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Friday, January 22, 2021

भावों का दगड़ा विचारों कि मजबूत जमीन कि उपज च "घुर घुघुती घुर " - संदीप रावत

समीक्षा - कविता संग्रै " घुर घुघुती घूर "
             
                कवि - गीतेश नेगी
      प्रकाशक -धाद प्रकाशन, वर्ष 2017 में प्रकाशित 
 समीक्षक - संदीप रावत, श्रीनगर गढ़वाल ,वर्ष - 2018

   
भावों का दगड़ा विचारों कि मजबूत जमीन कि उपज च "घुर घुघुती घुर " - संदीप रावत
          सक्रिय गढ़वाळि कविता तैं आज लगभग 113  साल ह्वे ग्येनि । आज गढ़वाळि कविता भौत सुन्दर ढंग से रच्येणी बि छन ,पढ़ेणी बि छन त मंचों पर्बि प्रस्तुत होणी छन। कुल मिलैकि आज गढ़वाळि कविता समाज मा भौत बढ़िया ढंग से स्थापित ह्वे ग्ये। गढ़वाळि साहित्य मा  अबारि बि सबचुले जादा  कविता ही लिख्येणी छन पर असरदार अर परिपक्व  रचना यानि जौं कवितौं प्रभाव पढ़ण- सुणणा का बाद बि रै जावु ,  कुछ -कुछ ही लिख्येणी छन।
          अबारि गढ़वाळि कवितौं तैं जै ढंग से अगन्या बढ़ण चैंद वा अन्वार अर कलेवर गढ़वाळि काव्य संग्रै   *घुर घुघुती घुर * मा बखूबी द्यिखेंद। यो  गढ़वाळि  काव्य संग्रै परदेस मा रैकि बि  अपणि थाति अर अपणि मातृभाषा मा अपणो आत्म सम्मान द्यखण वळा, गढ़वाळि भाषा-साहित्य का प्रति सदानि चितळो , नै छ्वाळि का हुणत्याळा लिख्वार,गद्य अर पद्य द्विया विधौं कु हिट्वाक गीतेश नेगी कु छ। माना कि "घुर घुघुती घुर " गातेश नेगी कि पैली प्रकाशित  गढ़वाळि पुस्तक  छ  पर  ये कवि कि   गढ़वाळि कविता , गजल , गीत ,व्यंग बर्सूं  पैलि  बटि पत्र-पत्रिकौं मा प्रकाशित होणी छन।
              जैं काव्य पोथि कि पवांण ,इंटरनेट पर गढ़वाळि भाषा-साहित्य का भीष्म पितामह आदरणीय भीष्म कुकरेती जीक लेखीं होवुन त फेर वीं पोथिक बारा मा ,वीं पोथिक रचनाकार का बारा मा लिखण सौंगु नि रै जांद। फिर्बि  "घुर घुघुती घुर "काव्य पोथि तैं पढ़ीक मि तैं  जन मैसूस ह्वे,जु विचार म्येरा दिल-दिमाग मा ऐनि  वु विचार इख मा फ्वळणै कोसिस करी।
             "घुर घुघुती घुर " काव्य संग्रै कि माळा मा गीतेश नेगी का उणसठ (59) काव्य रूपी बनि-बन्या फूल गैंठsयां छन। ईं माळा मा यो फूल छ्वट्टि -बड़ी कवितौं का रूप मा,क्वी गीत अर एक-द्वी गजल का  का रूप मा छन। ये काव्य संग्रै कि  जादातर रचना वेका अपणा गौं-गुठ्यार,अपणि थाति यानि पहाड़ से जुड़ीं  गम्भीर भाव वळि छन जो कि पढ़दरा का भितर यानि जिकुड़ि तक पौंछण मा सुफल होणी छन। ईं पोथिक कविता परिपक्व छन अर सैsर-बजारों मा रौण वळाें का दगड़ा पहाड़ मा छुट्यां सब्या लोगूं कि अन्वार दिखौंदन ,सच्चै तैं उजागर कर्दन।
           "घुर घुघुती घुर "काव्य संग्रै कि कविता आस जगौंदन । ईं पोथिक शुर्वात बि *आस कु पंछी * कविता से होंद, जै मा कवि बोल्द-
    " क्या पता ह्वे जावु इक दिन
       वूं थैं मेरी पीड़ा कु एहसास
       अर वू सैद बौड़िक आला म्यारा ध्वार
       अपणा घार ,अपणा पहाड़ "
     वास्तौ मा इक आस त सदानि लगीं रांद ,चाहे कुछ बि ह्वे जावु। आज सैर्या पहाड़ पलायनै पीड़ा  सैsणू छ। पर क्या कन्न ?  पहाड़ौ मानवीकरण कवि कु भौत बढ़िया ढंग से कर्यूं छ। चुप राैण वळा पहाड़ दगड़ा आज बिज्यां छेड़छाड़ बि त ह्वे ग्ये। पहाड़ कि दशा पर *पहाड़* रचना मा पहाड़ को मानवीकरण द्यखण लैक च अर दगड़ा -दगड़ि य रचना पहाड़ का भितरै पीड़ा तैं ये तरौं से भली कैरी छलकाणी छ -
      " म्यारू मुंडरू म्यारू उकताट
         अर मेरी पीड़ा साख्यूं कि
          जु अब बणी ग्याई मी जन
           म्यार ही पुटूग ,एक ज्वालामुखी सी
            जु कब्बि बि फुट सकद। "
       ईं पोथिक कतगै रचना चखुला,गोर ,फ्यूंली-बुरांस ,डाळि-बोट्यूं दगड़ा मनखीक रिस्तौं तैं उजागर कन्नी छन। कवितौं मा जख आम बोलचाल का गढ़वाळि शब्द ,मुहावरा छन त दुसरी तर्फां कवितौं मा अलंकार ,प्रतीक अर बिम्बों को सफल प्रयोग होयूं छ ,जो कि कवितौं तैं असरदार अर मजबूत बणौणी छन। * त्वे औण प्वाड़लु* रचना मा कवि  इन बोल्दु-
       " बसगळया  गदन्यूं का रौळियाण से पैली
          डाळ्यूं मा चखल्यूं का चखुल्याण से पैली
          त्वे आण प्वाड़लु "
* जग्वाळ * जनि रचनौं मा उपमाओं कु भौत अच्छु प्रयोग होयूं छ -
      " धुरपळी को द्वार सी ,बसगळ्या नयार सी
         द्यखणी छन बाटु आँखि
         कन्नी उळर्या जग्वाळ सी "
       उत्तराखण्ड बणणा 17-18 साल बाद बि यख पहाड़ या  आम मनखीक स्वीणा ,स्वीणा ही रै ग्येनि। कुछ लोगूं खुणी त मौज-मस्ती रै अर यख चकड़ैतूं कि एक बड़ी फौज खड़ी ह्वे । बिल्कुल सै शुर्वात करी कविन *जय हो उत्तराखण्ड * कविता कि-
        " गलदरूं की , ठेकेदारूं की
           जय हो उत्तराखण्ड त्यारा सम्भलदारूं की |"
