मेरी प्रकाशित पुस्तकें :-


(1) एक लपाग ( गढ़वाली कविता-गीत संग्रह)- समय साक्ष्य, (2) गढ़वाळि भाषा अर साहित्य कि विकास जात्रा (गढ़वाली भाषा साहित्य का ऐतिहासिक क्रम )-संदर्भ एवं शोधपरक पुस्तक - विन्सर प्रकाशन, (3) लोक का बाना (गढ़वाली आलेख संग्रह )- समय साक्ष्य, (4) उदरोळ ( गढ़वाली कथा संग्रह )- उत्कर्ष प्रकाशन ,मेरठ


Showing posts with label श्रीनगर गढ़वाल।. Show all posts
Showing posts with label श्रीनगर गढ़वाल।. Show all posts

Friday, December 17, 2021

बडियारगढ़ (टिहरी गढ़वाल )/रा. इ. कॉ. धद्दी घंडियाल ' द्वारा मतदाता जागरुकता गोष्ठी(बड़ियार)/महिला चौपाल'का आयोजन.. संदीप रावत

बडियारगढ़ (टिहरी गढ़वाल )...
   ' मतदाता जागरुकता गोष्ठी(बड़ियार)/महिला चौपाल'
  
       स्वीप कार्यक्रम /'मतदाता जागरूकता 'अभियान के अंतर्गत कल दिनाँक 17/12/2021 को बडियार में रा.इ.का.धद्दी घंडियाल द्वारा महिला चौपाल का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम से पहले रा.इ.का.धद्दी घंडियाल के बच्चों एवं शिक्षक -शिक्षिकाओं  एवं कर्मचारियों द्वारा विद्यालय से लेकर बडियार तक मतदाता जागरूकता रैली निकाली गई।
     विद्यालय द्वारा आयोजित इस महिला चौपाल में  माननीय उपजिलाधिकारी (कीर्तिनगर )महोदया  एवं माननीय तहसीलदार महोदय श्री सुनीलराज जी द्वारा भी प्रतिभाग किया गया। इस कार्यक्रम में क्षेत्र पंचायत सदस्य बडियार, प्रधान जी बडियार सहित समस्त अध्यापकगण, कर्मचारी एवं इस क्षेत्र की मातृशक्ति उपस्थित थी।  इस कार्यक्रम में विद्यालय के बच्चों ने मतदाता जागरूकता गीत की सुन्दर प्रस्तुति दी।
                                           संदीप रावत
                                 प्रवक्ता (रसायन विज्ञान )
                        रा.इ.का.धद्दी घंडियाल, बडियारगढ़।

Sunday, December 5, 2021

एक समळौण्या दिन: सैंतीस बर्ष बाद परम पूजनीय प्रिंसिपल साब जी का दर्शन--©संदीप रावत, श्रीनगर गढ़वाल।

04 दिसंबर 2021 : मेरा वास्ता एक समळौण्या दिन।🙏 🙏सैंतीस बर्ष बाद परम पूज्य प्रिंसिपल साब जी का दर्शन 🙏🙏
 
    
     
   

 04 दिसंबर 2021 कु दिन मेरा वास्ता एक खास दिन बणी गे। 03 दिसंबर ब्याखुनि दौं  फोन ऐ कि - 'पछयाण जरा कि मि कु ब्वन्नू छौं?' मिन बोलि- 'मि आवाज़ त पछयाणु छैं छौं, पण...'
    तब उनै बटि आवाज ऐ - 'संजी, दिनेश, बन्टू अर तू दगड़ी त पढ़दा छा, खेलदा छा। अरे! मि संजी  पिताजि ब्वन्नू छौं।'
    प्रिंसिपल साब ब्वन्ना छा हैंकि तरफां बटि। जी हाँ, हमारा प्रिंसपल साब। 🙏मेरा पिताजि का, मेरा अर वेदीखाल इंटर कॉलेज का प्रिंसपल साब। एक कुशल अर आदर्श अधिकारी, जो बाद मा शिक्षा विभागा एक  बड़ा अधिकारी यानि 'ए. डी. बेसिक बनारस (उ. प्र.)'बटि रिटैर ह्वेनि। 
   वूंन फिर बोलि-  'ब्यट्टा! मि ईं तरफां अयूं छौं काम से। तेरा पिताजि का दर्शन कन्न चांदु अर त्वे थैं बि मिलण चांदु। भोळ सुबेर  आठ बजि तक श्रीनगर ऐ जौंलु तुमारा घर परैं।'
       यो सुणीक  मि तैं जो खुसी ह्वे, वु यख मा व्यक्त कन्न मुश्किल छ। मि तैं बि भारी रौंस लगिगे वूं से मिलणा कि- कब सुबेर होलि,अर कब मि प्रिंसपल साब जी का दर्शन करलु । मिन जब पिताजि तैं य बात बतै त पिताजि बि भौत खुश ह्वेनि, किलैकि जब पिताजि टीचर बणीनि इंटर कॉलेज वेदीखाल त प्रिंसपल साब जीन ही पिताजि तैं ज्वाइनिंग दे छै। जब मि दर्जा 7-8 मा पढ़दु छौ त वे टैम  परैं  बि वु वखि छा। भौत सारि बात याद ऐ गे छै बाळपन कि। दिनेश (देवेश )अर बन्टू का पिताजि बि वेदीखाल इंटर कॉलेज मा पिताजि दगड़ा टीचर छायि। प्रिंसपल साब ' जीन भौत नौ  कमै अर  वु शिक्षा विभागा एक भौत सक्रिय अधिकारी छा।
      ठिक आठ बजि परम पूजनीय 'प्रिंसपल साब ' श्रीनगर पौंछि गे छा अर हमारा घर परैं आठ बजिक दस मिन्ट परैं। वूं दगड़ा वूं का  रिस्तेदार बि छा। मिन ठीक  सैंतीस साल बाद वूं देखि। मिन वूंका खुट्टयों मा मुंड नवायि। वु मेरा अर पिताजि का गौळा भिंट्येनि। लगभग सवा घंटा हमारा यख रैनि। पण, इथगा कम टैम मा बि इथगा अपण्यास  दिखे अर छवीं- बत्थ ह्वे गैनि कि, यख मा बिंगौण मुश्किल छ। हमारु घौर अर मि बि धन्य ह्वे गे छौ आज।  प्रिंसिपल साब जी कु आशीष मिलि। बाळपन बटि मि भौत संकोची स्वभौ कु छौ,पण  प्रिंसिपल साब जीन बोलि कि - ' ब्यट्टा आज मि त्वे देखिक भौत खुश छौं। बस! इन्नी बणी रैयि अर होंदु -खांदु (उन्नति ) रैयि।' बड़ो आशीर्वाद मिलि अर ब्याळी मि तैं ये आशीर्वादा रूप मा एक हौरि 'उज्याळे मुट्ठ ' सि बि दिख्ये।
      जी हाँ। प्रिंसपल साब जी कु नौ छ -- "श्री पान सिंह बिष्ट " अर उमर छ - पिच्चासि साल (85वर्ष )। पण, ईं उमर मा बि फिट-फोर छन। अज्यूँ बि वी चमक अर
चळक-मळक(रौनक )। मेरा पिताजि अर प्रिंसिपल साब जी दगड़ा का अब तीन -चार गुरुजी ही ईं दुन्या मा छन। मेरा पिताजि बि अबारि बय्यासी साल (82बर्ष )का छन।
       परम श्रद्धेय श्री पान सिंह जीन सन्1967 मा उनतीस सालै उमर मा एक साल वेदीखाल इंटर कॉलेज मा प्रिंसिपल का रूप मा ऑफिसिएट करि अर सन् 1968 मा प्रिंसिपल बणि गैनि । लगभग बाईस साल (22 वर्ष ) वेदीखाल इंटर कॉलेज मा सेवा कन्ना बाद  बी.एस.ए.(BSA) टिहरी, ऐटा अर सहारनपुर डी. आई.ओ. एस. (DIOS ) रैनी अर वां का बाद द्वी साल बनारस मा रैकि  सन् 1996 मा 'ए.डी.बेसिक 'का पद बटि रिटैर ह्वेनि।
                 नमन परम पूज्य गुरुजी अर प्रिंसिपल साब जी तैं।🙏🙏
                                          संदीप रावत
                              न्यू डांग -ऐठाणा, श्रीनगर गढ़वाल।

Wednesday, June 2, 2021

"नहीं रहे उच्च संस्कारों से परिपूर्ण विद्वान लेखक , एक गृहस्थ संत , समाज सेवी एवं अनुकरणीय श्रद्धेय श्री शिवराज सिंह रावत निःसंग जी" : संदीप रावत, श्रीनगर गढ़वाल।

 "नहीं रहे उच्च संस्कारों से परिपूर्ण विद्वान लेखक , एक गृहस्थ संत , समाज सेवी एवं अनुकरणीय  श्रद्धेय श्री शिवराज सिंह रावत निःसंग जी"
🙏🙏अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि 😭🙏🙏

       उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र ने देश को कई यशस्वी सैनिक, साहित्यकार, विद्वान, इतिहासकार, भाषा वैज्ञानिक और चिंतक दिए हैं, जिन्होंने अपनी मेहनत व प्रतिभा से ख्याति अर्जित की। उनमें एक प्रमुख नाम श्रद्धेय श्री शिवराज सिंह रावत निःसंग जी का है जो कल 02 जून सन् 2021 को सुबह साहित्य सृजन करते हुए 94 वर्ष में अनंत यात्रा पर चले गए हैं। उनका जन्म 15 फरवरी 1928 को अपने ही गाँव देवर -खडोरा(गोपेश्वर )जिला- चमोली में हुआ था। श्रद्धेय श्री शिवराज सिंह रावत नि :संग जी अभी देवर -खड़ोरा ( गोपेश्वर ) में ही रहते थे।

