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Friday, January 22, 2021

भावों का दगड़ा विचारों कि मजबूत जमीन कि उपज च "घुर घुघुती घुर " - संदीप रावत

समीक्षा - कविता संग्रै " घुर घुघुती घूर "
             
                कवि - गीतेश नेगी
      प्रकाशक -धाद प्रकाशन, वर्ष 2017 में प्रकाशित 
 समीक्षक - संदीप रावत, श्रीनगर गढ़वाल ,वर्ष - 2018

   
भावों का दगड़ा विचारों कि मजबूत जमीन कि उपज च "घुर घुघुती घुर " - संदीप रावत
          सक्रिय गढ़वाळि कविता तैं आज लगभग 113  साल ह्वे ग्येनि । आज गढ़वाळि कविता भौत सुन्दर ढंग से रच्येणी बि छन ,पढ़ेणी बि छन त मंचों पर्बि प्रस्तुत होणी छन। कुल मिलैकि आज गढ़वाळि कविता समाज मा भौत बढ़िया ढंग से स्थापित ह्वे ग्ये। गढ़वाळि साहित्य मा  अबारि बि सबचुले जादा  कविता ही लिख्येणी छन पर असरदार अर परिपक्व  रचना यानि जौं कवितौं प्रभाव पढ़ण- सुणणा का बाद बि रै जावु ,  कुछ -कुछ ही लिख्येणी छन।
          अबारि गढ़वाळि कवितौं तैं जै ढंग से अगन्या बढ़ण चैंद वा अन्वार अर कलेवर गढ़वाळि काव्य संग्रै   *घुर घुघुती घुर * मा बखूबी द्यिखेंद। यो  गढ़वाळि  काव्य संग्रै परदेस मा रैकि बि  अपणि थाति अर अपणि मातृभाषा मा अपणो आत्म सम्मान द्यखण वळा, गढ़वाळि भाषा-साहित्य का प्रति सदानि चितळो , नै छ्वाळि का हुणत्याळा लिख्वार,गद्य अर पद्य द्विया विधौं कु हिट्वाक गीतेश नेगी कु छ। माना कि "घुर घुघुती घुर " गातेश नेगी कि पैली प्रकाशित  गढ़वाळि पुस्तक  छ  पर  ये कवि कि   गढ़वाळि कविता , गजल , गीत ,व्यंग बर्सूं  पैलि  बटि पत्र-पत्रिकौं मा प्रकाशित होणी छन।
              जैं काव्य पोथि कि पवांण ,इंटरनेट पर गढ़वाळि भाषा-साहित्य का भीष्म पितामह आदरणीय भीष्म कुकरेती जीक लेखीं होवुन त फेर वीं पोथिक बारा मा ,वीं पोथिक रचनाकार का बारा मा लिखण सौंगु नि रै जांद। फिर्बि  "घुर घुघुती घुर "काव्य पोथि तैं पढ़ीक मि तैं  जन मैसूस ह्वे,जु विचार म्येरा दिल-दिमाग मा ऐनि  वु विचार इख मा फ्वळणै कोसिस करी।
             "घुर घुघुती घुर " काव्य संग्रै कि माळा मा गीतेश नेगी का उणसठ (59) काव्य रूपी बनि-बन्या फूल गैंठsयां छन। ईं माळा मा यो फूल छ्वट्टि -बड़ी कवितौं का रूप मा,क्वी गीत अर एक-द्वी गजल का  का रूप मा छन। ये काव्य संग्रै कि  जादातर रचना वेका अपणा गौं-गुठ्यार,अपणि थाति यानि पहाड़ से जुड़ीं  गम्भीर भाव वळि छन जो कि पढ़दरा का भितर यानि जिकुड़ि तक पौंछण मा सुफल होणी छन। ईं पोथिक कविता परिपक्व छन अर सैsर-बजारों मा रौण वळाें का दगड़ा पहाड़ मा छुट्यां सब्या लोगूं कि अन्वार दिखौंदन ,सच्चै तैं उजागर कर्दन।
           "घुर घुघुती घुर "काव्य संग्रै कि कविता आस जगौंदन । ईं पोथिक शुर्वात बि *आस कु पंछी * कविता से होंद, जै मा कवि बोल्द-
    " क्या पता ह्वे जावु इक दिन
       वूं थैं मेरी पीड़ा कु एहसास
       अर वू सैद बौड़िक आला म्यारा ध्वार
       अपणा घार ,अपणा पहाड़ "
     वास्तौ मा इक आस त सदानि लगीं रांद ,चाहे कुछ बि ह्वे जावु। आज सैर्या पहाड़ पलायनै पीड़ा  सैsणू छ। पर क्या कन्न ?  पहाड़ौ मानवीकरण कवि कु भौत बढ़िया ढंग से कर्यूं छ। चुप राैण वळा पहाड़ दगड़ा आज बिज्यां छेड़छाड़ बि त ह्वे ग्ये। पहाड़ कि दशा पर *पहाड़* रचना मा पहाड़ को मानवीकरण द्यखण लैक च अर दगड़ा -दगड़ि य रचना पहाड़ का भितरै पीड़ा तैं ये तरौं से भली कैरी छलकाणी छ -