       यख विकास का वास्ता क्षेत्रवाद,जातिवाद,भै-भतीजावाद, भिरस्टाचार,बेरोजगारी अर पलायन कि *केर * बंधण भौत जरूरी छ ,इलैई त कवि  छ्वट्टि कविता *केर * मा बोल्द -
"क्षेत्रवाद ,जातिवाद,भ्रस्टाचार ,मैंगै ,बेरोजगारी ,
  अशिक्षा,पलायन
  जरा बांधा धौं केर यूं कि पहाड मा
अगर बांधि सक्दौं त। "
            गीतेश नेगी व्यंगकार बि च , इलै वे कि अधिकतर कविता  व्यंग शैली मा छन । गंडेळ ,घिन्डुड़ी ,बिरळु, कटगळ, विगास, सरकार ,चुनौ ,डाम ,योजना, ख्वींडा सत, ठेकेदारी , गोर आदि कविता व्यंग्यात्मक शैली मा छन। * गोर * कविता कि इक झलक -
       " सब्यूं का छन  अपणा - अपणा ज्यूड़ा
          अपणा- अपणा कीला
         अर अपणा- अपणा गोर  , बंध्यां साख्यूं बटि "
          जख भैर का परवाण बणि जावुंन त कन क्वै होण वखा भलो। ईं बात तैं  छ्वट्टि सि  कविता * परवाण * भलि कैरीक बिंगौंद -
    " वू घार ,वू गौं ,वू समाज ,वू मुल्क ,वू देश
      जखै तखि रै जांदिन ,
      जख थर्पे जांदिन, भैरक बणीक परवाण। "
      य बिडम्बना ही च  कि गढ़वाळ मा रै कि अर गढ़वाळि ह्वेकि बि हमुतैं गढ़वाळि नि आंदि। * किराण * कविता ईं बिडम्बना तैं उजागर कर्द -
       " निर्भगी घुन्ड-घुन्डौं तक फुक्ये ग्यो
          पर किराण अज्यूं तक नि आई ?
           मी तुम्हारी मातृभाषा छौं
           मेरी कदर अर पच्छ्याण
            तुम तैं अज्यूं तक नि ह्वाई। "
       गीतेश नेगी मा बि घुघुती जन मयळदुपन च अर कारिज का प्रति उन्नि एकाग्रता बि छ। परदेस मा रै कि बि वु सदानि अपणि माटि,मातृभाषा से जुड्यूं छ।   अपणि पैली गढ़वाळि पोथि कु नौ *घुर घुघुती घुर * रखीक वेन  ईं बात कि सार्थकता बढ़ै। पहाड़,अपणि बोली-भाषा तैं ज्यूंदो रखणा वास्ता यु मयळदुपन अर या एकाग्रता सब्यूं मा  होण जरूरी छ।   शीर्षक कविता * घुर घुघुती घुर * एक मार्मिक कविता छ। वास्तौ मा आज यख  पहाड़ मा घुघुती वूं सब्यूं खुणी घुरणी छ जो स्यकुंद बौग मारीक चली ग्येनि ,अर फेर बौड़िक नि ऐनि। शीर्षक कविता कि शुर्वात-
       " हैरी डाँड्यूं का बाना, हिंवाळी काँठ्यूं का बाना
          बांजा रै जु स्यारा रौंतेली वूं पुंगड्यूं का बाना
          घुर घुघुती घुर। "
     फ्यूंली,बुरांस अज्यूं बि उन्नि खिलदन ,हिंसोळा-किनगोड़ा-काफळ  अपणा टैम पर अज्यूं बि पकदन पर  वूं तैं जिमण वळा यख अब क्वी-क्वी ही रयांन। इलै ही *त्वे बिना * कविता मा कवि लिख्द-
         " खिल्यां फूल फ्यूंली अर बुरांस का ,
             पंदेरा कि बारामासी छ्वीं-बत्था 
           सब्बि बैठ्यां छन बौग मारीक चुपचाप त्वे बिना " 
         ईं पोथिक आखरी कविता * वूंल बोलि * छ ,ज्वा उत्तराखण्ड कि दशा तैं उजागर कर्द कि पहाड़ौ विकास पहाड़ मा ना बल्कन दिल्ली-देरादूण मा होणू छ। ईं कविता मा कवि का विचार अर भाव ये तरौं छन -
           " हमारू पाणि कनै पैटि
              हमारि सड़क कख बिरड़ि
              हमारा डाक्टर बिमार छन कि व्यवस्था .... "
             ईं बात मा क्वी सक-सुबा नी कि - *घुर घुघुती घुर*  अच्छी रचनौं कि  पोथि छ जै मा भाव पक्ष का दगड़ा विचार पक्ष बि भौत मजबूत छ। शिल्प अर शैली का हिसाबन बि ईं पोथिक अधिकतर रचना बढ़िया छन। बोलि सकदां कि - ईं पोथिक  रचना   पढ़णौ बाद यि रचना पढ़दरा पर बाद तक असर बि डलणी छन   ज्यांका बान यि कविता  रच्ये ग्येनि। ईं पोथिक रचना अनुभव जन्य छन। आदरणीय भीष्म कुतरेती जी ईं पोथिक भूमिका मा ठिक ही लिखदन कि - "गीतेश कि कविता मा कथगै रंग-बिरंगा रस दिख्येंदन। "
      भाषा अर शब्दोंक हिसाब से कुछ एक जगौं पर कमी सि लग्दि। ईं पोथि मा कुछ-कुछ जगौं पर प्रुफ कि गल्ति बि रै ग्येनि जो कि थ्वड़ा भौत अक्सर सब्या गढ़वाळि भाषा कि पोथ्यूं मा रै जांद। गढ़वाळि भाषा कि मजबूती अर विकास का वास्ता अब गढ़वाळि का सब्या लिख्वारूं तैं मानकीकरण कि तर्फां बि बढ्यूं चैंद। वूं शब्दों जादा प्रयोग कन्न चैंद जु सब्यूं का बिंगणा मा आसानि ऐ जावुन। सब्यूं का लेखन मा क्रिया रूप/ क्रियापदों मा बि एकरूपता अब जरूरी छ।
             भला आकार,सुन्दर मुखपृष्ठ का दगड़ा  ठेठ गढ़वाळि शब्दूं को प्रयोग ईं पोथि मा होयूं छ। गढ़वाळि साहित्य पिरेम्यूं तैं, नै छ्वाळि का लिख्वारूं तैं /कविता रंंचदरों तैं , हम सब्यूं तैं हौरि गढ़वाळि किताब्यूं दगड़ा  *घुर घुघुती घुर * जरूर पढ्यूं चैंद  अर ईं पोथिक स्वागत हम सब्यूं तैं कन्न चैंद। गीतेश नेगी तैं गढ़वाळि भाषा कि  ईं सुन्दर  पोथि का वास्ता भौत-भौत बधै अर हार्दिक शुभकामना। 

नोट  - य समीक्षा धाद, रंत रैबार आदि मा प्रकाशित छ (  वर्ष - 2018 )
                                         संदीप रावत 
                                न्यू डांग, श्रीनगर गढ़वाल 

                  
                            