             उत्तराखंड की यह दिवंगत महान विभूति हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी, गढवाली भाषा पर मजबूत एवं समान अधिकार रखती थीं । कहा जा सकता है कि - उनकी हिन्दी, अंग्रेज़ी, संस्कृत एवं गढ़वाली भाषा पर बहुत अच्छी पकड़ थी। वे उच्च कोटि के लेखक एवं चिंतक ही नहीं बल्कि एक तरह से हिमालय की उच्च कोटि के साधक भी थे। वे एक गृहस्थ संत थे तो साथ ही एक पत्रकार भी थे। वे एक तरह से ऋषि परम्परा एवं सहज-सरल, सौम्य व्यक्ति थे। उनके दिवंगत होने से साहित्य की ऋषि परम्परा क्षेत्र में जो स्थान रिक्त हुआ है उसकी पूर्ति असंभव है। उनके लेखन के प्रमुख विषय आध्यात्म, दर्शन,इतिहास संस्कृति, भाषा आदि थे। विपरीत परिस्थियों में एवं जीवन के अंतिम क्षणों तक भी वे साहित्य सृजन करते रहे।
       श्रद्धेय श्री शिवराज सिंह रावत निःसंग जी पहले भारतीय सेना में सेवारत रहे तथा देश की सेवा की। सैन्य सेवा से अवकाश प्राप्त करने के पश्चात वे उत्तर प्रदेश, स्थानीय निकाय प्रशासनिक सेवा में भी रहे। ।वे ऐसे विरले एवं मूर्धन्य साहित्यकार थे जिन्होंने सैन्य सेवा के पश्चात् साहित्य सृजन किया ।सामाजिक सरोकारों से भी उनका गहरा जुड़ाव था।
       यह एक अद्भुत बात है कि जिस उम्र में व्यक्ति शिथिल हो जाता है, आराम करना चाहता है उस उम्र के पड़ाव में उन्होंने लेखन शुरू किया और समाज को उच्च कोटि का साहित्य दिया।
      यह मेरा सौभाग्य है कि ऐसे मनीषी का आशीर्वाद मुझे प्राप्त हुआ। उत्तराखंड के विद्वान वरिष्ठ साहित्यकार, भाषाविद श्रद्धेय श्री ' नि:संग ' जी के साथ मेरी कई यादें जुड़ीं हैं । मैंने उन्हें प्रथम बार जून, वर्ष -2010 में पौड़ी में साहित्य अकादमी, दिल्ली द्वारा गढ़वाली भाषा पर आयोजित कार्यक्रम में देखा था। परन्तु उनसे आमने -सामने प्रथम बातचीत 14 सितंबर 2011 को हुई। उत्तराखण्ड खबरसार एवं रंत रैबार के गढ़वाली आलेखों के माध्यम से उनसे पहले ही साहित्यिक परिचय हो चुका था। उनके द्वारा मुझे प्रेषित सुन्दर हस्त लिखित पत्र अब मेरे जीवन की अमूल्य धरोहर हैं। चिठ्ठीयों के माध्यम से भी उन्होंने मेरा सदैव उत्साहवर्धन एवं मार्ग दर्शन किया।

          जब 'मानव अधिकार के मूल तत्व ' पुस्तक का लोकार्पण 12 दिसंबर,वर्ष 2012 को गढ़वाल मंडल विकास निगम, श्रीनगर गढ़वाल में प्रसिद्ध संस्कृतिकर्मी प्रो. डी. आर. पुरोहित एवं प्रो. रामानन्द गैरोला जी के हाथों हुआ था तो श्रद्धेय श्री नि:संग जी ने इस अवसर पर मुझे भी आमंत्रित किया था।
      11 नवम्बर,वर्ष 2016 को जब उनके गाँव ' देवर - खडोरा' ( गोपेश्वर )' जाने का सौभाग्य तो मैंने यह प्रत्यक्ष देखा एवं महसूस किया कि - वास्तव में श्रद्धेय श्री 'नि:संग ' जी इस उमर में भी एक ऋषि की तरह अपने साहित्यिक कर्म में लगे है। उनके साथ भाषा - साहित्य सम्बंधी बहुत सारी बातें हुईं थीं। मैंने उनसे उनके लेख " गाड़ म्यळैकि गंगा अर बोली म्यळैकि भाषा " के सम्बन्ध में भी चर्चा की जो कि मैंने गढ़वाली पाक्षिक 'उत्तराखंड खबरसार ' एवं गढ़वाली साप्ताहिक ' रंत रैबार ' में पढ़ा था और बाद में उन्होंने स्वयं भी मुझे वह आलेख डाक द्वारा प्रेषित किया था । यह एक गढ़वाली भाषा सम्बन्धी सार गर्भित आलेख था। वर्ष 2014 में मेरी गढ़वाली गद्य की पुस्तक 'गढ़वाळि भाषा अर साहित्य कि विकास जात्रा' (WINSER PUBLICATION, DEHRADUN) की भूमिका लिखकर उन्होंने मुझे कृतार्थ किया।
      डॉ. चरण सिंह 'केदारखण्डी ' जी द्वारा सम्पादित श्रद्धेय श्री नि:संग जी के 'अभिनन्दन ग्रन्थ -शिवराज सिंह रावत 'नि:संग '(प्रकाशन वर्ष 2018) में भी मेरा उनके साथ संस्मरणात्मक आलेख प्रकाशित है, जिसके कुछ अंश यहाँ पर आ चुके हैं ।
      श्रद्धेय श्री नि:संग जी बड़े धार्मिक एवं उच्च कोटि के लेखक थे। उनके द्वारा दर्जनों लिखित पुस्तकाें के विषय भी भिन्न - भिन्न थे। जिनमें महत्वपूर्ण पुस्तकें- गायत्री उपासना एवं दैनिक वंदना ,श्री बदरीनाथ धाम दर्पण, उत्तराखंड में नंदा जात, कालीमठ -काली तीर्थ ,पेशावर गोलीकांड का लोह पुरुष(वीर चंद्र सिंह गढ़वाली ),भारतीय जीवन दर्शन और सृष्टि का रहस्य, केदार हिमालय और पंच केदार , षोडस संस्कार क्यों, गढ़वाली -हिंदी व्याकरण, भाषा तत्व और आर्य भाषा का विकास,भारतीय जीवनदर्शन और कर्म का आदर्श, गीता ज्ञान तरंगिणी, 'मानव अधिकार के मूल तत्व ' आदि प्रमुख हैं।
       उत्तराखण्ड भाषा संस्थान द्वारा वर्ष 2010-11 के लिये उन्हें ‘गुमानी पंत साहित्य सम्मान’, वर्ष 1997 में उमेश डोभाल स्मृति सम्मान, चन्द्र कुंवर बर्त्वाल स्मृति हिन्दी सेवा सम्मान - 2005, उत्तराखण्ड सैनिक शिरोमणी सम्मान - 2008, गोपेश्वर में पहाड़ सम्मान, चमोली जिला पत्रकार परिषद द्वारा स्व. रामप्रसाद बहुगुणा स्मृति पुरस्कार, साहित्य विद्या वारिधि सम्मान सहित उन्हें अन्य कई संगठनों/संस्थाओं द्वारा समय -समय पर सम्मानित किया गया ।
         गढ़वाली साहित्य के उन्नयन में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है । अखिल गढ़वाल सभा देहरादून के सौजन्य से स्व. भगवती प्रसाद नौटियाल जी के प्रबंध संयोजन में संस्कृति विभाग, उत्तराखंड द्वारा सन -2014 में प्रकाशित' गढ़वाली-हिन्दी-अंग्रेजी ' शब्दकोश में 6000 से अधिक गढ़वाली शब्द देकर इस शब्दकोश निर्माण में उनकी अहम भूमिका रही।पहाड़ की वीरांगना तीलू रौतेली पर आधारित उनका गढ़वाली खण्डकाव्य ‘वीरबाला’, गढ़वाली गीतिकाव्य ‘माल घुघूती’ उनकी महत्वपूर्ण गढ़वाली रचनाएं हैं। गढ़वाली पाक्षिक समाचार पत्र 'उत्तराखंड खबरसार ' एवं गढ़वाली साप्ताहिक ' रंत रैबार ' में उनके बहुत सारगर्भित, शोधपरक गढ़वाली लेख छपे।
      वर्ष 2010 में प्रकाशित उनकी 'भाषा तत्व और आर्य भाषा का विकास' पुस्तक भाषा विज्ञान सम्बन्धी एक महत्वपूर्ण पुस्तक है।यह पुस्तक भाषा के विकास के साथ -साथ हिंदी एवं गढ़वाली भाषा की उत्पति की नवीन अवस्थापनाओं को स्थापित करने में सफल रही है। जीवन के अंतिम दिनों में उनके द्वारा कुछ सृजित साहित्य अभी अप्रकाशित रह गया है।
       उनकी कमी जीवन में सदैव खलेगी। देश सेवा के बाद अपना सम्पूर्ण जीवन साहित्य की सेवा में लगाने वाले, साधक, समाज सेवी, हम सबके प्रेरणा श्रोत श्रद्धेय श्री शिवराज सिंह रावत नि:संग जी को मेरी एवं आखर समिति की ओर से भावभीनी श्रद्धांजलि एवं शत -शत नमन। ईश्वर उनकी पुण्य आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दे एवं उनके परिवार को इस बड़ी वेदना को सहने की शक्ति दे। ॐ शांति, शांति 🙏 🙏😭
                                          संदीप रावत
                                न्यू डांग ,श्रीनगर गढ़वाल।


Wednesday, May 26, 2021

" गढ़वाळि लिख्वार संदीप रावत दगड़ा सुशील पोखरियाल जी कि छ्वीं - बत्थ "

