखड़ा, पौड़ी गढ़वाल. आपन एम0एस0सी0 रसायन विज्ञान बटि कैरि. बी0एड0 कऽ दग्ड़ा आप संगीत प्रभाकर बि छयाँ. रसायन विग्याना जणगूर संदीप रावत जी गढ्वळि साहित्या तोक(क्षेत्र) मा एक गीतकार, कबितेरा भौ मा जण्य-पछ्यण्ये जंदन. वूंकि पैलि किताब च- ‘‘एक लपाग’’ (गीत कविता संग्रै), दुस्रि किताब च- ‘‘गढ़वाळि भाषा अर साहित्य कि विकास जात्रा’’ (एक ऐतिहासिक समालोचनात्मक पुस्तिका), तिस्रि किताब- ‘‘लोक का बाना’’ (निबंध संग्रै) चौथि पोथि च- ‘‘उदरोळ’’ (कहानी संग्रै) अर पाँचवीं किताब- ‘‘तु हिटदि जा’’ (गीत संग्रै)
   संदीप जी कु सांसब्वळु (साहसकि) काम च- ‘‘गढ़वाळि भाषा अर वींकि साहित्ये विकास जात्रौ चौबुट-चाबटी इकबट कन.‘‘ य भारि असौंगि धाण छै. यीं किताबै जतगा बि पुलबैं कराँ हम, कमती च. इत्यास लिखण क्वीं सौंगि धांण नी. इत्यास लिखण वळु लिख्वार एक न्यायाधीस हूँद. इत्यासकार जु धांणू थैं मड़कै-मुड़कैकि नि ल्हाउन, जु सकळु च वे सणि ऐन-सैन ल्येखि द्याउन त ऐथरै छ्वाळ्यू खुण वु एक सैन्वर्यू सि बाठु ह्वे जांद. 
     याँकै लब्ध भीष्म कुकरेती जी संदीप जी कि पुलबैं मा यीं किताबम् लिखणा छन- ‘‘संदीप पैला इना साहित्यकार छन जौंन एक ही पोथि मा समग्र रूप से गढ़वाळि भासा मा सब्बि बिधौं जन कि- भाषा विज्ञान, पद्य/काब्य, कथा, व्यंग चित्र, व्यंग, चिट्ठी-पत्री, समालोचना जन बिधों को इतिहास इकबटोळ कार, समालोचना ल्याख. यानि कि संदीप आधिकारिक रूप से पहला साहित्यकार छन जौंन सब्बि बिधौं को ‘‘क्रिटिकल हिस्ट्री ऑफ गढ़वाली’’ की पोथि ‘‘गढ़वाळि भासा अर साहित्य कि विकास जात्रा’’ गढ़वाळि मा छाप.’’ भीष्म कुकरेती जीन् संदीपै गढ़वळि साहित्ये अन्वार डेविड डाइसेस, डॉ0 फ्रेडिरिक बियालो, फ्रेडिरिक ओटो व जार्ज कॉक्स, जार्ज सेंट्सबरी जना बिज्जाम बिद्यसि लिख्वारू फर सुबरा (सुशोभित की).
     जक्ख मनिख रांदु ह्वलु वुक्ख भासा बि जलम ल्हालि. यु परकिरत्यु नियम च. खुरगुदन्यू (खोज का) एक सवाल यौ च कि डौंरौ (वाद्य यंत्र) जलम् कक्ख ह्वे ह्वलु. डौंर दग्ड़ि थकुलि बजाणौ रिवाज कब बटि ह्वा; डौंर दग्ड़ि थकुलि बजये जांद. थकुलि कांसी हूंद. कांसी थकुलि थैं लखड़न बजा त् वाँकि छाळि बाच नि आंद. कांसी थकुलि बजाणु जड़ौ (बारह सिंगा) कु सिंग चयेंद. जड़ौ कऽ सिंगन जब कांसी थकुलि बजए जांद तब वऽ छणकदि च. ह्वे सकद कि डौंर-थकुलि उत्तराखंडि आदिवास्यूँ कु बाद्य यंत्र रै हो. जौं आदिवास्यूँ खुण हम नाग, जग्स (यक्ष) कोल, भील, किरात, तंगण, कुलिंद, पुलिंद बोलि दिंदाँ. बुनौ न्यूडु यौ च कि जु जागर, धुंयेळ, मांगळ गीत, थड़्य गीत जौं मा चौंफळा, तांदि, चांचरि, झैमैको, दखै-सौं अर छोपदि गीत छन. झुमैला अर द्यूड़ा जु कि डांडौं-सार्यूँ लगए जंदन; वूंकि रंचना तै जुग बटि हूंद आ जु कि अणलिख्याँ साहित्य मा छन. आणा, मैणा, पखणा अर भ्वींणा बि तै जुग बटि बण्द ऐनि जौं थैं हम मुखागर अंठम् धैरी आणा छाँ. रौखळि, अड़दासा रंचनाकार कु रै ह्वला ?