Tuesday, January 19, 2021

"गजब कु हुनर छ संगीता तिवाड़ी लखेड़ा जी मा " © संदीप रावत, श्रीनगर गढ़वाल।

  "गजब कु हुनर छ संगीता तिवाड़ी लखेड़ा जी मा "
              © संदीप रावत, श्रीनगर गढ़वाल
     हर मनखि मा कुछ न कुछ हुनर य कला जरूर होंद। बस ! वीं कला य हुनर तैं पछ्याणणा जरूरत होंद, फैलास देणा जरूरत होंद । य 'कला' कबि चीजों, अनुभवाें अर ' कै टैम ' तैं अमर बणे देंद। क्वी बि कला मन तैं खुश करद, आनंद देंद। ' कला ' भावनाओं कि अभिव्यक्ति होंद। 'कला ' कथगै तरों कि होंदन। ' दृश्य कला '(विसुअल आर्ट ) मा पेंटिंग, चित्रकारी को महत्वपूर्ण स्थान छ।
     इन्नी , देहरादून मा रौण वळी, भगवान गोपीनाथ जी कि धरती ' गोपेश्वर ' मा पढ़ीं - लिख्यीं अर एक कुशल गृहणी श्रीमती संगीता तिवाड़ी लखेड़ा जी मा बि गजब कु हुनर छ, गजब कि कला छ। जब वूंन मि तैं मेरु ऐन -सैन 'पेंसिल स्कैच' भेजि त मन खिलपत ह्वे ग्ये।

        सै बात त य बि छ कि  -  वो पेंटिंग बि गजबै बणाैंदन। वूं का माँ सरस्वती जी, भगवान बद्रीविशाल जी , राधा - कृष्ण जी, माँ लक्ष्मी जी, भोलेनाथ जी, श्री राम जी आदि कि भौतै बढ़िया पेंटिंग बणाई छन अर महापुरुषाें, कलाकारों का उम्दा पेंसिल स्कैच बणायां छन । 

   यां का अलावा वूं कि अपणि कलम -कूंचि दार्शनिक पक्षों पर बि चलाईं छ। जन कि - वूं कि 'आँखि ' पर बणाईं पेंटिंग द्यखण लैक छ। ब्वलदन बल - 'वु आँखि आँखि नि छन जो सच तैं नि देखि सक्दि, सच्चै दर्शन नि करोंदिंन।' हमारा सुख- दुख, खुशी सब्या कुछ बतै दिंदन आँखि। 
   वूं कि य पेंटिंग भौत कुछ बिंगाणी छ । 
' साकेत गर्ग ' जी कु बि लेख्युं च -
"सुनो प्यारी नैना
हमेशा खुश ही रहना।
दबना न किसी गलत से,
हमेशा सच को सच ही कहना। "
स्कूल टैम बटि वूं तैं चित्रकारी अर पेंटिंग कु शौक छाै, पर वै टैम परैं प्रचार - प्रसार नि करी छौ अर ना ही वु अपणी ईं कला तैं भैर लै सकनि। वूं कि य कला काॅपी का भितर ही रै गे छै अर फिर दबीं ही रैगे।

    बड़ी बात त य बि छ कि लॉक डाउन मा अब वूंन अपणा ये हुनर तैं हौरि निखारि अर फैलास देणा छन। 

       मेरी ईं स्कैच का वास्ता, मि तैं य 'समूण' देणा वास्ता आपाै भौत -भौत आभार अर धन्यवाद आदरणीय श्रीमती संगीता तिवाड़ी लखेड़ा जी। माँ सरस्वती कि कृपा आप परैं सदानि बणी रौवु अर आपका ये हुनर तैं, ईं कला तैं हौरि फैलास (विस्तार) मिलाे, ईं शुभकामना का दगड़ा ---
                                           संदीप रावत
                               न्यू डांग, श्रीनगर गढ़वाल।

Thursday, January 7, 2021

* स्व.सुन्दरलाल बाबुलकर शास्त्री "प्रमुख "जी की पुण्यतिथि (07 जनवरी) पर " उनको विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित *


*स्व.सुन्दरलाल बाबुलकर शास्त्री "प्रमुख "जी की पुण्यतिथि(07 जनवरी) पर "सम्मान समारोह "का आयोजन* 

      दिवंगत प्रसिद्ध समाजसेवी, कर्म निष्ठ एवं लगभग 27 साल तक निरंतर कोट ब्लॉक के ब्लॉक प्रमुख रहने वाले स्व.सुन्दरलाल बाबुलकर "प्रमुख "जी की पुण्य तिथि (07 जनवरी ) पर श्रीनगर गढ़वाल में (अंजलि मेडिकल के ऊपर शगुन वेडिंग पॉइंट में )हिलांस" व "देवप्रयाग प्रकाश पुंज" सामाजिक संस्था द्वारा एक सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। साथ ही स्व. बाबुलकर जी के चित्र पर माल्यार्पण कर सभी के द्वारा पुष्पांजली एवं श्रद्धांजलि दी गई।  स्व. बाबुलकर 
  जी की धर्मपत्नी श्रीमती चंद्रकांता डबराल बाबुलकर जी ने स्मृति चिह्न प्रदान किए। 
       इस कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. विष्णु दत्त कुकरेती जी ने की। विशिष्ट अथिति के रूप में गंगा आरती, श्रीनगर के अध्यक्ष श्री प्रेम बल्लभ नैथानी जी, प्रसिद्ध समाज सेवी श्री अनिल स्वामी जी, प्रसिद्ध आंदोलनकारी  श्री मदन मोहन नौटियाल जी की गरिमामयी उपस्थिति थी। इस अवसर पर  श्री सुभाष चंद्र भट्ट जी, 'आखर ' के अध्यक्ष संदीप रावत, स्व.अनिल काला जी की पत्नी एवं शिक्षिका श्रीमती अनीता काला जी आदि ने भी विचार व्यक्त किए। इस सम्मान समारोह में श्री मुकेश काला जी, स्व. बाबुलकर जी के सुपुत्र श्री आदित्य नारायण बाबुलकर जी एवं 
श्री सुधाकर बाबुलकर जी , श्री मदन लाल  डंगवाल जी, डॉ. सुभाष पांडेय जी, शगुन टैण्ट   हॉउस व शगुन रेस्टोरेंट के श्री उनियाल जी,  श्री राकेश पालीवाल जी  , श्री जय बल्लभ ध्यानी जी  , बैंक ऑफ़ इंडिया के मैनेजर - श्री यमुना प्रसाद डोभाल जी आदि की गरिमामयी उपस्थिति रही। 
      इस सम्मान समारोह में 2020 की इंटरमीडिएट बोर्ड परीक्षा में बहुत ही  अच्छा प्रदर्शन  करने के लिए छात्र सिद्धांत कोटियाल व अभिसार काला को सम्मानित किया गया । साथ ही प्रसिद्ध समाज सेवी श्रद्धेय श्री अनिल स्वामी जी एवं प्रसिद्ध आंदोलनकारी श्रद्धेय श्री मदन मोहन नौटियाल जी को भी  सम्मानित किया गया। 
        कार्यक्रम का संचालन स्व.सुन्दरलाल बाबुलकर "प्रमुख "जी के सुपुत्र पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष श्री प्रभाकर जी ने किया।
          