"साहित्यकार संदीप रावत जी दगड़ा सुशील पोखरियाल जी कि छ्वीं - बत्थ"
🙏🌹✍️🤔🌅✍️🌳🌹🌥️✍️🌻🙏
सु.पु. --  गढ़वळि साहित्य जात्रा की सुर्वात आपल कब कर कन करि ?
सं.रा. --  बाळपन बटि गढ़वाळि गीत भला लगदा छायि, पुराणा - पुराणा गीत लगांदु छायि अर कबि - कबि त अपणा आप गीत मिसाणै कोसिस बि कर्दु छायि। जब मि दर्जा 8 मा रै होलु त मिन एक गीत लिखी छौ - " कन लोग रैना वो जो मातमा छायि, तपस्या कैरिक बि वो दुनियाम नि रायि। एक दिन हमुन बि दुनिया से चली जाण, धन - दौलत सब कुछ यखि छोड़ि जाण।" इन इन्नि कैरिक सुर्वात ह्वे। गढ़वाळि गद्य मा लिखणौ सुर्वात आदरणीय विमल नेगी जी का सम्पादन मा पौड़ी बटि छप्येण वळा गढ़वाळि साप्ताहिक समाचार पत्र 'उत्तराखंड खबरसार' अर आदरणीय ईश्वरी प्रसाद उनियाल जी का सम्पादन मा छप्येण वळा गढ़वाळि साप्ताहिक समाचार पत्र 'रंत रैबार' से 2009 का वार ध्वार ह्वे। जादातर लेख मेरा गढ़वाळि भाषा साहित्य सम्बन्धी होन्दा छायि।
सु.पु.--  आपल बाळपन की बात करि त इन बथावा कि आपौ प्रारम्भिक शिक्षा कख ह्वे अर उबारि प्राथमिक विद्यालयों को सजबिज कन छाइ ?
सं.रा.--  मिन आधारिक विद्यालय बटि दर्जा पांच पास करि। दर्जा दस तक मेरी पढ़ै-लिखै वेदीखाल मा हि ह्वे। दर्जा 2-3 बटि कापी, पेंसिल .... गुरजि लोगूं मार बि खांदा छायि। उठ - बैठ, पाणि सरणु, लखड़ा ल्याणु सब्बि धाणि होंदु छौ। प्राइमरी बटि हि भारि रौंस रांदि छै कि कब आलो पंदरा अगस्त अर छब्बीस जनवरी। कब लगौंलु मि गीत।
सु.पु.--  पाटी- ब्वळख्या बटि आज हम कंप्यूटर का युग मा एग्यों। बाळपन मा गीत लगाणै रौंस अर लगन बटि सुर्वात करि आज आप एक प्रतिष्ठित साहित्यकार छन। ईं साहित्यिक जात्रा मा आपल कै उकाळ - उंदार बि बोकि ह्वेली। कुछ वांका बारा मा .....
सं.रा.--  साधुवाद आपतैं। पर मि क्वी प्रतिष्ठित साहित्यकार नि छौं। अब्बि सिखणू, बिंगणू अर गुणणै कोसिस कनू छौं। सब्या वरिष्ठ अर अग्रज साहित्यकारों से भौत कुछ सिखणौ मिलि। कतगौं न अड्योणै कोसिस बि कैरी। कतगै दौं ज्यू - पराण खट्टो बि ह्वे, पर जात्रा जारी रै। लेखन अर रचनौ मा परिपक्वता त पढ़ण - लिखण से ही आंद।
सु.पु.--  कतगा इ वरिष्ठ लिख्वार ब्वलदन कि गढ़वाली भाषा मा किताब त भौत छपेणी छन पर गुणवत्ता कम च। अर कुछ ब्वलदन कि चलो ल्यखणा त छैं छन। आप क्य स्वचदन ?
स.रा.--  सब्यूं का अपणा - अपणा मत छन। अब्बि संग्ति लिख्येणू भौत जरूरी छ, गद्य अर पद्य द्विया विधाओं मा। बाद मा बगत का दगड़ि छंटणी अपणा आप ह्वे जाली। अब्बि 80 - 85% लिख्वार कविता पर ही पिलच्यां छन। नै छ्वाळि को रुझान गद्य की तर्फां कम च।
सु.पु.--  उत्तराखंड मा अर वांसे भैर बि अनेक संस्था कवि सम्मेलन अर गीत - संगीत का कार्यक्रम उर्याणी छन। यांका बावजूद बि शहरों अर गौं का कस्बा - बाजारों मा नै छ्वाळि गढ़वळि मा बच्याण से परहेज़ कनी च। क्य बात ह्वेली ?
सं.रा.--  संस्था अपणि - अपणि तर्फां बटि काम त कनीं छन, पर बाजि - बाजि दौं त खानापूर्ति सि बि नजर आंद। जब तक धरातल परै काम नि करे जालु; आम लोग अपणि मातृभाषा का प्रति हीन भावना नि छ्वाड़ला; भाषा रोजगार से नि ज्वड़े जालि, तब तलक चुनौती त छैंयी छन। कै बि भाषौ व्यावहारिक पक्ष महत्वपूर्ण होंद। भाषा की भल्यार अर संवर्द्धन का वास्ता ब्वलदरा, बिंगदरा, लिखदरा अर पढ़दरा बि चैंणा छन।
सु.पु.--  रावत जी, आप लगातार लेखन से  गढ़वळि साहित्य भण्डार की जै बिरदि कना छौ। अबि तलक आपकि पांच पोथि प्रकाशित ह्वेगिन। कुछ वूंका बारा मा बि प्रकाश डाला।
सं.रा.--  मेरि पैलि गढ़वाळि पुस्तक 'एक लपाग' कविता - गीत संग्रै का रूप मा सन् 2013 मा छप्ये। फिर मिन 192 पेज की एक गढ़वाळि गद्य की पुस्तक 'गढ़वाळि भाषा अर साहित्य कि विकास जात्रा' लेखि, ज्वा सन् 2014 मा प्रकाशित ह्वे। ईं किताब मा समग्र रूप से गढ़वाली भाषा मा गद्य - पद्य, सब्बि विधाओं जनकि भाषा - विज्ञान, अनुवाद, काव्य, कथा, व्यंग्य, निबंध, नाटक, उपन्यास, व्यंग्य चित्र, चिट्ठी पतरि, समालोचना, गढ़वाळि समाचार पत्र - पत्रिकौं कु इतिहास इकबटोळ करने कोसिस कर्यीं छ। 
सन् 2016 मा 'लोक का बाना' (गढ़वाली आलेख संग्रह) प्रकाशित ह्वे। जै मा लोक संस्कृति सम्बन्धी आलेख छन। मेरी चौथि गढ़वाळि पोथि 'उदरोळ' (गढ़वाली कथा संग्रह) सन् ,2017 मा छप्ये। जैमा लोक समाज की छ्वट्टि - छ्वट्टि 34 गढ़वाळि कथा छन। अर पांचवीं किताब 'तू हिटदि जा' (गढ़वाली गीत संग्रै) 2019 मा प्रकाशित ह्वे।
सु.पु.-- गढ़वळि भाषा का आप एक कर्मठ अर सक्रिय लिख्वार छन। आशा कर्दौं कि अगनै बि गढ़वळि साहित्य भंडार मा अग्याळ देणा रैल्या। अब एक आम शिकैत लिख्वारों की या बि रैंद कि अपणि गैड़ि पैंसा खर्च करि किताब छपवाओ, फिर सप्रेम भेंट कारों। वांका बावजूद बि लोग नि पढ़दा। किताब बिकणि नि छन। क्य ब्वन च्हेल्या ?
सं.रा.--  कतगै दौं इन द्यखण अर सुणणा मा बि आयि कि गढ़वळि भाषा का लिख्वार हि एक हैंका लिख्यूं नि पढ़णा छन; आम पाठक त भौत दूरै छ्वीं‌ छन। गढ़वळि साहित्य की वितरण व्यवस्था बि अबि ठिक ढंग से नि ह्वे सकणी छ। लिख्वारों का घर मा हि चट्टा लग्यां‌ छन अपणि किताब्यूं का। कुछ - कुछ जगा मेळा - थौळों, साहित्यिक कार्यक्रमों मा गढ़वाळि साहित्य का स्टाल लगणा छन, य एक अनुकरणीय पहल छ। पर आज यांसे बि बढिक काम कन्नै जर्वत छ। सब्बि सम्पादक, प्रकाशक अर लिख्वार आपस मा मिलिक तैं क्वी कारगर योजना बणै सक्दन। , जांसे गढ़वाळि साहित्यौ प्रचार - प्रसार हो अर आम लोगूं की पौंच मा बि किताब होवुन।
सु.पु.--  गढ़वळि भाषा का प्रचार - प्रसार मा सोशल मीडिया की भूमिका का बारा मा आप क्य स्वचदन ?
सं.रा.--  भाषा का प्रचार - प्रसार मा सोशल मीडिया आज बड़ी भूमिका निभौणू छ। स्थापित साहित्यकारों का दगड़ा - दगड़ नया लिख्वारों का वास्ता बि यो एक अच्छो अर बड़ो मंच साबित होणू छ। लोग यूट्यूब अर फेसबुक मा कविता - गीतों का वीडियो द्यखणा छन, चर्चा - परिचर्चा, कवि सम्मेलन मा साहित्यकारों तैं लाइव द्यखणा छन। अमेजन, फ्लिपकार्ट, गूगल, ई बुक पर गढ़वाळि किताब बि मिलि जाणी छन। गूगल पर एक क्लिक का माध्यम से कतगै साहित्यकार अर वूंको काम समणि ए जांद।
सु.पु.-- गढ़वळि भाषा का नै लिख्वारु तैं आप क्य रैबार दींण च्हेल्या ?
सं.रा.--  नै छ्वाळि का जादातर लिखदरा बस लिखण परैं हि लग्यां छन, पढ़णा कम छन। रचनौं मा मीनत जरूरी छ, मौलिकता जरूरी छ। नै - नै विषयों पर बि लिखणै कोसिस कन्न चैंद। शार्टकट अर नकल से बचण प्वाड़लो। पद्य का दगड़ा गद्य परैं बि नै लिख्वारौं तैं ध्यान द्येण चैंद।
                ******************
                                   ...सुशील पोखरियाल।
         (रंत रैबार,अंक 24 मई 2021मा प्रकाशित )

Friday, January 22, 2021

भावों का दगड़ा विचारों कि मजबूत जमीन कि उपज च "घुर घुघुती घुर " - संदीप रावत

समीक्षा - कविता संग्रै " घुर घुघुती घूर "
             
                कवि - गीतेश नेगी
      प्रकाशक -धाद प्रकाशन, वर्ष 2017 में प्रकाशित 
 समीक्षक - संदीप रावत, श्रीनगर गढ़वाल ,वर्ष - 2018

