मेरी प्रकाशित पुस्तकें :-


(1) एक लपाग ( गढ़वाली कविता-गीत संग्रह)- समय साक्ष्य, (2) गढ़वाळि भाषा अर साहित्य कि विकास जात्रा (गढ़वाली भाषा साहित्य का ऐतिहासिक क्रम )-संदर्भ एवं शोधपरक पुस्तक - विन्सर प्रकाशन, (3) लोक का बाना (गढ़वाली आलेख संग्रह )- समय साक्ष्य, (4) उदरोळ ( गढ़वाली कथा संग्रह )- उत्कर्ष प्रकाशन ,मेरठ


Wednesday, May 26, 2021

" गढ़वाळि लिख्वार संदीप रावत दगड़ा सुशील पोखरियाल जी कि छ्वीं - बत्थ "

"साहित्यकार संदीप रावत जी दगड़ा सुशील पोखरियाल जी कि छ्वीं - बत्थ"
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सु.पु. --  गढ़वळि साहित्य जात्रा की सुर्वात आपल कब कर कन करि ?
सं.रा. --  बाळपन बटि गढ़वाळि गीत भला लगदा छायि, पुराणा - पुराणा गीत लगांदु छायि अर कबि - कबि त अपणा आप गीत मिसाणै कोसिस बि कर्दु छायि। जब मि दर्जा 8 मा रै होलु त मिन एक गीत लिखी छौ - " कन लोग रैना वो जो मातमा छायि, तपस्या कैरिक बि वो दुनियाम नि रायि। एक दिन हमुन बि दुनिया से चली जाण, धन - दौलत सब कुछ यखि छोड़ि जाण।" इन इन्नि कैरिक सुर्वात ह्वे। गढ़वाळि गद्य मा लिखणौ सुर्वात आदरणीय विमल नेगी जी का सम्पादन मा पौड़ी बटि छप्येण वळा गढ़वाळि साप्ताहिक समाचार पत्र 'उत्तराखंड खबरसार' अर आदरणीय ईश्वरी प्रसाद उनियाल जी का सम्पादन मा छप्येण वळा गढ़वाळि साप्ताहिक समाचार पत्र 'रंत रैबार' से 2009 का वार ध्वार ह्वे। जादातर लेख मेरा गढ़वाळि भाषा साहित्य सम्बन्धी होन्दा छायि।
सु.पु.--  आपल बाळपन की बात करि त इन बथावा कि आपौ प्रारम्भिक शिक्षा कख ह्वे अर उबारि प्राथमिक विद्यालयों को सजबिज कन छाइ ?
सं.रा.--  मिन आधारिक विद्यालय बटि दर्जा पांच पास करि। दर्जा दस तक मेरी पढ़ै-लिखै वेदीखाल मा हि ह्वे। दर्जा 2-3 बटि कापी, पेंसिल .... गुरजि लोगूं मार बि खांदा छायि। उठ - बैठ, पाणि सरणु, लखड़ा ल्याणु सब्बि धाणि होंदु छौ। प्राइमरी बटि हि भारि रौंस रांदि छै कि कब आलो पंदरा अगस्त अर छब्बीस जनवरी। कब लगौंलु मि गीत।
सु.पु.--  पाटी- ब्वळख्या बटि आज हम कंप्यूटर का युग मा एग्यों। बाळपन मा गीत लगाणै रौंस अर लगन बटि सुर्वात करि आज आप एक प्रतिष्ठित साहित्यकार छन। ईं साहित्यिक जात्रा मा आपल कै उकाळ - उंदार बि बोकि ह्वेली। कुछ वांका बारा मा .....
सं.रा.--  साधुवाद आपतैं। पर मि क्वी प्रतिष्ठित साहित्यकार नि छौं। अब्बि सिखणू, बिंगणू अर गुणणै कोसिस कनू छौं। सब्या वरिष्ठ अर अग्रज साहित्यकारों से भौत कुछ सिखणौ मिलि। कतगौं न अड्योणै कोसिस बि कैरी। कतगै दौं ज्यू - पराण खट्टो बि ह्वे, पर जात्रा जारी रै। लेखन अर रचनौ मा परिपक्वता त पढ़ण - लिखण से ही आंद।
सु.पु.--  कतगा इ वरिष्ठ लिख्वार ब्वलदन कि गढ़वाली भाषा मा किताब त भौत छपेणी छन पर गुणवत्ता कम च। अर कुछ ब्वलदन कि चलो ल्यखणा त छैं छन। आप क्य स्वचदन ?