       स्व.सुन्दरलाल बाबुलकर "शास्त्री " जी 25 साल की उम्र में   कोट ब्लॉक के  प्रमुख बन गए थे  और 26 - 27 साल तक लगातार वहां के   ब्लाक प्रमुख रहे। (1962 से 1988 तक हुए कोर्ट ब्लॉक की प्रमुख रहे) और उन्होंने अपने क्षेत्र के विकास में अपना अभूतपूर्व योगदान दिया। उनकी जन्मस्थली एवं कर्मस्थली दोनों ही माता सीता जी के स्थान हैं जो कि दिव्य स्थान हैं। स्व.सुन्दर लाल बाबुल कर जी वर्ष 1960 में अपनी ग्राम सभा मुछीयाली (कोट ब्लॉक ) गांव के प्रधान बने और वर्ष 1962 में जब पहला पंचायत चुनाव हुआ तो वे कोर्ट ब्लॉक के प्रमुख पहली बार में ही चुने गए। कहा जा सकता है कि वे कोट ब्लॉक के प्रथम प्रमुख थे और वर्ष 1988 तक ब्लॉक प्रमुख रहे। स्व. बाबुल कर जी स्व.हेमवती नंदन बहुगुणा जी के निकटस्थ लोगों में से थे। ज्ञातव्य है कि स्व.सुन्दरलाल बाबुलकर जी उत्तराखंड के सुप्रसिद्ध दिवंगत साहित्यकार स्व.मोहनलाल बाबुलकर जी के बड़े भाई थे। 
       स्व.सुन्दरलाल बाबुलकर जी सदस्य -जिला परिषद पौड़ी गढ़वाल, सदस्य- श्री बद्रीनाथ /केदारनाथ मंदिर समिति, सदस्य- गढ़वाल विश्वविद्यालय स्थापना केंद्रीय संघर्ष समिति, सदस्य- इंजीनियरिंग कॉलेज घुड़दौडी, सदस्य- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, अध्यक्ष - स्वास्थ्य समिति जिला परिषद पौड़ी गढ़वाल, अध्यक्ष- जनता इंटर कॉलेज भल्ले गांव एवं देहलचौरी, अध्यक्ष- श्री रघुनाथ कीर्ति आदर्श संस्कृत महाविद्यालय, प्रबंधन समिति देवप्रयाग रहे। 
          कर्मयोगी, स्पष्टवादी, संयमी दिवंगत विभूति सुन्दरलाल बाबुलकर "  "जी को विनम्र श्रद्धांजलि एवं शत -शत नमन। 🙏🙏🙏🙏               
                                     संदीप रावत 
                               अध्यक्ष - आखर समिति 
                               न्यू डांग, श्रीनगर गढ़वाल। 

Wednesday, January 6, 2021

"लोक का बाना" पुस्तक बटि आलेख-- " लोक बटि हर्चदा जाणू छ लोक साहित्य "©संदीप रावत,न्यू डांग, श्रीनगर गढ़वाळ, मोबैल 09720752367

 " लोक बटि हर्चदा जाणू छ लोक साहित्य "
                    ©संदीप रावत, न्यू डांग, श्रीनगर गढ़वाळ
                                         