   
भावों का दगड़ा विचारों कि मजबूत जमीन कि उपज च "घुर घुघुती घुर " - संदीप रावत
          सक्रिय गढ़वाळि कविता तैं आज लगभग 113  साल ह्वे ग्येनि । आज गढ़वाळि कविता भौत सुन्दर ढंग से रच्येणी बि छन ,पढ़ेणी बि छन त मंचों पर्बि प्रस्तुत होणी छन। कुल मिलैकि आज गढ़वाळि कविता समाज मा भौत बढ़िया ढंग से स्थापित ह्वे ग्ये। गढ़वाळि साहित्य मा  अबारि बि सबचुले जादा  कविता ही लिख्येणी छन पर असरदार अर परिपक्व  रचना यानि जौं कवितौं प्रभाव पढ़ण- सुणणा का बाद बि रै जावु ,  कुछ -कुछ ही लिख्येणी छन।
          अबारि गढ़वाळि कवितौं तैं जै ढंग से अगन्या बढ़ण चैंद वा अन्वार अर कलेवर गढ़वाळि काव्य संग्रै   *घुर घुघुती घुर * मा बखूबी द्यिखेंद। यो  गढ़वाळि  काव्य संग्रै परदेस मा रैकि बि  अपणि थाति अर अपणि मातृभाषा मा अपणो आत्म सम्मान द्यखण वळा, गढ़वाळि भाषा-साहित्य का प्रति सदानि चितळो , नै छ्वाळि का हुणत्याळा लिख्वार,गद्य अर पद्य द्विया विधौं कु हिट्वाक गीतेश नेगी कु छ। माना कि "घुर घुघुती घुर " गातेश नेगी कि पैली प्रकाशित  गढ़वाळि पुस्तक  छ  पर  ये कवि कि   गढ़वाळि कविता , गजल , गीत ,व्यंग बर्सूं  पैलि  बटि पत्र-पत्रिकौं मा प्रकाशित होणी छन।
              जैं काव्य पोथि कि पवांण ,इंटरनेट पर गढ़वाळि भाषा-साहित्य का भीष्म पितामह आदरणीय भीष्म कुकरेती जीक लेखीं होवुन त फेर वीं पोथिक बारा मा ,वीं पोथिक रचनाकार का बारा मा लिखण सौंगु नि रै जांद। फिर्बि  "घुर घुघुती घुर "काव्य पोथि तैं पढ़ीक मि तैं  जन मैसूस ह्वे,जु विचार म्येरा दिल-दिमाग मा ऐनि  वु विचार इख मा फ्वळणै कोसिस करी।
             "घुर घुघुती घुर " काव्य संग्रै कि माळा मा गीतेश नेगी का उणसठ (59) काव्य रूपी बनि-बन्या फूल गैंठsयां छन। ईं माळा मा यो फूल छ्वट्टि -बड़ी कवितौं का रूप मा,क्वी गीत अर एक-द्वी गजल का  का रूप मा छन। ये काव्य संग्रै कि  जादातर रचना वेका अपणा गौं-गुठ्यार,अपणि थाति यानि पहाड़ से जुड़ीं  गम्भीर भाव वळि छन जो कि पढ़दरा का भितर यानि जिकुड़ि तक पौंछण मा सुफल होणी छन। ईं पोथिक कविता परिपक्व छन अर सैsर-बजारों मा रौण वळाें का दगड़ा पहाड़ मा छुट्यां सब्या लोगूं कि अन्वार दिखौंदन ,सच्चै तैं उजागर कर्दन।
           "घुर घुघुती घुर "काव्य संग्रै कि कविता आस जगौंदन । ईं पोथिक शुर्वात बि *आस कु पंछी * कविता से होंद, जै मा कवि बोल्द-
    " क्या पता ह्वे जावु इक दिन
       वूं थैं मेरी पीड़ा कु एहसास
       अर वू सैद बौड़िक आला म्यारा ध्वार
       अपणा घार ,अपणा पहाड़ "
     वास्तौ मा इक आस त सदानि लगीं रांद ,चाहे कुछ बि ह्वे जावु। आज सैर्या पहाड़ पलायनै पीड़ा  सैsणू छ। पर क्या कन्न ?  पहाड़ौ मानवीकरण कवि कु भौत बढ़िया ढंग से कर्यूं छ। चुप राैण वळा पहाड़ दगड़ा आज बिज्यां छेड़छाड़ बि त ह्वे ग्ये। पहाड़ कि दशा पर *पहाड़* रचना मा पहाड़ को मानवीकरण द्यखण लैक च अर दगड़ा -दगड़ि य रचना पहाड़ का भितरै पीड़ा तैं ये तरौं से भली कैरी छलकाणी छ -
      " म्यारू मुंडरू म्यारू उकताट
         अर मेरी पीड़ा साख्यूं कि
          जु अब बणी ग्याई मी जन
           म्यार ही पुटूग ,एक ज्वालामुखी सी
            जु कब्बि बि फुट सकद। "
       ईं पोथिक कतगै रचना चखुला,गोर ,फ्यूंली-बुरांस ,डाळि-बोट्यूं दगड़ा मनखीक रिस्तौं तैं उजागर कन्नी छन। कवितौं मा जख आम बोलचाल का गढ़वाळि शब्द ,मुहावरा छन त दुसरी तर्फां कवितौं मा अलंकार ,प्रतीक अर बिम्बों को सफल प्रयोग होयूं छ ,जो कि कवितौं तैं असरदार अर मजबूत बणौणी छन। * त्वे औण प्वाड़लु* रचना मा कवि  इन बोल्दु-
       " बसगळया  गदन्यूं का रौळियाण से पैली
          डाळ्यूं मा चखल्यूं का चखुल्याण से पैली
          त्वे आण प्वाड़लु "
* जग्वाळ * जनि रचनौं मा उपमाओं कु भौत अच्छु प्रयोग होयूं छ -
      " धुरपळी को द्वार सी ,बसगळ्या नयार सी
         द्यखणी छन बाटु आँखि
         कन्नी उळर्या जग्वाळ सी "
       उत्तराखण्ड बणणा 17-18 साल बाद बि यख पहाड़ या  आम मनखीक स्वीणा ,स्वीणा ही रै ग्येनि। कुछ लोगूं खुणी त मौज-मस्ती रै अर यख चकड़ैतूं कि एक बड़ी फौज खड़ी ह्वे । बिल्कुल सै शुर्वात करी कविन *जय हो उत्तराखण्ड * कविता कि-
        " गलदरूं की , ठेकेदारूं की
           जय हो उत्तराखण्ड त्यारा सम्भलदारूं की |"
       यख विकास का वास्ता क्षेत्रवाद,जातिवाद,भै-भतीजावाद, भिरस्टाचार,बेरोजगारी अर पलायन कि *केर * बंधण भौत जरूरी छ ,इलैई त कवि  छ्वट्टि कविता *केर * मा बोल्द -
"क्षेत्रवाद ,जातिवाद,भ्रस्टाचार ,मैंगै ,बेरोजगारी ,
  अशिक्षा,पलायन
  जरा बांधा धौं केर यूं कि पहाड मा
अगर बांधि सक्दौं त। "
            गीतेश नेगी व्यंगकार बि च , इलै वे कि अधिकतर कविता  व्यंग शैली मा छन । गंडेळ ,घिन्डुड़ी ,बिरळु, कटगळ, विगास, सरकार ,चुनौ ,डाम ,योजना, ख्वींडा सत, ठेकेदारी , गोर आदि कविता व्यंग्यात्मक शैली मा छन। * गोर * कविता कि इक झलक -
       " सब्यूं का छन  अपणा - अपणा ज्यूड़ा
          अपणा- अपणा कीला
         अर अपणा- अपणा गोर  , बंध्यां साख्यूं बटि "
          जख भैर का परवाण बणि जावुंन त कन क्वै होण वखा भलो। ईं बात तैं  छ्वट्टि सि  कविता * परवाण * भलि कैरीक बिंगौंद -
    " वू घार ,वू गौं ,वू समाज ,वू मुल्क ,वू देश
      जखै तखि रै जांदिन ,
      जख थर्पे जांदिन, भैरक बणीक परवाण। "
      य बिडम्बना ही च  कि गढ़वाळ मा रै कि अर गढ़वाळि ह्वेकि बि हमुतैं गढ़वाळि नि आंदि। * किराण * कविता ईं बिडम्बना तैं उजागर कर्द -
       " निर्भगी घुन्ड-घुन्डौं तक फुक्ये ग्यो
          पर किराण अज्यूं तक नि आई ?
           मी तुम्हारी मातृभाषा छौं
           मेरी कदर अर पच्छ्याण
            तुम तैं अज्यूं तक नि ह्वाई। "
       गीतेश नेगी मा बि घुघुती जन मयळदुपन च अर कारिज का प्रति उन्नि एकाग्रता बि छ। परदेस मा रै कि बि वु सदानि अपणि माटि,मातृभाषा से जुड्यूं छ।   अपणि पैली गढ़वाळि पोथि कु नौ *घुर घुघुती घुर * रखीक वेन  ईं बात कि सार्थकता बढ़ै। पहाड़,अपणि बोली-भाषा तैं ज्यूंदो रखणा वास्ता यु मयळदुपन अर या एकाग्रता सब्यूं मा  होण जरूरी छ।   शीर्षक कविता * घुर घुघुती घुर * एक मार्मिक कविता छ। वास्तौ मा आज यख  पहाड़ मा घुघुती वूं सब्यूं खुणी घुरणी छ जो स्यकुंद बौग मारीक चली ग्येनि ,अर फेर बौड़िक नि ऐनि। शीर्षक कविता कि शुर्वात-
       " हैरी डाँड्यूं का बाना, हिंवाळी काँठ्यूं का बाना
          बांजा रै जु स्यारा रौंतेली वूं पुंगड्यूं का बाना
          घुर घुघुती घुर। "
     फ्यूंली,बुरांस अज्यूं बि उन्नि खिलदन ,हिंसोळा-किनगोड़ा-काफळ  अपणा टैम पर अज्यूं बि पकदन पर  वूं तैं जिमण वळा यख अब क्वी-क्वी ही रयांन। इलै ही *त्वे बिना * कविता मा कवि लिख्द-
         " खिल्यां फूल फ्यूंली अर बुरांस का ,
             पंदेरा कि बारामासी छ्वीं-बत्था 
           सब्बि बैठ्यां छन बौग मारीक चुपचाप त्वे बिना " 
         ईं पोथिक आखरी कविता * वूंल बोलि * छ ,ज्वा उत्तराखण्ड कि दशा तैं उजागर कर्द कि पहाड़ौ विकास पहाड़ मा ना बल्कन दिल्ली-देरादूण मा होणू छ। ईं कविता मा कवि का विचार अर भाव ये तरौं छन -
           " हमारू पाणि कनै पैटि
              हमारि सड़क कख बिरड़ि
              हमारा डाक्टर बिमार छन कि व्यवस्था .... "
             ईं बात मा क्वी सक-सुबा नी कि - *घुर घुघुती घुर*  अच्छी रचनौं कि  पोथि छ जै मा भाव पक्ष का दगड़ा विचार पक्ष बि भौत मजबूत छ। शिल्प अर शैली का हिसाबन बि ईं पोथिक अधिकतर रचना बढ़िया छन। बोलि सकदां कि - ईं पोथिक  रचना   पढ़णौ बाद यि रचना पढ़दरा पर बाद तक असर बि डलणी छन   ज्यांका बान यि कविता  रच्ये ग्येनि। ईं पोथिक रचना अनुभव जन्य छन। आदरणीय भीष्म कुतरेती जी ईं पोथिक भूमिका मा ठिक ही लिखदन कि - "गीतेश कि कविता मा कथगै रंग-बिरंगा रस दिख्येंदन। "
      भाषा अर शब्दोंक हिसाब से कुछ एक जगौं पर कमी सि लग्दि। ईं पोथि मा कुछ-कुछ जगौं पर प्रुफ कि गल्ति बि रै ग्येनि जो कि थ्वड़ा भौत अक्सर सब्या गढ़वाळि भाषा कि पोथ्यूं मा रै जांद। गढ़वाळि भाषा कि मजबूती अर विकास का वास्ता अब गढ़वाळि का सब्या लिख्वारूं तैं मानकीकरण कि तर्फां बि बढ्यूं चैंद। वूं शब्दों जादा प्रयोग कन्न चैंद जु सब्यूं का बिंगणा मा आसानि ऐ जावुन। सब्यूं का लेखन मा क्रिया रूप/ क्रियापदों मा बि एकरूपता अब जरूरी छ।
             भला आकार,सुन्दर मुखपृष्ठ का दगड़ा  ठेठ गढ़वाळि शब्दूं को प्रयोग ईं पोथि मा होयूं छ। गढ़वाळि साहित्य पिरेम्यूं तैं, नै छ्वाळि का लिख्वारूं तैं /कविता रंंचदरों तैं , हम सब्यूं तैं हौरि गढ़वाळि किताब्यूं दगड़ा  *घुर घुघुती घुर * जरूर पढ्यूं चैंद  अर ईं पोथिक स्वागत हम सब्यूं तैं कन्न चैंद। गीतेश नेगी तैं गढ़वाळि भाषा कि  ईं सुन्दर  पोथि का वास्ता भौत-भौत बधै अर हार्दिक शुभकामना। 

