© संदीप रावत, श्रीनगर गढ़वाल
हर मनखि मा कुछ न कुछ हुनर य कला जरूर होंद। बस ! वीं कला य हुनर तैं पछ्याणणा जरूरत होंद, फैलास देणा जरूरत होंद । य 'कला' कबि चीजों, अनुभवाें अर ' कै टैम ' तैं अमर बणे देंद। क्वी बि कला मन तैं खुश करद, आनंद देंद। ' कला ' भावनाओं कि अभिव्यक्ति होंद। 'कला ' कथगै तरों कि होंदन। ' दृश्य कला '(विसुअल आर्ट ) मा पेंटिंग, चित्रकारी को महत्वपूर्ण स्थान छ।
इन्नी , देहरादून मा रौण वळी, भगवान गोपीनाथ जी कि धरती ' गोपेश्वर ' मा पढ़ीं - लिख्यीं अर एक कुशल गृहणी श्रीमती संगीता तिवाड़ी लखेड़ा जी मा बि गजब कु हुनर छ, गजब कि कला छ। जब वूंन मि तैं मेरु ऐन -सैन 'पेंसिल स्कैच' भेजि त मन खिलपत ह्वे ग्ये।
सै बात त य बि छ कि - वो पेंटिंग बि गजबै बणाैंदन। वूं का माँ सरस्वती जी, भगवान बद्रीविशाल जी , राधा - कृष्ण जी, माँ लक्ष्मी जी, भोलेनाथ जी, श्री राम जी आदि कि भौतै बढ़िया पेंटिंग बणाई छन अर महापुरुषाें, कलाकारों का उम्दा पेंसिल स्कैच बणायां छन ।
इन्नी , देहरादून मा रौण वळी, भगवान गोपीनाथ जी कि धरती ' गोपेश्वर ' मा पढ़ीं - लिख्यीं अर एक कुशल गृहणी श्रीमती संगीता तिवाड़ी लखेड़ा जी मा बि गजब कु हुनर छ, गजब कि कला छ। जब वूंन मि तैं मेरु ऐन -सैन 'पेंसिल स्कैच' भेजि त मन खिलपत ह्वे ग्ये।
सै बात त य बि छ कि - वो पेंटिंग बि गजबै बणाैंदन। वूं का माँ सरस्वती जी, भगवान बद्रीविशाल जी , राधा - कृष्ण जी, माँ लक्ष्मी जी, भोलेनाथ जी, श्री राम जी आदि कि भौतै बढ़िया पेंटिंग बणाई छन अर महापुरुषाें, कलाकारों का उम्दा पेंसिल स्कैच बणायां छन ।
यां का अलावा वूं कि अपणि कलम -कूंचि दार्शनिक पक्षों पर बि चलाईं छ। जन कि - वूं कि 'आँखि ' पर बणाईं पेंटिंग द्यखण लैक छ। ब्वलदन बल - 'वु आँखि आँखि नि छन जो सच तैं नि देखि सक्दि, सच्चै दर्शन नि करोंदिंन।' हमारा सुख- दुख, खुशी सब्या कुछ बतै दिंदन आँखि।
वूं कि य पेंटिंग भौत कुछ बिंगाणी छ ।
' साकेत गर्ग ' जी कु बि लेख्युं च -
"सुनो प्यारी नैना
हमेशा खुश ही रहना।
दबना न किसी गलत से,
हमेशा सच को सच ही कहना। "
स्कूल टैम बटि वूं तैं चित्रकारी अर पेंटिंग कु शौक छाै, पर वै टैम परैं प्रचार - प्रसार नि करी छौ अर ना ही वु अपणी ईं कला तैं भैर लै सकनि। वूं कि य कला काॅपी का भितर ही रै गे छै अर फिर दबीं ही रैगे।
"सुनो प्यारी नैना
हमेशा खुश ही रहना।
दबना न किसी गलत से,
हमेशा सच को सच ही कहना। "
स्कूल टैम बटि वूं तैं चित्रकारी अर पेंटिंग कु शौक छाै, पर वै टैम परैं प्रचार - प्रसार नि करी छौ अर ना ही वु अपणी ईं कला तैं भैर लै सकनि। वूं कि य कला काॅपी का भितर ही रै गे छै अर फिर दबीं ही रैगे।
भौत सुन्दर
ReplyDeleteमाँ सरस्वती सदा साथ रहे, और तरक्की दे संगीता जी को