      कै बि समाज, क्षेत्र, जाति या देशा जीवन मा लोक साहित्य अर लोक संस्कृत्यो बड़ो महत्व होंद। एक तरौं  यो कै समाजै लोक जीवना बारा मा बतौंदन।   लोकसाहित्यै क्वी निश्चित परिभाषा देण कठिन छ। लोक  को सम्बन्ध आत्मिक होंद अर यो प्रकृति से प्रभावित होंद। अगर लोक बटि प्रकृति तैं हटै द्यूंला त साहित्य अर लोकसाहित्य मा हम फर्क नि करी सकदां। लोक साहित्य लोकमानस कि सहज अर स्वाभाविक अभिव्यक्ति होंद। ये मा दिखलौट बिल्कुल बि नि होंद। यो अलिखित होंद अर अपणि मौखिक या वाचिक परम्परा से एक पीढ़ि बटि हैंका पीढ़ि  मा जाणो रैंद। यु मन्ये जांद कि लोक साहित्य का रचनाकार अज्ञात होंदन।
     मोहनलाल बाबुलकर जीक् अनुसार- ‘लोक कि वु सब्या अभिव्यक्ति जौं मा लोक रचना शक्ति का दर्शन होंदन वु लोक साहित्य  छ।’ वास्तौ मा लोक साहित्य वा मौखिक अभिव्यक्ति छ क्वी न क्वी मनखी रचद,गढ़द पर वे तैं आम लोक समूह अपणु समझद किलैकि वो लोक हृदय मा रचि- बस जांद।  लोक साहित्य कि क्वी एक निश्चित विधा नि होंदि , यो त आचार- बिचार, लोकोक्ति, लोककथा,लोकगाथा, लोक गीत्वूं का  रूप मा एक पीढ़ि बटि हैंकि पीढ़ि मा जाणी रांद।
       प्रसिद्ध समालोचक अर साहित्यकार भगवती प्रसाद नौटियाल जीक् अनुसार-
‘‘लोकसाहित्य कि वास्तविक जैड़  लोक संस्कृत्या भितर होंद। लोक साहित्य केवल साहित्य नी बल्कि यांका अलौ धर्म, इत्यास , समाजशास्त्र,पुराण,आख्यान यानि सब्या कुछ यांका भितर छिप्यूं होंद।  लोकसाहित्य लोकसांस्कृतिक वैविध्य को समग्र रूप छ अर यो लोकजीवन को ऐना होंद।’’
लोकसाहित्य कख्या बि हो ,वो समृद्ध होंद अर वेकि अपणी सक्या होंद। हमारो लोक साहित्य बि भौत समृद्ध छ अर येको भण्डार झक्क भ्वर्यूं छ। लोकसाहित्य मा सब्या भावना, खुद को चित्रण, प्रकृति को चित्रण, लोककथा, लोकगाथा-जागर, पवाड़ा, लोक गीत, आणा-पखाणा,भ्वीणा-मैणा, जंत्र-तंत्र, लोक आस्था, सब्या कुछ ऐ जांद। पर लोकसाहित्यौ काम  केवल लोकगीत ,लोककथा या कहावतों तें इकबटोळ कन्न नि होंद बल्कि या त् आदिकाल बटि अनन्त काल तक मनख्यूं कि जीवन जात्राम् संग्ति ब्वगणी वळी धारा छ। लोक साहित्य कि या विशेषता छ कि भाषागत अलग-अलग होण पर्बि भावों कि नजर से सब्या जगौं या एक जन लगद । लोकसाहित्यम् खराब, बुरो अर अमंगल का वास्ता क्वी जगा नी।
      इतिहासकार डाॅ0शिवप्रसाद नैथानीक् अनुसार-‘‘ लोक साहित्य अर लोकसंस्कृति मा ब्वे अर औलादौ रिश्ता होंद।जन औलाद अपणी ब्वे कि बोली याने मातृभाषौ पैलो शब्द सुण्द या सिख्द,ये ही तरौं से साहित्य अपणा जल्मदै ही सबसे पैलि अपणि लोक संस्कृत्यौ परिचय द्येण चांद। पैलि लोक साहित्य वाचिक होंदु छौ,फिर पढ़ेण बैठि अर आज त सुणण अर द्यखणै चीज ह्वेग्ये। देव सिंह पोखरिया भाषा संस्थान उत्तराखण्ड कि शोध पत्रिका ‘उद् गाथा-2010’ मा अपणा लेख मा लिखदन कि-‘‘ लोक साहित्य लोक धर्म तैं दगड़ा लेकि चल्द। जो जंत्र-मंत्र ब्वल्ये जांदा छा पैलि त वां से बिमार आदिम बि ठिक ह्वे जांदो छौ, इथगा शक्ति होंदि छै लोकमंत्रों मा।’’  उत्तराखण्डा उंचा-निसा पयार, पहाड़ै चुलंखी अर नीस गाड-गदिन्या गैरी घाटि, धारा-पंद्यरा,रौंत्येळा डांडा-कांठा,चखुल्यों  च्वींच्याट, सुकेली हव्वा,यखै लैरी-खैरी हमारा जीवन तैं एक अलग द्यखणौ देंदन। अप्रत्यक्ष रूप मा यो सब हमारा जीवन मा समोदर जन गैरै अर धर्ति जन धीरज देंदन, टक्क लगैकि मीनत अर काम कन्नै सक्या देंदन। यखै लोक साहित्य अर परम्परा ये पहाड़ी समाज मा ही ज्यूंदो रैंद, कखि दूर गौं-गौळौंम् ज्यूंदो रैंद। हमारा जीवन कि सब्या अभिव्यक्ति लोकगीत ,लोककथौं या कहावतोंक् रूप मा बिकसित ह्वेनि अर यों से ही फिर हमारि लोक परम्परा, रीति रिवाज बणीन। लोक मा भौत कुछ छिप्यूं या दब्यूं
रैंद,फ्वळ्यूं रैंद पर अब आम लोग पहाड़ बटि स्यकंुद यानि सैर-बजारों तर्फां सटगणा छन त इलै लोक बि हर्चदा जाणू छ अर लोक साहित्य बि  कम होंदा जाणू छ। लोक साहित्य कखि दूर पहाड़ों   अर वख बस्यां गौंम् उपजि,जख मनखीन् भेळ-भंकार अर पाखा द्यखनी, डांग या ढुंगो जन कठोर जमीन मा अभौ का बीच बि हैंसदा-हैंसदा केवल ज्यूंदो नि रै बल्कि जीवन तैं भली कैरिक् जीणो सीख। वख ही लोकरंग,लोक साहित्य अर लोकसंस्कृति को जन्म व्हे । लोक साहित्य पैलि आम लोख्वूं जीवन मा ज्यूंदो छौ,रैंदो छौ,फ्वल्यूं छौ। जन जन समौ बदल्य हर्बि-हर्बि लोकसाहित्य बि कम होंदा ग्ये। आज लोकसाहित्य पढ्येणू छ, दिखाये जाणू छ पर आज यो लोक बटि हर्चदा जाणू छ। अबारि लोक साहित्य बस कखि-कखि ही दूर गौं-गळों  मा जयूंदो छ।
    यो  सब्या जणदन कि गीत,साहित्य कि सर्वव्यापी विधा छ अर गीत लोख्वूं बीच जल्दी प्रचारित-प्रसारित ह्वे जांदिन। इन्नि लोकगीत धर्तीक् उपज होंदन अर यों मा पूरो लोक समाजौ योगदान होंद। यो लोकजीवन मा जल्दी ही प्रचारित ह्वे जांदा छा अर लोकप्रिय बि। हमारा लोक कि सबसे बड़ी खासियत या छ कि-येको हृदय मयळु छ,प्राण क्वांसो छ, यखै धर्ति गीत लगौंद,गाड-गदेरा सब गीत लगौंदन एक तरौं से। लोकमानस कि पीड़ा,यकुलांस,विरह-वेदना,अभौ लोक गीत्वूं रूप मा भैर  ऐनि, उपजिन। यांका बारा मा त हमारा यख प्वथडा़ का प्वथड़ा भ्वर्यां छन,साहित्यकारोंक् बिज्यां लेख्यूं छ लोकगीत्वूं बारा मा। आज यो चिन्ता को विषय छ कि अब लोकगीत्वूं स्वरूप बि बदलेणू छ, लोकगीत
आज अपणा मूल स्वरूप मा नि छन। डाॅ राजेश्वर प्रसाद उनियाल को ब्वन छ कि-‘‘ जब लोकगीत लिखित रूप मा  सामणि औंद अर छपेंद त वेको मूल स्वरूप यानि मौखिक रूप मा थ्वड़ा भौत बदलौ ऐ जांद अर कतिबेर त वेको मूलस्वरूप ही हर्चि जांद। जब अलग-अलग लोग लोकगीत्वूं तैं इकबटोळ कर्दन अर  लिप्यांकन कर्दन त या त लोकगीत अपणा पूर्ण रूप मा नि होंद, अद्धा- अधूरो होंद अर आखरी बि नि होंद।वेको कारण यो छ कि लोकगीत्वूं तैं इकबटोळ कन्नौ टैम अलग-अलग होंद, अलग-अलग जगा होंदन अर जख बटि कै लोकगीतौ सूद-भेद लिये ग्ये वेको स्रोत क्या छ।’’ वास्तौ मा लोकगीत्वूं असली अर ज्यूंदो रूप त लोक मा  प्रवाहित   होणू रांद।
      उत्तराखण्ड का लोकसाहित्य तैं समृद्ध अर बिकसित कन्न मा यखा शिल्पकार भै-बन्धोंन् यानि औजी,धामी, जागरी,बेड़ा-बद्योंन् सबचुले ज्यादा योगदान दे। ऐक तरौं से यों तैं आशु कवि ब्वले जै सकेंद। समसामयिक विषयों पर दिल तैं घैल कन्न वळा,जिकुड़ी मा छपछपी लगौण वळा गीत्वूं कि रचना कन्न वळा सल्लि छा यो। यखै जादातर लोकोक्तियों-मुहावरों याने औखाणा-पखाणौं तैं बि यों ही लोख्वूंन बणैनी। लोक संगीत, लोकगाथा-जागर,पवाड़ा, अर लोकनृत्यों से यों को जुड़ होंदु छौ। ब्वल्ये जै सकेंद कि एक तरौं से  औजी,धामी, जागरी,बेड़ा-बद्योंक् वजौ से ही लोक साहित्य परम्पराओं मा ज्यंदी छै पण आजै समौ मा यों लोख्वूंन उपेक्षा कि वजौ से यों चीजों अर लोक वाद्यों से इक दूरी बणैयालि,यों परम्पराओं तैं छ्वडण पर लग्यां छन। या बि एक वजौ छ जां से हमारो लोक साहित्य बि हर्बि-हर्बि लोक बटि हर्चदा जाणू छ।
      जब लोक बचाणै बात होंद त लोक साहित्यक् सैंक-सम्भाल कन्नै छ्वीं-बत्थ बि होंदन। लोक साहित्य तैं बचैणा वास्ता वे तैं वाचिक परम्परा याने मौखिक परम्परा मा बि ज्यूंदो रखणो जरूरी छ,लोक मा ज्यूंदो रखणो जरूरी छ। केवल किताब्यूं ,आॅडियो-वीडियो सीडी या हौरि आधुनिक उपकरणों भितर समेटिक भौत ज्यादा  कुछ नि होण्या। सबसे पैली बात या छ कि लोकसाहित्य अर लोकसंस्कृति लोक भाषा माध्यम से ही ज्यूंदो रै सकद्।  लोक साहित्य तैं वेका वास्तविक रूप याने लोकम् अपणा मूल रूप मा ज्यूंदो रखण प्वाड़लो, तब जैकि ये कि अर परम्पराओं कि सार्थकता छ,यां से मयळदु अर संवेदनशील समाज बणलु।
लोकसाहित्य तैं सम्मान देणौ जर्वत छ अर अबारि ये तैं स्कूली पाठ्यक्रम मा बि रखणै भारी जर्वत छ ।
      जुगल किशोर पेटशाली भाषा संस्थान,देहरादून कि शोध पत्रिका ‘उद्गाथा-2011,अंक दो मा अपणा लेख- ‘उत्तराखण्ड के लोकसाहित्य की मौखिक परम्परा’ मा ठीक ही लिखदन कि-‘‘ लोकसाहित्य अर जो वेकि विधा छन वो इतगा जीवंत छन कि वो हमारा लोक मा,समाज मा चाहे वो लोक  अब पलायना वजौ से शहर-बजारों मा बसीग्ये पर साख्यूं कि जात्रा बाद बि वो ज्यंूदी छन अर वो अनन्त काल तक लोकमानस का हृदय मा अनन्त काल तक ज्यूंदी रालि।’’ वास्तौ मा कालै उथल-पुथल बि यों तैं खत्म नि कैरी सक्दि। जादातर विद्वान ईं बात से सहमत छन कि - जै टैम पर आधुनिक ज्ञान-विज्ञान नि छौ,तब बि समाज छौ अर वे टैम पर वे मा केवल लोकसाहित्य ही छौ जैमा आम मनखी अफुतैं द्यख्दो छौ, अपणि सब्बि गाणि-स्याण्यूं तैं वे मा रळै देंदो छौ। आज विज्ञानौ टैम छ अर अज्यूं बि लोक साहित्य कै ना कै रूप मा ज्यूंदो छ अर जब विज्ञान ऐंच टुक्क पर होलु अर वांका बाद पत्त भुय्यां प्वड़ण वळो होलु त तब बि लोक साहित्य कखि ना कखि ज्यूंदो रालो, यो कब्बि खत्म नि ह्वे सक्दु। 