नोट  - य समीक्षा धाद, रंत रैबार आदि मा प्रकाशित छ (  वर्ष - 2018 )
                                         संदीप रावत 
                                न्यू डांग, श्रीनगर गढ़वाल 

                  
                            


Wednesday, January 6, 2021

"लोक का बाना" पुस्तक बटि आलेख-- " लोक बटि हर्चदा जाणू छ लोक साहित्य "©संदीप रावत,न्यू डांग, श्रीनगर गढ़वाळ, मोबैल 09720752367

 " लोक बटि हर्चदा जाणू छ लोक साहित्य "
                    ©संदीप रावत, न्यू डांग, श्रीनगर गढ़वाळ
                                         
      कै बि समाज, क्षेत्र, जाति या देशा जीवन मा लोक साहित्य अर लोक संस्कृत्यो बड़ो महत्व होंद। एक तरौं  यो कै समाजै लोक जीवना बारा मा बतौंदन।   लोकसाहित्यै क्वी निश्चित परिभाषा देण कठिन छ। लोक  को सम्बन्ध आत्मिक होंद अर यो प्रकृति से प्रभावित होंद। अगर लोक बटि प्रकृति तैं हटै द्यूंला त साहित्य अर लोकसाहित्य मा हम फर्क नि करी सकदां। लोक साहित्य लोकमानस कि सहज अर स्वाभाविक अभिव्यक्ति होंद। ये मा दिखलौट बिल्कुल बि नि होंद। यो अलिखित होंद अर अपणि मौखिक या वाचिक परम्परा से एक पीढ़ि बटि हैंका पीढ़ि  मा जाणो रैंद। यु मन्ये जांद कि लोक साहित्य का रचनाकार अज्ञात होंदन।
     मोहनलाल बाबुलकर जीक् अनुसार- ‘लोक कि वु सब्या अभिव्यक्ति जौं मा लोक रचना शक्ति का दर्शन होंदन वु लोक साहित्य  छ।’ वास्तौ मा लोक साहित्य वा मौखिक अभिव्यक्ति छ क्वी न क्वी मनखी रचद,गढ़द पर वे तैं आम लोक समूह अपणु समझद किलैकि वो लोक हृदय मा रचि- बस जांद।  लोक साहित्य कि क्वी एक निश्चित विधा नि होंदि , यो त आचार- बिचार, लोकोक्ति, लोककथा,लोकगाथा, लोक गीत्वूं का  रूप मा एक पीढ़ि बटि हैंकि पीढ़ि मा जाणी रांद।
       प्रसिद्ध समालोचक अर साहित्यकार भगवती प्रसाद नौटियाल जीक् अनुसार-
‘‘लोकसाहित्य कि वास्तविक जैड़  लोक संस्कृत्या भितर होंद। लोक साहित्य केवल साहित्य नी बल्कि यांका अलौ धर्म, इत्यास , समाजशास्त्र,पुराण,आख्यान यानि सब्या कुछ यांका भितर छिप्यूं होंद।  लोकसाहित्य लोकसांस्कृतिक वैविध्य को समग्र रूप छ अर यो लोकजीवन को ऐना होंद।’’
लोकसाहित्य कख्या बि हो ,वो समृद्ध होंद अर वेकि अपणी सक्या होंद। हमारो लोक साहित्य बि भौत समृद्ध छ अर येको भण्डार झक्क भ्वर्यूं छ। लोकसाहित्य मा सब्या भावना, खुद को चित्रण, प्रकृति को चित्रण, लोककथा, लोकगाथा-जागर, पवाड़ा, लोक गीत, आणा-पखाणा,भ्वीणा-मैणा, जंत्र-तंत्र, लोक आस्था, सब्या कुछ ऐ जांद। पर लोकसाहित्यौ काम  केवल लोकगीत ,लोककथा या कहावतों तें इकबटोळ कन्न नि होंद बल्कि या त् आदिकाल बटि अनन्त काल तक मनख्यूं कि जीवन जात्राम् संग्ति ब्वगणी वळी धारा छ। लोक साहित्य कि या विशेषता छ कि भाषागत अलग-अलग होण पर्बि भावों कि नजर से सब्या जगौं या एक जन लगद । लोकसाहित्यम् खराब, बुरो अर अमंगल का वास्ता क्वी जगा नी।
      इतिहासकार डाॅ0शिवप्रसाद नैथानीक् अनुसार-‘‘ लोक साहित्य अर लोकसंस्कृति मा ब्वे अर औलादौ रिश्ता होंद।जन औलाद अपणी ब्वे कि बोली याने मातृभाषौ पैलो शब्द सुण्द या सिख्द,ये ही तरौं से साहित्य अपणा जल्मदै ही सबसे पैलि अपणि लोक संस्कृत्यौ परिचय द्येण चांद। पैलि लोक साहित्य वाचिक होंदु छौ,फिर पढ़ेण बैठि अर आज त सुणण अर द्यखणै चीज ह्वेग्ये। देव सिंह पोखरिया भाषा संस्थान उत्तराखण्ड कि शोध पत्रिका ‘उद् गाथा-2010’ मा अपणा लेख मा लिखदन कि-‘‘ लोक साहित्य लोक धर्म तैं दगड़ा लेकि चल्द। जो जंत्र-मंत्र ब्वल्ये जांदा छा पैलि त वां से बिमार आदिम बि ठिक ह्वे जांदो छौ, इथगा शक्ति होंदि छै लोकमंत्रों मा।’’  उत्तराखण्डा उंचा-निसा पयार, पहाड़ै चुलंखी अर नीस गाड-गदिन्या गैरी घाटि, धारा-पंद्यरा,रौंत्येळा डांडा-कांठा,चखुल्यों  च्वींच्याट, सुकेली हव्वा,यखै लैरी-खैरी हमारा जीवन तैं एक अलग द्यखणौ देंदन। अप्रत्यक्ष रूप मा यो सब हमारा जीवन मा समोदर जन गैरै अर धर्ति जन धीरज देंदन, टक्क लगैकि मीनत अर काम कन्नै सक्या देंदन। यखै लोक साहित्य अर परम्परा ये पहाड़ी समाज मा ही ज्यूंदो रैंद, कखि दूर गौं-गौळौंम् ज्यूंदो रैंद। हमारा जीवन कि सब्या अभिव्यक्ति लोकगीत ,लोककथौं या कहावतोंक् रूप मा बिकसित ह्वेनि अर यों से ही फिर हमारि लोक परम्परा, रीति रिवाज बणीन। लोक मा भौत कुछ छिप्यूं या दब्यूं
रैंद,फ्वळ्यूं रैंद पर अब आम लोग पहाड़ बटि स्यकंुद यानि सैर-बजारों तर्फां सटगणा छन त इलै लोक बि हर्चदा जाणू छ अर लोक साहित्य बि  कम होंदा जाणू छ। लोक साहित्य कखि दूर पहाड़ों   अर वख बस्यां गौंम् उपजि,जख मनखीन् भेळ-भंकार अर पाखा द्यखनी, डांग या ढुंगो जन कठोर जमीन मा अभौ का बीच बि हैंसदा-हैंसदा केवल ज्यूंदो नि रै बल्कि जीवन तैं भली कैरिक् जीणो सीख। वख ही लोकरंग,लोक साहित्य अर लोकसंस्कृति को जन्म व्हे । लोक साहित्य पैलि आम लोख्वूं जीवन मा ज्यूंदो छौ,रैंदो छौ,फ्वल्यूं छौ। जन जन समौ बदल्य हर्बि-हर्बि लोकसाहित्य बि कम होंदा ग्ये। आज लोकसाहित्य पढ्येणू छ, दिखाये जाणू छ पर आज यो लोक बटि हर्चदा जाणू छ। अबारि लोक साहित्य बस कखि-कखि ही दूर गौं-गळों  मा जयूंदो छ।
    यो  सब्या जणदन कि गीत,साहित्य कि सर्वव्यापी विधा छ अर गीत लोख्वूं बीच जल्दी प्रचारित-प्रसारित ह्वे जांदिन। इन्नि लोकगीत धर्तीक् उपज होंदन अर यों मा पूरो लोक समाजौ योगदान होंद। यो लोकजीवन मा जल्दी ही प्रचारित ह्वे जांदा छा अर लोकप्रिय बि। हमारा लोक कि सबसे बड़ी खासियत या छ कि-येको हृदय मयळु छ,प्राण क्वांसो छ, यखै धर्ति गीत लगौंद,गाड-गदेरा सब गीत लगौंदन एक तरौं से। लोकमानस कि पीड़ा,यकुलांस,विरह-वेदना,अभौ लोक गीत्वूं रूप मा भैर  ऐनि, उपजिन। यांका बारा मा त हमारा यख प्वथडा़ का प्वथड़ा भ्वर्यां छन,साहित्यकारोंक् बिज्यां लेख्यूं छ लोकगीत्वूं बारा मा। आज यो चिन्ता को विषय छ कि अब लोकगीत्वूं स्वरूप बि बदलेणू छ, लोकगीत
आज अपणा मूल स्वरूप मा नि छन। डाॅ राजेश्वर प्रसाद उनियाल को ब्वन छ कि-‘‘ जब लोकगीत लिखित रूप मा  सामणि औंद अर छपेंद त वेको मूल स्वरूप यानि मौखिक रूप मा थ्वड़ा भौत बदलौ ऐ जांद अर कतिबेर त वेको मूलस्वरूप ही हर्चि जांद। जब अलग-अलग लोग लोकगीत्वूं तैं इकबटोळ कर्दन अर  लिप्यांकन कर्दन त या त लोकगीत अपणा पूर्ण रूप मा नि होंद, अद्धा- अधूरो होंद अर आखरी बि नि होंद।वेको कारण यो छ कि लोकगीत्वूं तैं इकबटोळ कन्नौ टैम अलग-अलग होंद, अलग-अलग जगा होंदन अर जख बटि कै लोकगीतौ सूद-भेद लिये ग्ये वेको स्रोत क्या छ।’’ वास्तौ मा लोकगीत्वूं असली अर ज्यूंदो रूप त लोक मा  प्रवाहित   होणू रांद।
      उत्तराखण्ड का लोकसाहित्य तैं समृद्ध अर बिकसित कन्न मा यखा शिल्पकार भै-बन्धोंन् यानि औजी,धामी, जागरी,बेड़ा-बद्योंन् सबचुले ज्यादा योगदान दे। ऐक तरौं से यों तैं आशु कवि ब्वले जै सकेंद। समसामयिक विषयों पर दिल तैं घैल कन्न वळा,जिकुड़ी मा छपछपी लगौण वळा गीत्वूं कि रचना कन्न वळा सल्लि छा यो। यखै जादातर लोकोक्तियों-मुहावरों याने औखाणा-पखाणौं तैं बि यों ही लोख्वूंन बणैनी। लोक संगीत, लोकगाथा-जागर,पवाड़ा, अर लोकनृत्यों से यों को जुड़ होंदु छौ। ब्वल्ये जै सकेंद कि एक तरौं से  औजी,धामी, जागरी,बेड़ा-बद्योंक् वजौ से ही लोक साहित्य परम्पराओं मा ज्यंदी छै पण आजै समौ मा यों लोख्वूंन उपेक्षा कि वजौ से यों चीजों अर लोक वाद्यों से इक दूरी बणैयालि,यों परम्पराओं तैं छ्वडण पर लग्यां छन। या बि एक वजौ छ जां से हमारो लोक साहित्य बि हर्बि-हर्बि लोक बटि हर्चदा जाणू छ।
      जब लोक बचाणै बात होंद त लोक साहित्यक् सैंक-सम्भाल कन्नै छ्वीं-बत्थ बि होंदन। लोक साहित्य तैं बचैणा वास्ता वे तैं वाचिक परम्परा याने मौखिक परम्परा मा बि ज्यूंदो रखणो जरूरी छ,लोक मा ज्यूंदो रखणो जरूरी छ। केवल किताब्यूं ,आॅडियो-वीडियो सीडी या हौरि आधुनिक उपकरणों भितर समेटिक भौत ज्यादा  कुछ नि होण्या। सबसे पैली बात या छ कि लोकसाहित्य अर लोकसंस्कृति लोक भाषा माध्यम से ही ज्यूंदो रै सकद्।  लोक साहित्य तैं वेका वास्तविक रूप याने लोकम् अपणा मूल रूप मा ज्यूंदो रखण प्वाड़लो, तब जैकि ये कि अर परम्पराओं कि सार्थकता छ,यां से मयळदु अर संवेदनशील समाज बणलु।
लोकसाहित्य तैं सम्मान देणौ जर्वत छ अर अबारि ये तैं स्कूली पाठ्यक्रम मा बि रखणै भारी जर्वत छ ।
      जुगल किशोर पेटशाली भाषा संस्थान,देहरादून कि शोध पत्रिका ‘उद्गाथा-2011,अंक दो मा अपणा लेख- ‘उत्तराखण्ड के लोकसाहित्य की मौखिक परम्परा’ मा ठीक ही लिखदन कि-‘‘ लोकसाहित्य अर जो वेकि विधा छन वो इतगा जीवंत छन कि वो हमारा लोक मा,समाज मा चाहे वो लोक  अब पलायना वजौ से शहर-बजारों मा बसीग्ये पर साख्यूं कि जात्रा बाद बि वो ज्यंूदी छन अर वो अनन्त काल तक लोकमानस का हृदय मा अनन्त काल तक ज्यूंदी रालि।’’ वास्तौ मा कालै उथल-पुथल बि यों तैं खत्म नि कैरी सक्दि। जादातर विद्वान ईं बात से सहमत छन कि - जै टैम पर आधुनिक ज्ञान-विज्ञान नि छौ,तब बि समाज छौ अर वे टैम पर वे मा केवल लोकसाहित्य ही छौ जैमा आम मनखी अफुतैं द्यख्दो छौ, अपणि सब्बि गाणि-स्याण्यूं तैं वे मा रळै देंदो छौ। आज विज्ञानौ टैम छ अर अज्यूं बि लोक साहित्य कै ना कै रूप मा ज्यूंदो छ अर जब विज्ञान ऐंच टुक्क पर होलु अर वांका बाद पत्त भुय्यां प्वड़ण वळो होलु त तब बि लोक साहित्य कखि ना कखि ज्यूंदो रालो, यो कब्बि खत्म नि ह्वे सक्दु। 