  संदीप रावत यीं कितबी पैलि वाड़ि कऽ दुस्रा अध्याय (गढ़वाळि भाषा) मा लिखणा छन- ‘‘ब्वले जै सकेंद कि गढ़वाळि भाषा एक अलग भाषा छै पैली बटि जैंको असतित्व साख्यूँ पैली बटि छ......जब राजा कनकपाल ऐनि यख या राजा अजयपालन् पैली देवलगढ़ अर फिर श्रीनगर राजधानी बणै छै त् वो अफू दगड़ि गढ़वाळि भाषा थोड़ा ल्है होला ? गढ़वाळि भाषा त् पैली बटि रै होलि यख, बस ईं भाषौ रूप कन रै होळू या स्वचणै बात छ अर सवाल बि छ.’’ 
     हम थैं गढ्वळि भासै वऽ तणकुलि पखण पोड़लि ज्व भौत गैरि खाड पौंछि ग्या. खतऽखति दौंपुड़ा (मैदानी भागों के) मनिख इक्ख आंद ग्येनि अर गढ्वळि भासै अन्वार सौंटळेण (बदलने लगी) बैठि ग्या. एक बात संदीप रावत ठिक लिखणा छन कि गढ्वळि अर कुमौनि पैलि एक्कि भासा रै ह्वलि. राजों कऽ जुग मा जैकु खुंख्रु तैकु लग्वठ्या वळा किस्सा रैनि. इलै यि भासा दुबंल्या ह्वे ग्येनि. 
     यीं कितबी पवांणम् गढ्वळि भासा जणगूर शिवराज सिंह ‘निःसंग' जी लिखणा छन कि- ‘‘गढ़वाळि साहित्ये रचना की शुर्वात कब अर कनक्वे ह्वे येको ठीक-ठीक पता नि चली सकद, किलैकि गढ़वाळ मा 9वीं, 10वीं, 14वीं, 15वीं अर 18वीं सदी मा विनासकारी भ्वींचळौं का कारण जो तहस-नहस ह्वे वामा वे काल को साहित्य बि धरती की गोद मा समै गै.’’ तौबि हम्मा जु मुखागर छौ वु, अज्यूं बि ज्यूँद च. तै जुग मा एक हूँदि छै कथगुलि. ज्व लुक्खू सरेल बिळमाणु कथ्था सुणांदि छै. वूँ कथगुल्यूँन झणि कतगा कथ्था गैंठ्येनि. अनपढ़ छा वु. वून एक-से-एक रंगतदार कथ्था मिसै द्येनि. अमणि हम वूँ कथ्थों खुण लोककथा बुलदाँ. वूँकि रंची कथ्था हम मा बचीं रै ग्येनि, वूँ साहित्यकार्वा नौ कु बार-भेद-पताळ हर्चि.
शिवराज सिंह निःसंग जी लिखणा छन कि- गढ़वाळि साहित्य का इतिहास मा गढ़वाळि भासा अर साहित्य कि छाळ-छांट कन्न वळी पोथ्यूं मा अवोध बंधु बहुगुणा कि ‘‘गाड म्यटेकि गंगा’’ अर शैलवाणी, डॉ0 हरिदत्त भट्ट शैलेश कि हिन्दी मा लेखीं पोथि ‘‘गढ़वाळि भाषा और उसका साहित्य’’ प्रमुख छन. अर डॉ0 जगदम्बा कोटनाला कि गढ़वाळि पद्य पर ‘‘गढ़वाळि काव्य का उद्भव, विकास और वैशिष्ट्य’’ हिन्दी मा लेखीं शोधपरख पोथि छपेनी. अब यीं कड़ी मा संदीप रावत कि या गढ़वाळि साहित्य मा अपणी अलग तरौं कि विवेच्य अर ऐतिहासिक पोथि- ‘‘गढ़वाळि भाषा अर साहित्य कि विकास जात्रा’’ बि जुड़ी गे.’’