नोट -  अपणि गढ़वाळि आलेखों  पुस्तक "लोक का बाना " बटि।  (पृष्ठ 74-78)
ये आलेख का क्वी बि अंश लेखक कि अनुमति बिना 
नि लिए जै सकदा। 
                   ©संदीप रावत, न्यू डांग, श्रीनगर गढ़वाळ
                    

Sunday, January 3, 2021

मनखि अर प्रकृति कि रुमैलि दुन्या का उमैला सम्बन्धों कि कथा च "औगार "(कथाकार -महेशानन्द ) -----समीक्षक ©गीतेश सिंह नेगी, सूरत, गुजरात।

मनखि अर प्रकृति कि रुमैलि दुन्या का उमैला सम्बन्धों  कि कथा च "औगार "

                          --गीतेश सिंह नेगी

पहाडै लोकजीवन मा फ्योंली भौत खास च । अजर अमर रिस्ता च फ्योंली अर पहाड़ौ । बिगैर पाड़ै फ्योंली अर बिगैर फ्योंली पाड़ै गाणि अर खूबसूरती द्वी अद्धा अधूरी सी लग्दिन । फ्योंली सिरप एक फूल नि, हमर लोकै एक भौत ही लोकप्रिय कथै एक चिंंतौलि नायिका बि च फ्योंली जैंतैं केंद्र मा रखी तैं 'औगार' जन्न बेजोड़ कथा रची फ्योंली जन्न कुंगला अर उमैला मनै चिंतौंला लिख्वार, गढ़वाळि का जण्या मण्या कथाकार महेशानंद जीन ।

'औगार ' कथा का खास चरित्र गोबिन्दु अर फ्योंली छन। कथा मा कल्पनाशीलता देखण लेक च अर या कथा, कथाकारै बेजोड़ कल्पना शक्ति को परचौ बि दिन्द अर आखिर मा या कथा यथार्थ का धरातल परै बि अपड़ि पूरी सक्या दगड़ि खड़ी दिखेन्द।

' औगार ' कथा एक आम प्रवासी जीवनै यथार्थै धरातल परै पूरी संवेदना अर प्रेम दगडी अंग्वाल बोटि हिटणी छ जैमा कथै नायिका फ्योंली , नायक गोबिन्दु मा अपड़ि 'औगार' कन्नी च। असल मा या सिरप फ्योंली 'औगार' नि या फ्योंली नौ से सर्या पाड़ै 'औगार' च अर या औगार पहाड़ै हर वे हम जन्न ग़ोबिन्दु से च जु बालापन्न मा ही अपडा प्रेम ईं फ्योंली अर ये पाड़ बटि उन्दू जैकि दूर चली ग्ये। कथा मा ग़ोबिन्दु फ्योंली तैं खोजणु पर वा वे तैं कखि दिखेणी नि । वू फ्योंली तैं धै लगौन्द पर फ्योंली वे तैं नि दिखेन्दी किलैकि फ्योंली अपड़ि बरसों बटि हुँदा जाणी उपेक्षा से खींन्न च त वा ग़ोबिन्दु समणि नि औंदी वा वे तैं या बात बिंगौंण अर जिन्दगी कु एक खास सबक सिकौण चांदी । वा वे तैं इन्ना वुना धै मारिक अटगौंणी रैन्दी पर वेका कखि हत्थ नि औंदी । आखिर मा वा अपडा मनै 'औगार' ग़ोबिन्दु मा लगै दिन्द कि वा वे से दूर क्यो छ ? वू किलै नि भेंटे सकणा छन ? वा गोबिन्दु तैं सचै दगड़ि परचौ करान्द अर वे तैं अपड़ असल उमैला मुल्क , अपड़ि रुमैलि दुन्यम लेकि जांद। यखम कथाकारन प्रकृति कु जन्न सैंदिष्ट अर सुन्दर चित्रण करयूं छ वू अफ्फम बेजोड़ छ अर कथाकारै कलमैं सक्या अर शब्द रचणै कला को भल्ली कै परचौ दियूँ च ।