नोट -  अपणि गढ़वाळि आलेखों  पुस्तक "लोक का बाना " बटि।  (पृष्ठ 74-78)
ये आलेख का क्वी बि अंश लेखक कि अनुमति बिना 
नि लिए जै सकदा। 
                   ©संदीप रावत, न्यू डांग, श्रीनगर गढ़वाळ
                    

Sunday, January 3, 2021

मनखि अर प्रकृति कि रुमैलि दुन्या का उमैला सम्बन्धों कि कथा च "औगार "(कथाकार -महेशानन्द ) -----समीक्षक ©गीतेश सिंह नेगी, सूरत, गुजरात।

मनखि अर प्रकृति कि रुमैलि दुन्या का उमैला सम्बन्धों  कि कथा च "औगार "

                          --गीतेश सिंह नेगी

पहाडै लोकजीवन मा फ्योंली भौत खास च । अजर अमर रिस्ता च फ्योंली अर पहाड़ौ । बिगैर पाड़ै फ्योंली अर बिगैर फ्योंली पाड़ै गाणि अर खूबसूरती द्वी अद्धा अधूरी सी लग्दिन । फ्योंली सिरप एक फूल नि, हमर लोकै एक भौत ही लोकप्रिय कथै एक चिंंतौलि नायिका बि च फ्योंली जैंतैं केंद्र मा रखी तैं 'औगार' जन्न बेजोड़ कथा रची फ्योंली जन्न कुंगला अर उमैला मनै चिंतौंला लिख्वार, गढ़वाळि का जण्या मण्या कथाकार महेशानंद जीन ।

'औगार ' कथा का खास चरित्र गोबिन्दु अर फ्योंली छन। कथा मा कल्पनाशीलता देखण लेक च अर या कथा, कथाकारै बेजोड़ कल्पना शक्ति को परचौ बि दिन्द अर आखिर मा या कथा यथार्थ का धरातल परै बि अपड़ि पूरी सक्या दगड़ि खड़ी दिखेन्द।

' औगार ' कथा एक आम प्रवासी जीवनै यथार्थै धरातल परै पूरी संवेदना अर प्रेम दगडी अंग्वाल बोटि हिटणी छ जैमा कथै नायिका फ्योंली , नायक गोबिन्दु मा अपड़ि 'औगार' कन्नी च। असल मा या सिरप फ्योंली 'औगार' नि या फ्योंली नौ से सर्या पाड़ै 'औगार' च अर या औगार पहाड़ै हर वे हम जन्न ग़ोबिन्दु से च जु बालापन्न मा ही अपडा प्रेम ईं फ्योंली अर ये पाड़ बटि उन्दू जैकि दूर चली ग्ये। कथा मा ग़ोबिन्दु फ्योंली तैं खोजणु पर वा वे तैं कखि दिखेणी नि । वू फ्योंली तैं धै लगौन्द पर फ्योंली वे तैं नि दिखेन्दी किलैकि फ्योंली अपड़ि बरसों बटि हुँदा जाणी उपेक्षा से खींन्न च त वा ग़ोबिन्दु समणि नि औंदी वा वे तैं या बात बिंगौंण अर जिन्दगी कु एक खास सबक सिकौण चांदी । वा वे तैं इन्ना वुना धै मारिक अटगौंणी रैन्दी पर वेका कखि हत्थ नि औंदी । आखिर मा वा अपडा मनै 'औगार' ग़ोबिन्दु मा लगै दिन्द कि वा वे से दूर क्यो छ ? वू किलै नि भेंटे सकणा छन ? वा गोबिन्दु तैं सचै दगड़ि परचौ करान्द अर वे तैं अपड़ असल उमैला मुल्क , अपड़ि रुमैलि दुन्यम लेकि जांद। यखम कथाकारन प्रकृति कु जन्न सैंदिष्ट अर सुन्दर चित्रण करयूं छ वू अफ्फम बेजोड़ छ अर कथाकारै कलमैं सक्या अर शब्द रचणै कला को भल्ली कै परचौ दियूँ च ।

फ्योंली अर ईं रौंतेली रुमैलि धर्ती तैं भेंटेंकि ग़ोबिन्दु तैं वीन्का असीम सौन्दर्य का दर्शन हूंदीन वे तैं भारी रौंस लगदी। अब फ्योंली वेतैं अपडा सबन्धों की सम्लौंण दिलोंद की या ही वा जग्गा छ जख हमरि पैली भेंट ह्वे छाई या ही च तेरि असल धर्ती अगर ज्यू तू वीं स्वार्थ अर काजोल पाणि सी धर्ती तैं छोड़िक यख सदानि कु आ सकदी त मैं प्रेम मा त्वे खुणी त्यार आण परै बाटों पर मंदरी सी पसर्ये जौलू।

' ले ईं दा बि मिन दौ त्वे फर छोड़ी यालि। धाकनाधारि आंदी छै इख बौड़ी कि ना '

वेक बाद वा ग़ोबिन्दु हत्थ छोड़ि दिन्द। ग़ोबिन्दु तैं लग्गी जन्न वू गगराट कै उंद लमडुंणु हो ।

महेशानन्द जीक औगार कथा शुरवात मा एक प्रेम कथा की सी बाण दिखेन्द, फिर या एक खुदेड कथा जन्न ऐथिर बढ़द अर आखिर मा या पलायन पीड़ा से उपजीं कथा सी महसूस ह्वे सकद पर अगर कथा तैं पूरी तरां पढ़णा बाद अगर हम अफ्फु तैं पुछला कि ग़ोबिन्दु को छ ? फ्योंली को छ ? अर आखिर ग़ोबिन्दु अर फ्योंली कु आपस मा रिश्ता नाता सम्बन्ध क्या च ? त हम सै तरां से कथा तैं समझी सक्दो कथा का मनोविज्ञान तैं समझी सक्दोंं ।