‘‘गढ़वाळि भाषा अर साहित्य कि विकास जात्रा’’ गढ़वाळि साहित्य मा एक मील स्तम्भ च इन भीष्म कुकरेती जी लिखणा छन. खोज कन वळा नया लिख्वारू खुण य किताब अछीकि एक सौंगु सि बाठु जन च. यीं किताबम् नया पुरणा सौब लिख्वारा बारा मा लिख्यूँ च. गढ्वळिम् एक भ्वीणु (पहेली) इन च- जैंति हे, जैंती, मि मैला मुलुक लागु, म्यारा नौनौं बि सैंति. याँकु मतलब च कि हे धरती, हे धरती, मि अगने बढणू छौं, म्यारा फल/सब्जी थैं सैंतणी रै. यीं पहेल्यू उत्तर च- लगुलु. साहित्यकारू थैं बि यीं पहेली से आणु (शिक्षा) ल्हीण चयेंद कि हम साहित्य थैं लेकि ऐथर त जाणा छाँ पण जु पैथर छुटणू च, वे बि सैंकि रखां. इन नि हो कि हम धुद्याट कै अटगणा राँ अर पैथर बुसकंत फैलेणि रौ. इलै जु साहित्य कु इत्यास लिखणा छन वूँकि पीठिम् साबास्या हत एक न बिछक हूण चयेणा छन. ये कारिज मा संदीप रावतै भौत बड़ि सहेल मने जालि.
     यीं किताबौ हैलु-मैलु (बनाउ-श्रृंगार) संदीप रावतौ अनमनि भाँत्यू कर्यूँ च. पैलि वाड़ि बटि दिखेंद- ‘‘अग्याळ’’. अग्याळम् गढ्वळि भासा बारामा लिख्यूँ च कि य भासा कन च क्या च, यींकि लिपि क्या च, य भासा मनिखा ज्यू मा उबडदा उमाळू थैं बिंगाणै कतगा सक्य रखद. भौत निसाबै बात बुलीं च संदीप जी कि हिन्दि से पुरणु छ गढ़वळि भासौ इत्यास. पैलि गढ्वळ्यू खुण क्य बुलदा छा? कनकै यीं भासौ नौ गढ्वळि पोड़ि ? भासा क्या च अर बोलि क्या च ? क्य यीं भासौ जलम् संसकिरित बटि ह्वे ह्वलु ?एक सरल सि सवाल कैकऽ बि घटपिंडा मा उबडि सकद. जैकु जबाब संदीपौ कुछ इन दियूँ च कि कै बि बोलि-भासा कै हैंकि भासा से पैदा नि हूँद, हौरि भासौं कु वीं पर प्रभाव प्वड़द. संदीप यीं वाड़्या तिस्रा अध्याय- ‘‘गढ़वाळि भासा कि खासियत अर प्रकृति’’ मा लिखणा छन कि विशेष भासा छ गढ़वाळि. इनि अंगळति भासै लिपि क्या च ? क्य कै भासौ खुण क्वी नै लिपि बणाणै जर्वत ह्वे सकद ? फी भासै कुछ खास्यत हुंदन. गढ्वळि भासै क्य खास्यत ह्वलि ? यीं भासा दगड़्य कु-कु ह्वला ? गढ्वळि भासौ सब्द भकार कतगा सगंढ (विशाल) ह्वलु ? कौं-कौं भासौं कऽ सब्द यीं भासा मा रळ्याँ छन ? यूँ सवाल्वा जबाब बंचदरा ये अध्याय मा बांचि सकदन. यीं वाड़्यू निमड़ौंदु अध्याय च- ‘‘ज्यूंदा दस्तावेज छन आणा-पखाणा.’’ मि यूँ आणा-पखणों थैं गढ्वळि भासा ग्हैंणा मनदु. कुछ पखणौं बटि सड़्याण बि आंद. हम थैं वूं थैं फुंड चुटै दीण चयेंद. ऐतिहासिक पखणा खैड़ै सि कड़ाक जन छन. यि पखणा चर-चर-पंच-पंच सब्दूं से मिली बण्याँ छन पण सगळ्यू इत्यास यूँ सब्दू मा कीटि-खूमी भुर्यूँ च. 
गढ़वाळि भासा अर साहित्य की विकास जात्रै दुस्रि वाड़ि बटि चुळ-चुळ दिखेंद- गढ्वळि भासौ ब्याकरण. कौं-कौं लिख्वारुन यीं भासा ब्याकरण फर धाण सरा ? यीं भासा ब्याकरणौ कनु सलपट च ? क्य यीं भासौ ब्याकरण हिन्दि भासा ब्याकरण जन च ? गढ्वळि भासा ब्याकरणिक तत्व कु-कु छन ? जना सवालू जबाब जण्णू खुणै यीं वाड़ि बटि दिखण पोड़लु. 