      " म्यारू मुंडरू म्यारू उकताट
         अर मेरी पीड़ा साख्यूं कि
          जु अब बणी ग्याई मी जन
           म्यार ही पुटूग ,एक ज्वालामुखी सी
            जु कब्बि बि फुट सकद। "
       ईं पोथिक कतगै रचना चखुला,गोर ,फ्यूंली-बुरांस ,डाळि-बोट्यूं दगड़ा मनखीक रिस्तौं तैं उजागर कन्नी छन। कवितौं मा जख आम बोलचाल का गढ़वाळि शब्द ,मुहावरा छन त दुसरी तर्फां कवितौं मा अलंकार ,प्रतीक अर बिम्बों को सफल प्रयोग होयूं छ ,जो कि कवितौं तैं असरदार अर मजबूत बणौणी छन। * त्वे औण प्वाड़लु* रचना मा कवि  इन बोल्दु-
       " बसगळया  गदन्यूं का रौळियाण से पैली
          डाळ्यूं मा चखल्यूं का चखुल्याण से पैली
          त्वे आण प्वाड़लु "
* जग्वाळ * जनि रचनौं मा उपमाओं कु भौत अच्छु प्रयोग होयूं छ -
      " धुरपळी को द्वार सी ,बसगळ्या नयार सी
         द्यखणी छन बाटु आँखि
         कन्नी उळर्या जग्वाळ सी "
       उत्तराखण्ड बणणा 17-18 साल बाद बि यख पहाड़ या  आम मनखीक स्वीणा ,स्वीणा ही रै ग्येनि। कुछ लोगूं खुणी त मौज-मस्ती रै अर यख चकड़ैतूं कि एक बड़ी फौज खड़ी ह्वे । बिल्कुल सै शुर्वात करी कविन *जय हो उत्तराखण्ड * कविता कि-
        " गलदरूं की , ठेकेदारूं की
           जय हो उत्तराखण्ड त्यारा सम्भलदारूं की |"
       यख विकास का वास्ता क्षेत्रवाद,जातिवाद,भै-भतीजावाद, भिरस्टाचार,बेरोजगारी अर पलायन कि *केर * बंधण भौत जरूरी छ ,इलैई त कवि  छ्वट्टि कविता *केर * मा बोल्द -
"क्षेत्रवाद ,जातिवाद,भ्रस्टाचार ,मैंगै ,बेरोजगारी ,
  अशिक्षा,पलायन
  जरा बांधा धौं केर यूं कि पहाड मा
अगर बांधि सक्दौं त। "
            गीतेश नेगी व्यंगकार बि च , इलै वे कि अधिकतर कविता  व्यंग शैली मा छन । गंडेळ ,घिन्डुड़ी ,बिरळु, कटगळ, विगास, सरकार ,चुनौ ,डाम ,योजना, ख्वींडा सत, ठेकेदारी , गोर आदि कविता व्यंग्यात्मक शैली मा छन। * गोर * कविता कि इक झलक -
       " सब्यूं का छन  अपणा - अपणा ज्यूड़ा
          अपणा- अपणा कीला
         अर अपणा- अपणा गोर  , बंध्यां साख्यूं बटि "
          जख भैर का परवाण बणि जावुंन त कन क्वै होण वखा भलो। ईं बात तैं  छ्वट्टि सि  कविता * परवाण * भलि कैरीक बिंगौंद -
    " वू घार ,वू गौं ,वू समाज ,वू मुल्क ,वू देश
      जखै तखि रै जांदिन ,
      जख थर्पे जांदिन, भैरक बणीक परवाण। "
      य बिडम्बना ही च  कि गढ़वाळ मा रै कि अर गढ़वाळि ह्वेकि बि हमुतैं गढ़वाळि नि आंदि। * किराण * कविता ईं बिडम्बना तैं उजागर कर्द -
       " निर्भगी घुन्ड-घुन्डौं तक फुक्ये ग्यो
          पर किराण अज्यूं तक नि आई ?
           मी तुम्हारी मातृभाषा छौं
           मेरी कदर अर पच्छ्याण
            तुम तैं अज्यूं तक नि ह्वाई। "
       गीतेश नेगी मा बि घुघुती जन मयळदुपन च अर कारिज का प्रति उन्नि एकाग्रता बि छ। परदेस मा रै कि बि वु सदानि अपणि माटि,मातृभाषा से जुड्यूं छ।   अपणि पैली गढ़वाळि पोथि कु नौ *घुर घुघुती घुर * रखीक वेन  ईं बात कि सार्थकता बढ़ै। पहाड़,अपणि बोली-भाषा तैं ज्यूंदो रखणा वास्ता यु मयळदुपन अर या एकाग्रता सब्यूं मा  होण जरूरी छ।   शीर्षक कविता * घुर घुघुती घुर * एक मार्मिक कविता छ। वास्तौ मा आज यख  पहाड़ मा घुघुती वूं सब्यूं खुणी घुरणी छ जो स्यकुंद बौग मारीक चली ग्येनि ,अर फेर बौड़िक नि ऐनि। शीर्षक कविता कि शुर्वात-