कथा कु मनोविज्ञान बतोन्द कि औगार प्रकृति अर मनखि का प्रेम सम्बन्धों अर जन्म जन्म को दगडै अंग्वाल बोटदि,धै लगौंन्दी कथा च ज्वा मनखि अर प्रकृति का बीच बढ़दि दूरी फर वेका असल कारण पर मुख्य चरित्र फ्योंली मार्फत अपणी बात मुखर ह्वेकी रखद।

कथा मनखि तैं केवल समस्या नि बतोन्दी वे तैं अद्धबाटा मा नि छोड़दि बल्कि अपड़ि ईं उमैंली अर रुमैलि धर्ती दगड़ि अपडा जलड़ों दगड़ि जुड़णौ,जीवन मा अग्वाडी बढणौ बाटु बि बतोन्द। कुल मिलैकि मनखि अर प्रकृति का रुमैलि दुन्या का उमैला सम्बन्धो की कथा च औगार। पहाड़ से अपडा जलड़ों बटि कट्याँ- छिटग्याँ मनखि तैं अपडा जलड़ों परैंं बौड़िक आणा वास्ता फ्योंलीक धै लगौन्द कथा छ औगार ।

सवाल यो च कथा कु मुख्य पात्र ग़ोबिन्दु को च अर या फ्योंली को च ? म्यार देखणन हर वू मनखि जु अपडा जलडौं बटि कटे ग्याई वू ग़ोबिन्दु छ । मि तै लगद मि ग़ोबिन्दु छौ मि ही छौ ग़ोबिन्दु जैका सुपिन्यो मा रोज आन्द या निर्दयी फ्योंली । अर फ्योंली बणिक अपड़ि औगार मैमा लगान्द यू पाड। अगर मनै बात लिखूं त औगार ग़ोबिन्दु अर फ्योंली कथा नि या म्यारा,आपका अर पाड का अजर अमर सम्बन्धो की एक भौत ही भावुक अर कलकली कथा च । कथा का बीच मा जब ग़ोबिन्दु फ्योंली का हत्थ छोड़ी आसमान बटि लमडद अर हर्बी हर्बी वींतैं धै लगान्द ...

फ्योंली ! फ्योंली !! फ्योंली !!!
मि आणू छौं मे थै जग्वाळ ।

त इन्न सी लगद कि एक सुन्दर कथा कु कतगा मार्मिक अन्त हुण वलु च सैद,एक घड़ी आँखियूँ मा असधरि सी आ जांदीन पर ऐथिर पैढिक कथाकारै बेजोड़ कल्पनाशीलता अर असल सल्लीपन्नो परचौ मिलद जब दस वर्षों एक प्रवासी नौनु विक्की जैन गढ़वाळि कब्बी नि बोली वू। स्वीणा मा खुट्टा छिबणाणु,मुम्यांणु अर छुड़ी गढ़वाळि मा बुल्द -

'फ्योंली ! फ्योंली मि आणु छौं । मैं थैं जग्वाळ'

वेका नींद बिचलणा कुछ देर बात कथा कु अन्त मा जब विक्की अर वेका परिजन गौं जाणै बात फाइनल करदीं त ईं सब्बि बात बि अफ्फु साफ ह्वे जांद कि ग़ोबिन्दु को छाई अर फ्योंली को छाई ? ग़ोबिन्दु फ्योंली तैं क्यो धै लगाणु छाई अर फ्योंलीन वेकु हत्थ अपड़ि रुमैलि उमैली धर्ती मा लिजैकि छट्ट क्यो छोड़ि अर क्या शर्त रखी ? आखिर फ्योंली चाणी क्या छाई?

कथा का आखिर मा "माजी ! येल सच्ची गढ़वाळि बोली क्या?" जन्न लैन लिखींक कथाकारन एक जोरदार अर झन्नाटेदार सवाल वू सब्यूँक् वास्ता छोड़ि जु अपडा जलडौं बटि छटगेकि अपड़ि भाषा संस्कृति से बि छटग्ये, बिंगलै ग्यीं ।

'दूर बटि टिरेने किलक्वार अर धधडाटल सब्यूक् कंदुड फोड़ी देनी '

यू अंतिम पंक्तियों का दगड़ि कथाकारन अपड़ि लेखन क्षमता अर गढ़वाळि भाषा की शब्द सम्पदा द्वी को एक दा हौरि दमदार परचौ देकि ईं सुन्दर गढ़वाळि कथा को समापन कैरिक औगार कथा संग्रै की हौरि कथाओं तैं पढ़णै सप्रेम साधिकार न्यूतों दे ।

औगार अर फ्योंली लोककथौ कथानक भले एकसार ही छन , द्वी कथाओं मा भले ही वी अनुभव वी परिस्थिति अर वी शिक्षा छन पर फिर्बी औगार कथा मा कथाकारै बेजोड़ लेखन कला अर शब्द चित्रण शैली देखणौ मिलद दगड़ा दगड़ि गढ़वाळि भाषै हर्चदि शब्द सम्पदा अर सक्या द्वी सैंदिष्ट देखणो मिल्दीन।

लोककथा फ्योंली का अपडा जलड़ों बटि कटेकि सुख सुविधाओं वळा राजसी भोग विलास अर दिखलौटी दुन्या मा जाणै अर फिर खुदे खुदेकि घुटे घुटेकि अन्तै एक मार्मिक कथा च जैमा फ्योंली मोरणा बाद अपड़ि आखिरी इच्छा से धार मा समाधि दिए जांद अर फिर सर्या घाटी मा वा पिंगला फूल बणिक फैली जांद जबकि श्री महेशानन्द जीक औगार कथा फ्योंली का प्रेम का कारण अपडा जलडौं बटि छटग्याँँ एक प्रवासी परिवारे घर बौड़णै सुखद कथा छ। एक सुखांत कथा छ त एक मार्मिक अर दुखान्त कथा छ।

लोककथा की फ्योंली का अनुभव अर सीख औगार कथै फ्योंली अनुभव प्रेम रूप मा ग़ोबिन्दु तैं (हमतैं ) दिंद साफ साफ दिखेन्द। बोले जा सकद कि लोककथै फ्योंली चरित्रे तुलना मा औगार कथै फ्योंली जादा सशक्त ,प्रखर अर अनुभवी च वा लोककथै फ्योंली सी मासूम नि लगदि।

कथाकर गढ़वाळि भाषा शब्द सम्पदा का जणगुरु छन्न ,कलमैं बेजोड़ सल्लि छन्न । युंन अपडा शब्द शिल्पन औगार कथौ द्वी मुख्य चरित्र फ्योंली अर ग़ोबिन्दु तैं दमदार ढंग से उकर्युंं च ,संवाद असरदार छन अर कम शब्दों मा गैरि चोट करण वळा छन्न ,दुर्लभ शब्दों आणा पखाणो को भौत सुन्दर इस्तमाल हुयूँ छ। औगार कथा मा ग़ोबिन्दु अर फ्योंली की धधम धै का बीच ,लुकाच्वारी का बीच प्रकृति को जन्न सैंदिष्ट चित्र महेशानन्द जिकु खैंचियूँ छ वो दुर्लभ छ।
पौड़ी का वरिष्ठ गढ़वाळि साहित्यकार अर उत्तराखण्ड ख़बरसार का संपादक , श्री विमल नेगी जीक उक्ति कि 'वो अबि रतब्योणी कु सी गैणु छ जु औंण वळा समैमा हमतैं दिना सूरजा दरसन जरूर करालो' महेशानन्द जीक पैलो कथा संग्रै कि पैली कथा 'औगार' पैढिक एकदम सै लगद अर या कथा वूंंकी कलमे सक्या को शंखनाद करद साफ देखे सुणै बि जा सकद।

   गढ़वाळि कथा साहित्य प्रेमियूं वास्ता औगार कथा अर ये कथा संग्रै कि हौरि कथा बि पढ़ण अर ससम्मान संग्रै कैरिक धरण लैक छन।

     एक भाषा साहित्य प्रेमी रूप मा औगार कथा व हौरि कथाओं तैं आपै जग्वाळ रैली।

कथा - औगार
कथा संग्रै - औगार
कथाकार - श्री महेशानन्द
प्रकाशक - ख़बरसार प्रकाशन,पौड़ी
प्रकाशन वर्ष - 2013
कथाकार सम्पर्क सूत्र : 99274 03469

  आदरणीय श्री महेशानन्द जी अर सब्बि गढ़भाषा साहित्य प्रेमियूं तैं सादर शुभकामना दगड़ि।

©गीतेश सिंह नेगी, सूरत (गुजरात )

Saturday, January 2, 2021

कोटद्वार में "आखर संस्था" के अध्यक्ष व गढ़वाली साहित्य सेवी संदीप रावत को मिला "हिमाद्रि रत्न -वर्ष 2020 " सम्मान

**गढ़वाली भाषा -  साहित्य में दिए जा रहे योगदान  हेतु  आखर संस्था के अध्यक्ष एवं साहित्य सेवी संदीप रावत को   मिला  वर्ष 2020 का  "हिमाद्रि  रत्न "  सम्मान**
    