   तिस्रि वाड़ि नी, भरि-भारी मोरि च. यीं मोरि बटि गढ्वळि भासै चौचक दुफ्रा अपड़ा सेळा घामै निवति सि दींद चितएंद. गढ्वळि भासा साहित्यौ समोदर को च ? गढ्वळि भासौ पैलु कालखंड कु छौ ? खंदलेख, घांडलेख, तामपतर, दानपतर, राजौं कऽ फरमान यि सौब यीं भासै कतगा छाँट-निराळ कर्दन ? यीं भासौ दुस्रु, तिस्रु, चौथु, पाँचौं, छटौं, सातौं कालखंड कु छौ ? यूँ कालखंडौं कऽ लिख्वार कु-कु छा, जौंन यीं भासै पुट्गि भुन्नै ताणि मरिनि ? वून कौं-कौं बिधौं मा अपड़ु सल-सगोर दिखा ? वूँ कितब्यूँ कऽ क्य-क्य नौ छन ? सन् 2000 बटि अजि तकै कु-कु किताब छपेनि ? सब्यूँ कु लेखा-जोखा यीं किताबम् सैंक्यूँ च. यांका दगड़ा पतर-पतरिकौं कि टेकणू कु बि यीं भासा थैं जंके कि रखणम् ताण मरीं रै. वु कु पतरिका छै ? 
यीं पोथी चौथि अर निमड़ौंद वाड़ि च- ‘‘गढ़वाळि साहित्ये विधा अर विशेषता’’ याँ बांची हम बींगि सकदाँ कि गढ्वळि भासा मा कतगा अनुवाद, कतगा कविता संग्रै, कतगा कहानि संग्रै, कतगा व्यंग्य, कतगा उपन्यास, कतगा लोककथा अजि तकै छपे ह्वलि, वाँ कऽ बारा मा यीं किताबम् सुबद्यान कै लिख्यूँ च. गढ्वळि पिक्चरू बगत नि बिस्रे सकेंद. जबरि जग्वाळ पिक्चर आ, सरेलम् भरि छपछपि पोडि छै. भासै उन्यत्यू खुण यूं धांणू कु हूण जरूरी च.
    एक भारि गरू सवाल यीं भासौ मानकिकरणौ च. जै खुण हम पक्यूँ पिसुड़ु बुलां त् अंगळ्ति बात नि हो. ये पक्याँ पिसुड़ा थैं जरा ठसोळा, इनु बिबलाट मचलू कि भासै नन्नि मोरि जालि. भुला संदीप रावतन् सैज से अपड़ि धाण सरा. गूदन धाण सरा त् धांण अर्खत नि जांद. वून मानकीकरण कऽ बारा मा जु-जु जन बखद ग्या, तन-तन ऐन-सैन लेखी धैर द्या. संदीप भुला मानकिकरणा फैमळा मा नि पुड़िनि. एक भला समालोचक कऽ गुण यामि दिखे जंदन. 
     कुम्मुर सि करकण वळि बात यीं किताबै या च कि म्यारा सुण-दिखण्म इन आ कि अमेरिकौ एक मनिख जै कु नौ स्टीफन फ्यौल च अर वेन अपड़ु नौ छूड़ू गढ्वळिम् लपतै कि फ्यौंलि दास धैरि द्या. वु छूड़ि गढ्वळि बुल्द. फ्यौंलि दासौ गुरु च सोहन लाल. सगोरु लाल जी खाळ्यूँ डांडा, पसुंडखाळ, पौडिम् रांदा छा. यूँकि जागर नजिबाबाद रेडियो स्टेसन बटि लौंकिद छै. कनि गळि अर कनि भासा! जु नास्तिक बि रै ह्वलु वे फर बि वु दिब्ता गाडि दींदा छा. संतोष खेतवाल जीन् बि गढ्वळि गित्तू गैकि गढ्वळि भासै पुट्गि भोरि. जगदीश बगरोळो नौ कु बिस्रि सकद ? घनानंद खिगताट रस कऽ जाजलि मनिख छन. किसना बगोट एक इना टौकैकार (व्यंग्यकार) छन जु मनिख कऽ जिकुड़ा भित्र खिबळाट कै दिंदन. भौत नौ छन जु एक दाँ बिस्रे ग्येनि त् फिर बिस्रयाँयि रै जाला. यूँ थैं बि हम जगा दींद जाँ. 
     संदीप रावत कु यीं किताब लिखण्म्, छपाण्म् कतगा सरेल पित्ये ह्वलु, कतगा बेळि खपि ह्वलि, इन मि भनकै जण्दु. साहित्य लिखण क्वी सौंगि-सराक नी. भौत खैरि खाण पुड़दन. मि संदीपै उन्यती भलि कंगस्य कनू छौं कि वु इन्नि गढ्वळि भासै स्यव्वा कना रावुन। 