फ्योंली अर ईं रौंतेली रुमैलि धर्ती तैं भेंटेंकि ग़ोबिन्दु तैं वीन्का असीम सौन्दर्य का दर्शन हूंदीन वे तैं भारी रौंस लगदी। अब फ्योंली वेतैं अपडा सबन्धों की सम्लौंण दिलोंद की या ही वा जग्गा छ जख हमरि पैली भेंट ह्वे छाई या ही च तेरि असल धर्ती अगर ज्यू तू वीं स्वार्थ अर काजोल पाणि सी धर्ती तैं छोड़िक यख सदानि कु आ सकदी त मैं प्रेम मा त्वे खुणी त्यार आण परै बाटों पर मंदरी सी पसर्ये जौलू।

' ले ईं दा बि मिन दौ त्वे फर छोड़ी यालि। धाकनाधारि आंदी छै इख बौड़ी कि ना '

वेक बाद वा ग़ोबिन्दु हत्थ छोड़ि दिन्द। ग़ोबिन्दु तैं लग्गी जन्न वू गगराट कै उंद लमडुंणु हो ।

महेशानन्द जीक औगार कथा शुरवात मा एक प्रेम कथा की सी बाण दिखेन्द, फिर या एक खुदेड कथा जन्न ऐथिर बढ़द अर आखिर मा या पलायन पीड़ा से उपजीं कथा सी महसूस ह्वे सकद पर अगर कथा तैं पूरी तरां पढ़णा बाद अगर हम अफ्फु तैं पुछला कि ग़ोबिन्दु को छ ? फ्योंली को छ ? अर आखिर ग़ोबिन्दु अर फ्योंली कु आपस मा रिश्ता नाता सम्बन्ध क्या च ? त हम सै तरां से कथा तैं समझी सक्दो कथा का मनोविज्ञान तैं समझी सक्दोंं ।

कथा कु मनोविज्ञान बतोन्द कि औगार प्रकृति अर मनखि का प्रेम सम्बन्धों अर जन्म जन्म को दगडै अंग्वाल बोटदि,धै लगौंन्दी कथा च ज्वा मनखि अर प्रकृति का बीच बढ़दि दूरी फर वेका असल कारण पर मुख्य चरित्र फ्योंली मार्फत अपणी बात मुखर ह्वेकी रखद।

कथा मनखि तैं केवल समस्या नि बतोन्दी वे तैं अद्धबाटा मा नि छोड़दि बल्कि अपड़ि ईं उमैंली अर रुमैलि धर्ती दगड़ि अपडा जलड़ों दगड़ि जुड़णौ,जीवन मा अग्वाडी बढणौ बाटु बि बतोन्द। कुल मिलैकि मनखि अर प्रकृति का रुमैलि दुन्या का उमैला सम्बन्धो की कथा च औगार। पहाड़ से अपडा जलड़ों बटि कट्याँ- छिटग्याँ मनखि तैं अपडा जलड़ों परैंं बौड़िक आणा वास्ता फ्योंलीक धै लगौन्द कथा छ औगार ।

सवाल यो च कथा कु मुख्य पात्र ग़ोबिन्दु को च अर या फ्योंली को च ? म्यार देखणन हर वू मनखि जु अपडा जलडौं बटि कटे ग्याई वू ग़ोबिन्दु छ । मि तै लगद मि ग़ोबिन्दु छौ मि ही छौ ग़ोबिन्दु जैका सुपिन्यो मा रोज आन्द या निर्दयी फ्योंली । अर फ्योंली बणिक अपड़ि औगार मैमा लगान्द यू पाड। अगर मनै बात लिखूं त औगार ग़ोबिन्दु अर फ्योंली कथा नि या म्यारा,आपका अर पाड का अजर अमर सम्बन्धो की एक भौत ही भावुक अर कलकली कथा च । कथा का बीच मा जब ग़ोबिन्दु फ्योंली का हत्थ छोड़ी आसमान बटि लमडद अर हर्बी हर्बी वींतैं धै लगान्द ...

फ्योंली ! फ्योंली !! फ्योंली !!!
मि आणू छौं मे थै जग्वाळ ।

त इन्न सी लगद कि एक सुन्दर कथा कु कतगा मार्मिक अन्त हुण वलु च सैद,एक घड़ी आँखियूँ मा असधरि सी आ जांदीन पर ऐथिर पैढिक कथाकारै बेजोड़ कल्पनाशीलता अर असल सल्लीपन्नो परचौ मिलद जब दस वर्षों एक प्रवासी नौनु विक्की जैन गढ़वाळि कब्बी नि बोली वू। स्वीणा मा खुट्टा छिबणाणु,मुम्यांणु अर छुड़ी गढ़वाळि मा बुल्द -

'फ्योंली ! फ्योंली मि आणु छौं । मैं थैं जग्वाळ'

वेका नींद बिचलणा कुछ देर बात कथा कु अन्त मा जब विक्की अर वेका परिजन गौं जाणै बात फाइनल करदीं त ईं सब्बि बात बि अफ्फु साफ ह्वे जांद कि ग़ोबिन्दु को छाई अर फ्योंली को छाई ? ग़ोबिन्दु फ्योंली तैं क्यो धै लगाणु छाई अर फ्योंलीन वेकु हत्थ अपड़ि रुमैलि उमैली धर्ती मा लिजैकि छट्ट क्यो छोड़ि अर क्या शर्त रखी ? आखिर फ्योंली चाणी क्या छाई?

कथा का आखिर मा "माजी ! येल सच्ची गढ़वाळि बोली क्या?" जन्न लैन लिखींक कथाकारन एक जोरदार अर झन्नाटेदार सवाल वू सब्यूँक् वास्ता छोड़ि जु अपडा जलडौं बटि छटगेकि अपड़ि भाषा संस्कृति से बि छटग्ये, बिंगलै ग्यीं ।

'दूर बटि टिरेने किलक्वार अर धधडाटल सब्यूक् कंदुड फोड़ी देनी '

यू अंतिम पंक्तियों का दगड़ि कथाकारन अपड़ि लेखन क्षमता अर गढ़वाळि भाषा की शब्द सम्पदा द्वी को एक दा हौरि दमदार परचौ देकि ईं सुन्दर गढ़वाळि कथा को समापन कैरिक औगार कथा संग्रै की हौरि कथाओं तैं पढ़णै सप्रेम साधिकार न्यूतों दे ।

औगार अर फ्योंली लोककथौ कथानक भले एकसार ही छन , द्वी कथाओं मा भले ही वी अनुभव वी परिस्थिति अर वी शिक्षा छन पर फिर्बी औगार कथा मा कथाकारै बेजोड़ लेखन कला अर शब्द चित्रण शैली देखणौ मिलद दगड़ा दगड़ि गढ़वाळि भाषै हर्चदि शब्द सम्पदा अर सक्या द्वी सैंदिष्ट देखणो मिल्दीन।

लोककथा फ्योंली का अपडा जलड़ों बटि कटेकि सुख सुविधाओं वळा राजसी भोग विलास अर दिखलौटी दुन्या मा जाणै अर फिर खुदे खुदेकि घुटे घुटेकि अन्तै एक मार्मिक कथा च जैमा फ्योंली मोरणा बाद अपड़ि आखिरी इच्छा से धार मा समाधि दिए जांद अर फिर सर्या घाटी मा वा पिंगला फूल बणिक फैली जांद जबकि श्री महेशानन्द जीक औगार कथा फ्योंली का प्रेम का कारण अपडा जलडौं बटि छटग्याँँ एक प्रवासी परिवारे घर बौड़णै सुखद कथा छ। एक सुखांत कथा छ त एक मार्मिक अर दुखान्त कथा छ।

