मेरी प्रकाशित पुस्तकें :-


(1) एक लपाग ( गढ़वाली कविता-गीत संग्रह)- समय साक्ष्य, (2) गढ़वाळि भाषा अर साहित्य कि विकास जात्रा (गढ़वाली भाषा साहित्य का ऐतिहासिक क्रम )-संदर्भ एवं शोधपरक पुस्तक - विन्सर प्रकाशन, (3) लोक का बाना (गढ़वाली आलेख संग्रह )- समय साक्ष्य, (4) उदरोळ ( गढ़वाली कथा संग्रह )- उत्कर्ष प्रकाशन ,मेरठ


Saturday, November 28, 2020

गढ़वाली रचना - द्वी दिन बि अनमोल ©संदीप रावत, न्यू डांग, श्रीनगर गढ़वाल।

             " द्वी  दिन बि अनमोल "

 जिंदगी का द्वी दिन बि  बड़ा अनमोल
ह्वायि नि अज्यूं अबेर अब बि आँखा खोल ।


            अपणि पीड़ा अर हूनर तैंईं पर्वाण बणौ 
             जीत  होलि तेरी जरूर अफुतैं कम ना तोल ।


तिमला का तिमला खत्येंदा नांगू को नांगू द्यिख्येंद
भेद अपणि जिकुड़ी को  जै-कै मा सुद्दि ना खोल ।


                काचा झाड्यों मा ना चढ़ी ऐंच सुद्दि ना उड़ी 
                तोली-मोली फिर तू बोली सुद्दि खती ना बोल ।


 कुछ  नि होण  पर्बि त्वेमा  बच्यूं रै जालु भौत 
 शून्य बटि फिर शुरू कन्न दिन बौड़ी आला भोळ ।


                ठण्डो रौण हीरा जन , झट्ट तची ना  काँच सी 
                 उलखणी छ्वींयूं बटी तू कैर  मुण्ड निखोळ  ।

Tuesday, November 10, 2020

जीवन दर्शन कि तरफां प्रेरणा देण वल़ि वैचारिक सोच का संवाहक छन "तू हिटदि जा " का गीत - विवेकानंद जखमोला "शैलेश "

        जीवन दर्शन कि तरफां प्रेरणा देण वल़ि वैचारिक सोच का संवाहक छन "तू हिटदि जा " का गीत
                    - विवेकानंद जखमोला ' शैलेश '

             गढ़साहित्य का दैदीप्यमान सूरज बड़ा भैजि आदरणीय संदीप रावत जी कु गढभाषा संरक्षण अर संवर्द्धन का वास्ता समर्पण भाव ही चा कि एक रसायन विज्ञान का शिक्षक कि कलम गढ साहित्य का नित नया सोपान गढदि जाणि च।
         औपचारिक लेखन का श्रीगणेश कन से ल्हेकि अब तक कि साहित्य जात्रा मा "एक लपाग "बटि कदम - कदम बढैकि "गढवाल़ि साहित्य की विकास जात्रा "का रुप मा एक ऐतिहासिक दस्तावेज (शोध रचना) की अनमोल म्यल़ाग का दगड़ि गद्य अर पद्य द्विया विधौं मा आपल अपड़ि रचनात्मक भूमिका कु सशक्त ठौ बणै यालि। अब तलक आपल द्वी गढ़वळि गीत कविता संग्रै(एक लपाग अर तू हिटदी जा) , अर तीन गद्य संग्रै (शोध ग्रंथ , लोक का बाना -गढ़वळि लेख संग्रै अर उदरोळ गढ़वळि कथा संग्रै) रूपी मोत्यूं दगड़ा दगड़ि कतगै रचना इंटरनेट अर विभिन्न पत्र-पत्रिकों माध्यम से गढभाषा कि स्वाणि माळा मा गंठे यलिं ।
यूं मोत्यूं मद्ये द्वी मोती 'उदरोळ ' अर 'तू हिटदी जा' मे थैं बि उपहार स्वरूप पाणौ सौभाग्य मिलि।
गीत संगीत मा रुचि होणा वजै से मिल बि पैलि भैजि कु स्वाणु गढ़वाळि गीत संग्रै "तू हिटदी " जा फरै हि अपड़ु ध्यान केंद्रित करि। जनि - जनि रचनौं थैं पढदि ग्यों, तनि-तनि जिकुड़ि आनंद विभोर ह्वै गे। कविता पोथि चार उपभागुं मा गंठेयीं चा। हमारि रीति नीति अर संस्कृति का पालन विधान का दगड़ि ' पैलु भाग 'ज्ञानदायिनी मां भगवती सरसुति, क्षेत्रीय द्यौ द्यब्तौं अर देवभूमि उत्तराखंड थैं समर्पित च। जै मा तीन सरसुति वंदना, चार गढ वंदना, मातृ वंदना(स्वर्गीय माता जी थैं समर्पित) अर ईष्ट द्यौ घंड्याळ वंदना दगड़ि, भारत का सीमा प्रहर्यूं थैं समर्पित भाव प्रस्तुत छन।
        'दुसरु भाग ' गौं, पाड़ अर देश थैं समर्पित चा।
'तिसरा भाग' मा ऋतु, बार त्युहार अर बग़्वाळ की सैंदिष्ट अन्वार दिखेंद अर 'चौथा' सबसे महत्वपूर्ण भाग मा माया का रंगुं दगड़ि प्रेरणा अर जीवन दर्शन का रंग मा रंग्यां रस भ्वर्यूं गीत समोदर भोरि धर्यूं । पोथि कु शीर्षक गीत 'तू हिटदी जा 'ये ही भाग मा समाहित चा।
          प्रार्थनौं मा जख स्व बुद्धि निर्माल्य की कामना करीं च वखि जन कल्याण कु पुनीत भाव बि समैयूं चा।गौं, मुलुक, देश थैं समर्पित गीतुं मा गढभूमि जलमभूमि अर भारत भूमि से प्रेम का दगड़ि गौं मुलुक देश का विकासै कामना कु पुनीत भाव तऽ समैयूं ही च, वैका दगड़ि समाजै दशा दिशा फरै चिंता का भाव बि गीतकार का माध्यम से सब्यूं कि जिकुड़ि थैं झकझोरणा वास्ता बिंबित होणा छन।ऋतु गीतुं मा जख ऋतूं कि स्वाणि झलक मिलद वखि बार- त्युहारूं की रंगत बि दिख्यांद । माया, प्रेरणा अर दर्शन का गीतुं मा गैरि प्रीत का रंगुं दगड़ि, प्रेरित कन वल़ा भाव अर जीवन दर्शन का गैरा भाव बिंगांदा गीत समाहित कर्यां छन।
      आपका गीत जन कल्याण, नारी सशक्तिकरण, प्रकृति प्रेम का दगड़ि जीवन दर्शन कि तरफां प्रेरणा देण वल़ि वैचारिक सोच का संवाहक छन। मां सरसुति कु आशीर्वाद आपै कलम- कंठ का दगड़ि हम सब्यूं फरै बि सदनि सपरिवार बण्यूं रयां । गढभाषा विकास का वास्ता आपै कलम सदानि प्रयासरत रयां। आपै स्वस्थ मस्त अर प्रसन्नचित दीर्घआयुष्य की सुकामना दगड़ि नयी रचना की आस मा आपऽकु-
                          विवेकानंद जखमोला ' शैलेश '