Monday, December 14, 2020

"वरिष्ठ एवं सुप्रसिद्ध गढ़वाली साहित्यकार श्री ललित केशवान जी को दिया जाएगा " डॉ.गोविन्द चातक स्मृति आखर साहित्य सम्मान- वर्ष 2020" ----- संदीप रावत, श्रीनगर गढ़वाल।

 "वरिष्ठ एवं सुप्रसिद्ध    गढ़वाली साहित्यकार श्रद्धेय श्री ललित केशवान जी को दिया जाएगा " डॉ.गोविन्द चातक स्मृति आखर साहित्य सम्मान- वर्ष 2020"
      सर्व विदित है कि "आखर "समिति,श्रीनगर गढ़वाल द्वारा वर्ष 19 दिसम्बर 2017 से गढ़वाली भाषा व लोकसाहित्य के मूर्धन्य साहित्यकार डॉ. गोविन्द चातक जी की स्मृति में उनकी जयन्ती पर एक सफल विचार गोष्ठी और परिचर्चा का आयोजन शुरू किया गया था। सभी भाषा एवं साहित्य प्रेमीजनों की शुभकामनों से गढ़वाली लोक साहित्य व भाषा के क्षेत्र में स्व.डॉ.गोविन्द चातक जी के भगीरथ योगदान से प्रेरणा लेकर वर्ष 2018 से गोविन्द चातक जयन्ती के सुअवसर पर "आखर "समिति ,श्रीनगर गढ़वाल द्वारा डॉ.गोविन्द चातक स्मृति व्याख्यान आयोजन के साथ -साथ चातक परिवार के सहयोग से "डॉ.गोविन्द चातक स्मृति आखर साहित्य सम्मान " शुरू किया गया । इसमें सम्मान स्वरूप - रुपए ग्यारह हजार (11,000/ )की नगद राशि के साथ अंग वस्त्र  , मानपत्र व आखर स्मृति चिन्ह भेंट किया जाता है । गढ़वाली भाषा - साहित्य में अपना अमूल्य योगदान देने हेतु इस वर्ष का यह सम्मान अर्थात "डॉ. गोविन्द चातक स्मृति आखर साहित्य सम्मान- वर्ष 2020"   मंडावाली दिल्ली निवासी प्रख्यात वरिष्ठ गढ़वाली साहित्यकार, हास्य -व्यंग्य के सुप्रसिद्ध गढ़वाली कवि श्रद्धेय श्री ललित केशवान जी को दिया जाएगा। पूर्व मे यह सम्मान वर्ष 2018 मे डॉ. नंदकिशोर ढौंढियाल "अरुण " जी को और वर्ष 2019 मे स्व. मोहन लाल नेगी जी एवं स्व. बचन सिंह नेगी जी को सयुंक्त रूप से दिया गया।
     इस वर्ष के " आखर " सम्मान से सम्मानित होने वाले गढ़वाली साहित्यकार श्रद्धेय श्री ललित केशवान जी की गढ़वाली में 09 (नौ )पुस्तकें प्रकाशित हैं । हिन्दी में भी उनकी 10 (दस )पुस्तकें प्रकाशित हैं। दिल्ली में गढ़वाली काव्य गोष्ठीयों की शुरुआत करने में भी उनकी सक्रिय एवं महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
गढ़वाली साहित्यकार एवं हास्य - व्यंग्य के सुप्रसिद्ध कवि श्री ललित केशवान जी का जन्म 17 अगस्त 1939 को जिला पौड़ी गढ़वाल में अपने ननिहाल कांडा ( सितोनस्यूँ ) में हुआ एवं उनका गांव - सिरोली, (इडवालस्यूँ ),पौड़ी गढ़वाल में ही है। उनकी गढ़वाली में प्रकाशित पुस्तकें इस प्रकार से हैं -
(1) खिलदा फूल हैंसदा पात (हास्य कविता संग्रह )
(2) हरि हिंडवांण( गढ़वाली नाटक )
(3) दिख्यां दिन तप्यां घाम (गढ़वाली कविता संग्रह )
(4) सब मिलीक रौंला हम (गढ़वाली बाल कविता संग्रह)
(5)जब गरदिस मा गरदिस ऐना (गढ़वाली कविता संग्रह)
(6) दीवा ह्वेजा दैणी (गढ़वाली खण्डकाव्य )
(7) जै बद्री नारैण ( पाँच गढ़वाली एकांकी नाटक )
(8) गंगू रमोला (( गढ़वाली पौराणीक एकांकी नाटक)
(9) मिठास ( गढ़वाली कथा संग्रह ) 
    श्रद्धेय श्री ललित केशवान जी की गढ़वाली रचनाएँ सार गर्भित एवं बहुत सहज होती हैं, जो कवि सम्मेलनों में रंग जमा देती हैं। उनकी "खिलदा फूल हैंसदा पात (हास्य कविता संग्रह )" का पहला संस्करण 1982 में छपा था, जो कि बहुत ही चर्चित रहा । फिर इसका दूसरा संस्करण 2002 में प्रकाशित हुआ । इस कविता संग्रह की कुछ प्रमुख रचनाएँ - फस्स क्लास, लिम्बा, हे मेरी ब्वे कन मरी गै छौ मि, डाम, घुण्डा हिलै, सब्बि गोळ, तै रोका, बोट, बात, सीन मा, ललंगी गौड़ी, पटगा बंद आदि हैं ।
         कोविड -19 की  परिस्थिति के कारण इस वर्ष 19 दिसंबर 2020 को डॉ. गोविन्द चातक जी की जयन्ती पर "आखर "समिति द्वारा श्रद्धांजलि स्वरूप सूक्ष्म कार्यक्रम तो होगा परन्तु "डॉ. गोविन्द चातक स्मृति व्याख्यान माला व सम्मान समारोह " आयोजित नहीं किया जा सकेगा। निकट भविष्य में थोड़ा स्थिति सामान्य होने पर उचित समय "आखर" द्वारा आयोजित समारोह /कार्यक्रम में इस वर्ष का "डॉ0 गोविन्द चातक स्मृति आखर साहित्य सम्मान- वर्ष 2020 " श्रद्धेय श्री ललित केशवान जी को दिया जाएगा। 