    कोटद्वार गढ़वाल की  वर्षों पुरानी एवं प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था "साहित्यांचल ",  द्वारा    गढ़वाली भाषा - साहित्य  के सम्बर्धन  हेतु किए जा रहे कार्यों को देखते हुए 
 आखर संस्था के अध्यक्ष व  गढ़वाली लेखक  संदीप रावत को   "हिमाद्रि  रत्न -वर्ष 2020 "सम्मान से नवाजा गया। यह सम्मान "स्व.सीताराम ढौंडियाल  " की स्मृति में प्रतिवर्ष दिया जाता है, जो कि विगत 23 वर्षों से निरन्तर सुप्रसिद्ध साहित्यकारों, समाज में विशिष्ट योगदान देने वालों को दिया जा रहा है। "हिमाद्रि रत्न सम्मान "की संचालिका डॉ. मनोरमा ढौंडियाल हैं। 
      यह सम्मान समारोह देवी मंदिर रोड, संगम रिसोर्ट, कोटद्वार मे  नए वर्ष के प्रथम दिवस यानि 01 जनवरी 2021 को आयोजित  हुआ  । सम्मान समारोह  का संचालन साहित्यकार श्री  चंद्र प्रकाश नैथानीने किया एवं  अर अध्यक्षता "साहित्यांचल साहित्यिक संस्था " के  वर्तमान अध्यक्ष   श्री एस. पी. कुकरेती ने की ।  
    इस अवसर पर "आखर "  के अध्यक्ष  संदीप रावत ने कहा कि - यह सम्मान गढ़वाली भाषा - साहित्य का सम्मान है ,  गढ़वाली भाषा -साहित्य को समर्पित "आखर " समिति का सम्मान है । संदीप रावत ने इस सम्मान हेतु डॉ. 
नन्दकिशोर ढौंडियाल , हिमाद्रि रत्न सम्मान की संचालिका डॉ. मनोरमा ढौंडियाल एवं साहित्यांचल साहित्यिक संस्था,  कोटद्वार  का आभार एवं  व्यक्त किया। 
     इस कार्यक्रम मे   वरिष्ठ साहित्यकार व  इतिहासकार डॉ . रणवीर सिंह चौहान  ,  साहित्यकार  डॉ. ख्यात सिंह चौहान , साहित्यांचल साहित्यिक संस्था के  संस्थापक सदस्य 91 वर्षीय   श्री चक्रधर प्रसाद कमलेश जी,   श्री जनार्दन  बुड़ाकोटी,  वरिष्ठ  साहित्यकार श्री अनुसूया प्रसाद डंगवाल , डॉ. श्रीविलास बुड़ाकोटी,  श्री  लल्लन   बुड़ाकोटी,  कवयित्री  रिद्धि भट्ट संगीता उनियाल , जयदीप उनियाल, मंजुल ढौंडियाल , हिमाद्रि प्रिंटिंग प्रेस के  मोहित रावत, कोटद्वार के संदीप रावत,  डॉ. नन्द किशोर ढौंडियाल के परिवारिक   सदस्यों के  साथ  कोटद्वार के अन्य प्रबुद्धजन व लेखक  उपस्थित थे। 
     इस अवसर पर डॉ. नन्द किशोर ढौंडियाल को भी उनकी सेवानिवृति पर विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया। आखर के अध्यक्ष व गढ़वाली भाषा -साहित्य सेवी संदीप रावत ने अपने गुरु डॉ. नन्दकिशोर ढौंडियाल के हाथों से यह प्रतिष्ठित सम्मान ( हिमाद्रि रत्न ) प्राप्त होने पर खुद को बहुत गौरवान्वित महसूस किया। 

Sunday, December 27, 2020

Satire in Garhwali Poems by Sandeep Rawat -----Bhishma Kukreti Copyright © Bhishma Kukreti 24/4/2013

    Satire in Garhwali Poems by Sandeep Rawat


                                   Bhishma Kukreti
Copyright@ Bhishma Kukreti 24/4/2013


                    Sandeep Rawat is critics and poet of modern Garhwali literature.

Recently, Sandeep published his first Garhwali poetry collection ‘Ek Lapang’.

There are many satirical poems as Ultant, Vyvstha, Bhrastachar, Kab Ali bari , Ajkayalai halat,Ucchedi Bathaun, Kuttak, Cunau, Teen Bhai, March Fainal and many more in the collection.

 From the striking the culprit point of view, the Satirical Poems by Sandeep Rawat are sharp, middle and mild.  

 Sandeep is worried about the wrong happenings in the society as he dpicts that leech like worms are now stronger and are sucking the resources.

उलटंत  
 
गंडेळो  का सिंग पैना ह्वेगैनी 
जूंका का हडका कटगड़ा ह्वेगैनी  
 Sandeep shows his concern for the strong coalition between politics and administration for  looting India.
व्यवस्था
नेता अर अफसरों हाथ बिंडी खज्याणा छन
सरकर्या खजानों की
यूँ बांठी लगै खाणा छन
Sandeep is expert in using symbols for creating sharp satire
भ्रष्टाचार
भ्रष्टाचार
जन ल्वे को अंश ह्वेगे
Sandeep Rawat tactically uses animals as human beings for showing worsening India and is good example of personification in satirical poems.
कब आली बारी
कुकुर लग्यां छन पत्यला चटण पर
बिरळा  मिस्या छन थाळी  

अजक्यालै हालत
गळसट्या , गलादर अर चकडैत
आज संड मुसंड बण्या छन   
The poet uses symbols successfully for creating  desired images.
उछेदी बथों
मनखी आज उडणा छन
मनख्यात रखीं च ढुंगा मा

Most of Indians are aware that the government agencies do not spend money on developmental works till February but due to fear of not getting budget for next year, the government officials spend money on non developmental works to show the uses of budget.
मार्च फैनल
मार्च फैनल ऐग्ये भैजी 
मार्च फैनल ऐग्ये
सरकार बजट बल
सफाचट ह्वेगे 
Sandeep Rawat has been successful in ridiculing the wrongs.

 The poet is successful in showing the differences between incorrect and right through his satirical verses.

In his satirical poems, Rawat shows his concern for justice, morality and virtue.

Copyright@ Bhishma Kukreti 24/4/2013

---- Regards
Bhishma  Kukreti

Monday, December 14, 2020

"वरिष्ठ एवं सुप्रसिद्ध गढ़वाली साहित्यकार श्री ललित केशवान जी को दिया जाएगा " डॉ.गोविन्द चातक स्मृति आखर साहित्य सम्मान- वर्ष 2020" ----- संदीप रावत, श्रीनगर गढ़वाल।

 "वरिष्ठ एवं सुप्रसिद्ध    गढ़वाली साहित्यकार श्रद्धेय श्री ललित केशवान जी को दिया जाएगा " डॉ.गोविन्द चातक स्मृति आखर साहित्य सम्मान- वर्ष 2020"
      सर्व विदित है कि "आखर "समिति,श्रीनगर गढ़वाल द्वारा वर्ष 19 दिसम्बर 2017 से गढ़वाली भाषा व लोकसाहित्य के मूर्धन्य साहित्यकार डॉ. गोविन्द चातक जी की स्मृति में उनकी जयन्ती पर एक सफल विचार गोष्ठी और परिचर्चा का आयोजन शुरू किया गया था। सभी भाषा एवं साहित्य प्रेमीजनों की शुभकामनों से गढ़वाली लोक साहित्य व भाषा के क्षेत्र में स्व.डॉ.गोविन्द चातक जी के भगीरथ योगदान से प्रेरणा लेकर वर्ष 2018 से गोविन्द चातक जयन्ती के सुअवसर पर "आखर "समिति ,श्रीनगर गढ़वाल द्वारा डॉ.गोविन्द चातक स्मृति व्याख्यान आयोजन के साथ -साथ चातक परिवार के सहयोग से "डॉ.गोविन्द चातक स्मृति आखर साहित्य सम्मान " शुरू किया गया । इसमें सम्मान स्वरूप - रुपए ग्यारह हजार (11,000/ )की नगद राशि के साथ अंग वस्त्र  , मानपत्र व आखर स्मृति चिन्ह भेंट किया जाता है । गढ़वाली भाषा - साहित्य में अपना अमूल्य योगदान देने हेतु इस वर्ष का यह सम्मान अर्थात "डॉ. गोविन्द चातक स्मृति आखर साहित्य सम्मान- वर्ष 2020"   मंडावाली दिल्ली निवासी प्रख्यात वरिष्ठ गढ़वाली साहित्यकार, हास्य -व्यंग्य के सुप्रसिद्ध गढ़वाली कवि श्रद्धेय श्री ललित केशवान जी को दिया जाएगा। पूर्व मे यह सम्मान वर्ष 2018 मे डॉ. नंदकिशोर ढौंढियाल "अरुण " जी को और वर्ष 2019 मे स्व. मोहन लाल नेगी जी एवं स्व. बचन सिंह नेगी जी को सयुंक्त रूप से दिया गया।
     इस वर्ष के " आखर " सम्मान से सम्मानित होने वाले गढ़वाली साहित्यकार श्रद्धेय श्री ललित केशवान जी की गढ़वाली में 09 (नौ )पुस्तकें प्रकाशित हैं । हिन्दी में भी उनकी 10 (दस )पुस्तकें प्रकाशित हैं। दिल्ली में गढ़वाली काव्य गोष्ठीयों की शुरुआत करने में भी उनकी सक्रिय एवं महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
गढ़वाली साहित्यकार एवं हास्य - व्यंग्य के सुप्रसिद्ध कवि श्री ललित केशवान जी का जन्म 17 अगस्त 1939 को जिला पौड़ी गढ़वाल में अपने ननिहाल कांडा ( सितोनस्यूँ ) में हुआ एवं उनका गांव - सिरोली, (इडवालस्यूँ ),पौड़ी गढ़वाल में ही है। उनकी गढ़वाली में प्रकाशित पुस्तकें इस प्रकार से हैं -
(1) खिलदा फूल हैंसदा पात (हास्य कविता संग्रह )
(2) हरि हिंडवांण( गढ़वाली नाटक )
(3) दिख्यां दिन तप्यां घाम (गढ़वाली कविता संग्रह )
(4) सब मिलीक रौंला हम (गढ़वाली बाल कविता संग्रह)
(5)जब गरदिस मा गरदिस ऐना (गढ़वाली कविता संग्रह)
(6) दीवा ह्वेजा दैणी (गढ़वाली खण्डकाव्य )
(7) जै बद्री नारैण ( पाँच गढ़वाली एकांकी नाटक )
(8) गंगू रमोला (( गढ़वाली पौराणीक एकांकी नाटक)
(9) मिठास ( गढ़वाली कथा संग्रह ) 
    श्रद्धेय श्री ललित केशवान जी की गढ़वाली रचनाएँ सार गर्भित एवं बहुत सहज होती हैं, जो कवि सम्मेलनों में रंग जमा देती हैं। उनकी "खिलदा फूल हैंसदा पात (हास्य कविता संग्रह )" का पहला संस्करण 1982 में छपा था, जो कि बहुत ही चर्चित रहा । फिर इसका दूसरा संस्करण 2002 में प्रकाशित हुआ । इस कविता संग्रह की कुछ प्रमुख रचनाएँ - फस्स क्लास, लिम्बा, हे मेरी ब्वे कन मरी गै छौ मि, डाम, घुण्डा हिलै, सब्बि गोळ, तै रोका, बोट, बात, सीन मा, ललंगी गौड़ी, पटगा बंद आदि हैं ।
         कोविड -19 की  परिस्थिति के कारण इस वर्ष 19 दिसंबर 2020 को डॉ. गोविन्द चातक जी की जयन्ती पर "आखर "समिति द्वारा श्रद्धांजलि स्वरूप सूक्ष्म कार्यक्रम तो होगा परन्तु "डॉ. गोविन्द चातक स्मृति व्याख्यान माला व सम्मान समारोह " आयोजित नहीं किया जा सकेगा। निकट भविष्य में थोड़ा स्थिति सामान्य होने पर उचित समय "आखर" द्वारा आयोजित समारोह /कार्यक्रम में इस वर्ष का "डॉ0 गोविन्द चातक स्मृति आखर साहित्य सम्मान- वर्ष 2020 " श्रद्धेय श्री ललित केशवान जी को दिया जाएगा। 

                                       संदीप रावत
                              (अध्यक्ष - आखर समिति )
                                     श्रीनगर गढ़वाल