लोककथा की फ्योंली का अनुभव अर सीख औगार कथै फ्योंली अनुभव प्रेम रूप मा ग़ोबिन्दु तैं (हमतैं ) दिंद साफ साफ दिखेन्द। बोले जा सकद कि लोककथै फ्योंली चरित्रे तुलना मा औगार कथै फ्योंली जादा सशक्त ,प्रखर अर अनुभवी च वा लोककथै फ्योंली सी मासूम नि लगदि।

कथाकर गढ़वाळि भाषा शब्द सम्पदा का जणगुरु छन्न ,कलमैं बेजोड़ सल्लि छन्न । युंन अपडा शब्द शिल्पन औगार कथौ द्वी मुख्य चरित्र फ्योंली अर ग़ोबिन्दु तैं दमदार ढंग से उकर्युंं च ,संवाद असरदार छन अर कम शब्दों मा गैरि चोट करण वळा छन्न ,दुर्लभ शब्दों आणा पखाणो को भौत सुन्दर इस्तमाल हुयूँ छ। औगार कथा मा ग़ोबिन्दु अर फ्योंली की धधम धै का बीच ,लुकाच्वारी का बीच प्रकृति को जन्न सैंदिष्ट चित्र महेशानन्द जिकु खैंचियूँ छ वो दुर्लभ छ।
पौड़ी का वरिष्ठ गढ़वाळि साहित्यकार अर उत्तराखण्ड ख़बरसार का संपादक , श्री विमल नेगी जीक उक्ति कि 'वो अबि रतब्योणी कु सी गैणु छ जु औंण वळा समैमा हमतैं दिना सूरजा दरसन जरूर करालो' महेशानन्द जीक पैलो कथा संग्रै कि पैली कथा 'औगार' पैढिक एकदम सै लगद अर या कथा वूंंकी कलमे सक्या को शंखनाद करद साफ देखे सुणै बि जा सकद।

   गढ़वाळि कथा साहित्य प्रेमियूं वास्ता औगार कथा अर ये कथा संग्रै कि हौरि कथा बि पढ़ण अर ससम्मान संग्रै कैरिक धरण लैक छन।

     एक भाषा साहित्य प्रेमी रूप मा औगार कथा व हौरि कथाओं तैं आपै जग्वाळ रैली।

कथा - औगार
कथा संग्रै - औगार
कथाकार - श्री महेशानन्द
प्रकाशक - ख़बरसार प्रकाशन,पौड़ी
प्रकाशन वर्ष - 2013
कथाकार सम्पर्क सूत्र : 99274 03469

  आदरणीय श्री महेशानन्द जी अर सब्बि गढ़भाषा साहित्य प्रेमियूं तैं सादर शुभकामना दगड़ि।

©गीतेश सिंह नेगी, सूरत (गुजरात )

Saturday, January 2, 2021

कोटद्वार में "आखर संस्था" के अध्यक्ष व गढ़वाली साहित्य सेवी संदीप रावत को मिला "हिमाद्रि रत्न -वर्ष 2020 " सम्मान

**गढ़वाली भाषा -  साहित्य में दिए जा रहे योगदान  हेतु  आखर संस्था के अध्यक्ष एवं साहित्य सेवी संदीप रावत को   मिला  वर्ष 2020 का  "हिमाद्रि  रत्न "  सम्मान**
    
    कोटद्वार गढ़वाल की  वर्षों पुरानी एवं प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था "साहित्यांचल ",  द्वारा    गढ़वाली भाषा - साहित्य  के सम्बर्धन  हेतु किए जा रहे कार्यों को देखते हुए 
 आखर संस्था के अध्यक्ष व  गढ़वाली लेखक  संदीप रावत को   "हिमाद्रि  रत्न -वर्ष 2020 "सम्मान से नवाजा गया। यह सम्मान "स्व.सीताराम ढौंडियाल  " की स्मृति में प्रतिवर्ष दिया जाता है, जो कि विगत 23 वर्षों से निरन्तर सुप्रसिद्ध साहित्यकारों, समाज में विशिष्ट योगदान देने वालों को दिया जा रहा है। "हिमाद्रि रत्न सम्मान "की संचालिका डॉ. मनोरमा ढौंडियाल हैं। 
      यह सम्मान समारोह देवी मंदिर रोड, संगम रिसोर्ट, कोटद्वार मे  नए वर्ष के प्रथम दिवस यानि 01 जनवरी 2021 को आयोजित  हुआ  । सम्मान समारोह  का संचालन साहित्यकार श्री  चंद्र प्रकाश नैथानीने किया एवं  अर अध्यक्षता "साहित्यांचल साहित्यिक संस्था " के  वर्तमान अध्यक्ष   श्री एस. पी. कुकरेती ने की ।  
    इस अवसर पर "आखर "  के अध्यक्ष  संदीप रावत ने कहा कि - यह सम्मान गढ़वाली भाषा - साहित्य का सम्मान है ,  गढ़वाली भाषा -साहित्य को समर्पित "आखर " समिति का सम्मान है । संदीप रावत ने इस सम्मान हेतु डॉ. 
नन्दकिशोर ढौंडियाल , हिमाद्रि रत्न सम्मान की संचालिका डॉ. मनोरमा ढौंडियाल एवं साहित्यांचल साहित्यिक संस्था,  कोटद्वार  का आभार एवं  व्यक्त किया। 
     इस कार्यक्रम मे   वरिष्ठ साहित्यकार व  इतिहासकार डॉ . रणवीर सिंह चौहान  ,  साहित्यकार  डॉ. ख्यात सिंह चौहान , साहित्यांचल साहित्यिक संस्था के  संस्थापक सदस्य 91 वर्षीय   श्री चक्रधर प्रसाद कमलेश जी,   श्री जनार्दन  बुड़ाकोटी,  वरिष्ठ  साहित्यकार श्री अनुसूया प्रसाद डंगवाल , डॉ. श्रीविलास बुड़ाकोटी,  श्री  लल्लन   बुड़ाकोटी,  कवयित्री  रिद्धि भट्ट संगीता उनियाल , जयदीप उनियाल, मंजुल ढौंडियाल , हिमाद्रि प्रिंटिंग प्रेस के  मोहित रावत, कोटद्वार के संदीप रावत,  डॉ. नन्द किशोर ढौंडियाल के परिवारिक   सदस्यों के  साथ  कोटद्वार के अन्य प्रबुद्धजन व लेखक  उपस्थित थे। 
     इस अवसर पर डॉ. नन्द किशोर ढौंडियाल को भी उनकी सेवानिवृति पर विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया। आखर के अध्यक्ष व गढ़वाली भाषा -साहित्य सेवी संदीप रावत ने अपने गुरु डॉ. नन्दकिशोर ढौंडियाल के हाथों से यह प्रतिष्ठित सम्मान ( हिमाद्रि रत्न ) प्राप्त होने पर खुद को बहुत गौरवान्वित महसूस किया।