                                       संदीप रावत
                              (अध्यक्ष - आखर समिति )
                                     श्रीनगर गढ़वाल




Sunday, December 6, 2020

"साहित्य अकादमी " पुरस्कार से सम्मानित हिन्दी -गढ़वाळि का सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री प्रेम लाल भट्ट जी बि भग्यान ह्वे ग्येनि " - संदीप रावत, न्यू डांग, श्रीनगर गढ़वाल

   "साहित्य अकादमी " पुरस्कार से सम्मानित हिन्दी -गढ़वाळि का सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री प्रेम लाल भट्ट जी बि भग्यान ह्वे ग्येनि "

प्रेम लाल भट्ट ( जन्म -08 मई 1931, सेमन, देवप्रयाग मा। भग्यान - 06 दिसम्बर 2020, दिल्ली मा )

हिन्दी - गढ़वाळि का सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री प्रेम लाल भट्ट जी को बि ब्याळी 06 दिसम्बर 2020 खुणी दिल्ली मा स्वर्गवास ह्वे ग्ये।
   गढ़वाळि साहित्यकारों मा वूं को भौत बड़ो स्थान अर मान छ । वो उच्चकोटि का रचनाकार छायि । वूंन कम लेखीक बि गढ़वाळि भाषा मा अपणो अमूल्य योगदान दे । वूंन गढ़वाळि निबंध साहित्य अर गढ़वाळि काव्य तैं नयो ब्योंत दे। वूंन गढ़वाळि साहित्य तैं " उमाळ " ( सन 1979 मा प्रकाशित गढ़वाळि काव्य संग्रै ), "भागै लकीर "( सन 1987 मा प्रकाशित गढ़वाळि खण्ड काव्य ) अर " उत्तरायण "( सन 1987 मा प्रकाशित गढ़वाळि महाकाव्य ) जन अनमोल कृति गढ़वाळि साहित्य तैं देनि।
सन 2008 मा प्रेम लाल भट्ट जी स्व. सुदामा प्रसाद प्रेमी जी दगड़ा गढ़वाळि साहित्या वास्ता " साहित्य अकादमी " पुरस्कार से सम्मानित ह्वे छा।