       " हैरी डाँड्यूं का बाना, हिंवाळी काँठ्यूं का बाना
          बांजा रै जु स्यारा रौंतेली वूं पुंगड्यूं का बाना
          घुर घुघुती घुर। "
     फ्यूंली,बुरांस अज्यूं बि उन्नि खिलदन ,हिंसोळा-किनगोड़ा-काफळ  अपणा टैम पर अज्यूं बि पकदन पर  वूं तैं जिमण वळा यख अब क्वी-क्वी ही रयांन। इलै ही *त्वे बिना * कविता मा कवि लिख्द-
         " खिल्यां फूल फ्यूंली अर बुरांस का ,
             पंदेरा कि बारामासी छ्वीं-बत्था 
           सब्बि बैठ्यां छन बौग मारीक चुपचाप त्वे बिना " 
         ईं पोथिक आखरी कविता * वूंल बोलि * छ ,ज्वा उत्तराखण्ड कि दशा तैं उजागर कर्द कि पहाड़ौ विकास पहाड़ मा ना बल्कन दिल्ली-देरादूण मा होणू छ। ईं कविता मा कवि का विचार अर भाव ये तरौं छन -
           " हमारू पाणि कनै पैटि
              हमारि सड़क कख बिरड़ि
              हमारा डाक्टर बिमार छन कि व्यवस्था .... "
             ईं बात मा क्वी सक-सुबा नी कि - *घुर घुघुती घुर*  अच्छी रचनौं कि  पोथि छ जै मा भाव पक्ष का दगड़ा विचार पक्ष बि भौत मजबूत छ। शिल्प अर शैली का हिसाबन बि ईं पोथिक अधिकतर रचना बढ़िया छन। बोलि सकदां कि - ईं पोथिक  रचना   पढ़णौ बाद यि रचना पढ़दरा पर बाद तक असर बि डलणी छन   ज्यांका बान यि कविता  रच्ये ग्येनि। ईं पोथिक रचना अनुभव जन्य छन। आदरणीय भीष्म कुतरेती जी ईं पोथिक भूमिका मा ठिक ही लिखदन कि - "गीतेश कि कविता मा कथगै रंग-बिरंगा रस दिख्येंदन। "
      भाषा अर शब्दोंक हिसाब से कुछ एक जगौं पर कमी सि लग्दि। ईं पोथि मा कुछ-कुछ जगौं पर प्रुफ कि गल्ति बि रै ग्येनि जो कि थ्वड़ा भौत अक्सर सब्या गढ़वाळि भाषा कि पोथ्यूं मा रै जांद। गढ़वाळि भाषा कि मजबूती अर विकास का वास्ता अब गढ़वाळि का सब्या लिख्वारूं तैं मानकीकरण कि तर्फां बि बढ्यूं चैंद। वूं शब्दों जादा प्रयोग कन्न चैंद जु सब्यूं का बिंगणा मा आसानि ऐ जावुन। सब्यूं का लेखन मा क्रिया रूप/ क्रियापदों मा बि एकरूपता अब जरूरी छ।
             भला आकार,सुन्दर मुखपृष्ठ का दगड़ा  ठेठ गढ़वाळि शब्दूं को प्रयोग ईं पोथि मा होयूं छ। गढ़वाळि साहित्य पिरेम्यूं तैं, नै छ्वाळि का लिख्वारूं तैं /कविता रंंचदरों तैं , हम सब्यूं तैं हौरि गढ़वाळि किताब्यूं दगड़ा  *घुर घुघुती घुर * जरूर पढ्यूं चैंद  अर ईं पोथिक स्वागत हम सब्यूं तैं कन्न चैंद। गीतेश नेगी तैं गढ़वाळि भाषा कि  ईं सुन्दर  पोथि का वास्ता भौत-भौत बधै अर हार्दिक शुभकामना। 

नोट  - य समीक्षा धाद, रंत रैबार आदि मा प्रकाशित छ (  वर्ष - 2018 )
                                         संदीप रावत 
                                न्यू डांग, श्रीनगर गढ़वाल 

                  
                            


2 comments:

  1. नै छ्वाळि का हुणत्याळा लिख्वार गीतेश भै का कविता संग्रै "घुर घुघूती घुर" कि सुंदर समीक्षा करि आपल।पोथि कि सरल सहज विषय वस्तु कि अन्वार झलकणि आपै समीक्षा मा। सादर प्रणाम साधुवाद 🙏 दगड़ि गढ़भाषा पिरेम्यूं खुणि गढ़व्वळि काव्यधारा कि यीं पोथि का वास्ता गीतेश भै खुणि बि खार्यूं खार्यूं बधै छन ।🙏

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    1. हार्दिक धन्यवाद 🙏

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