वूं कि "बिडंबना" रचना भौत प्रसिद्ध च, ज्वा गढ़वाळि कि उत्कृष्ट कवितों मा शामिल च--

" कैन बोलि या रिसी मुन्यूं की
द्यौ अर द्यब्तौं की धरती च
तुम्हीं बता क्या रूखा माटा मा फसल प्यार की उग सकणी च ?
जख भुम्याळ भूखा मौन्ना छन
मेघ तिस्वाळा ही घुमणा छन
रक्षपाल रक्षा का बाना
त्राहि त्राहि ही सब कन्ना छन
वख बल कबि द्यवता रहेंदा छा
बात क्या या तुम तैं खपणी च ?
तुम्हीं बता क्या रूखा माटा मा फसल प्यार की उग सकणी च ?
देव बाला छन भूखा पेट जू
घास का फंची सान्नी सन्नी छन
सोळ हाथ का पाठगौं से जू
ज्वान्नि कि ल्हास ल्हसोण्णी छन
एक मील से रिसि कन्या क्वी
डिब्लु पाणि कू ल्है सकणी च ?
तुम्हीं बता क्या रूखा माटा मा फसल प्यार की उग सकणी च ?"
भगवान वूं कि आत्मा तैं शांति दियां, अपणा श्री चरणों मा जगा दियां अर वूंकि सैर्या कुटुमदरि तैं ये दुख तैं सैणै सक्या दिंया। महान साहित्यकार " स्व.श्री प्रेमलाल भट्ट " जी तैं विनम्र श्रद्धांजलि। ॐ शान्ति 
                                  संदीप रावत 
                            न्यू डांग ,श्रीनगर गढ़वाल। 
                                    
                           स्व.श्री प्रेमलाल भट्ट जी 

                                   

Saturday, December 5, 2020

"श्रीनगर गढ़वाल का गढ़वाळि साहित्यकार अर रंगकर्मी श्री राजीव कगड़ियाल जी को स्वर्गवास "


श्रीनगर : 05/12/2020: एक हौरि दुखद घटना -

"श्रीनगर गढ़वाल का गढ़वाळि साहित्यकार अर रंगकर्मी श्री राजीव कगड़ियाल जी को स्वर्गवास "
     बड़ा दुखै बात च कि - श्रीनगर गढ़वाल का गढ़वाळि साहित्यकार अर रंगकर्मी श्री राजीव कगड़ियाल जी अगास ह्वे ग्येनि। यानि अब वु हमारा बीच नि रैनि। कुछ दिनों बटि वू कि तबियत खराब छै । परसि रात 03 दिसम्बर 2020 खुणी वूं को स्वर्गवास ह्वे ग्ये।
       वु एक गढ़वाळी कवि होणा दगड़ा रंगकर्मी अर हास्य कलाकार बि छायि। वु यख यूनिवर्सिटी मा नौकरी करदा छा अर कतगै पिक्चरों मा वूंन हास्य कलाकारै रूप मा काम करी छौ। भग्यान राजीव कगड़ियाल जी का द्वी गढ़वाळि काव्य संग्रै "उमाळ " अर "कुतग्यळि " प्रकाशित छन।
सरल स्वभौ वळा अर हँसमुख राजीव कगड़ियाल जी कि याद सदानि आणी रालि। 
   भगवान वूं कि आत्मा तैं शांति दियां अर वूंकि सैर्या कुटुमदरि तैं ये दुख तैं सैणै सक्या दिंया। "आखर" समिति अर मेरी तर्फां बटि राजीव कगड़ियाल " रांकु "जी तैं विनम्र श्रद्धांजलि। ॐ शान्ति
                                   संदीप रावत 
                         न्यू डांग ,श्रीनगर गढ़वाल।