स.रा.--  सब्यूं का अपणा - अपणा मत छन। अब्बि संग्ति लिख्येणू भौत जरूरी छ, गद्य अर पद्य द्विया विधाओं मा। बाद मा बगत का दगड़ि छंटणी अपणा आप ह्वे जाली। अब्बि 80 - 85% लिख्वार कविता पर ही पिलच्यां छन। नै छ्वाळि को रुझान गद्य की तर्फां कम च।
सु.पु.--  उत्तराखंड मा अर वांसे भैर बि अनेक संस्था कवि सम्मेलन अर गीत - संगीत का कार्यक्रम उर्याणी छन। यांका बावजूद बि शहरों अर गौं का कस्बा - बाजारों मा नै छ्वाळि गढ़वळि मा बच्याण से परहेज़ कनी च। क्य बात ह्वेली ?
सं.रा.--  संस्था अपणि - अपणि तर्फां बटि काम त कनीं छन, पर बाजि - बाजि दौं त खानापूर्ति सि बि नजर आंद। जब तक धरातल परै काम नि करे जालु; आम लोग अपणि मातृभाषा का प्रति हीन भावना नि छ्वाड़ला; भाषा रोजगार से नि ज्वड़े जालि, तब तलक चुनौती त छैंयी छन। कै बि भाषौ व्यावहारिक पक्ष महत्वपूर्ण होंद। भाषा की भल्यार अर संवर्द्धन का वास्ता ब्वलदरा, बिंगदरा, लिखदरा अर पढ़दरा बि चैंणा छन।
सु.पु.--  रावत जी, आप लगातार लेखन से  गढ़वळि साहित्य भण्डार की जै बिरदि कना छौ। अबि तलक आपकि पांच पोथि प्रकाशित ह्वेगिन। कुछ वूंका बारा मा बि प्रकाश डाला।
सं.रा.--  मेरि पैलि गढ़वाळि पुस्तक 'एक लपाग' कविता - गीत संग्रै का रूप मा सन् 2013 मा छप्ये। फिर मिन 192 पेज की एक गढ़वाळि गद्य की पुस्तक 'गढ़वाळि भाषा अर साहित्य कि विकास जात्रा' लेखि, ज्वा सन् 2014 मा प्रकाशित ह्वे। ईं किताब मा समग्र रूप से गढ़वाली भाषा मा गद्य - पद्य, सब्बि विधाओं जनकि भाषा - विज्ञान, अनुवाद, काव्य, कथा, व्यंग्य, निबंध, नाटक, उपन्यास, व्यंग्य चित्र, चिट्ठी पतरि, समालोचना, गढ़वाळि समाचार पत्र - पत्रिकौं कु इतिहास इकबटोळ करने कोसिस कर्यीं छ। 
सन् 2016 मा 'लोक का बाना' (गढ़वाली आलेख संग्रह) प्रकाशित ह्वे। जै मा लोक संस्कृति सम्बन्धी आलेख छन। मेरी चौथि गढ़वाळि पोथि 'उदरोळ' (गढ़वाली कथा संग्रह) सन् ,2017 मा छप्ये। जैमा लोक समाज की छ्वट्टि - छ्वट्टि 34 गढ़वाळि कथा छन। अर पांचवीं किताब 'तू हिटदि जा' (गढ़वाली गीत संग्रै) 2019 मा प्रकाशित ह्वे।
सु.पु.-- गढ़वळि भाषा का आप एक कर्मठ अर सक्रिय लिख्वार छन। आशा कर्दौं कि अगनै बि गढ़वळि साहित्य भंडार मा अग्याळ देणा रैल्या। अब एक आम शिकैत लिख्वारों की या बि रैंद कि अपणि गैड़ि पैंसा खर्च करि किताब छपवाओ, फिर सप्रेम भेंट कारों। वांका बावजूद बि लोग नि पढ़दा। किताब बिकणि नि छन। क्य ब्वन च्हेल्या ?
सं.रा.--  कतगै दौं इन द्यखण अर सुणणा मा बि आयि कि गढ़वळि भाषा का लिख्वार हि एक हैंका लिख्यूं नि पढ़णा छन; आम पाठक त भौत दूरै छ्वीं‌ छन। गढ़वळि साहित्य की वितरण व्यवस्था बि अबि ठिक ढंग से नि ह्वे सकणी छ। लिख्वारों का घर मा हि चट्टा लग्यां‌ छन अपणि किताब्यूं का। कुछ - कुछ जगा मेळा - थौळों, साहित्यिक कार्यक्रमों मा गढ़वाळि साहित्य का स्टाल लगणा छन, य एक अनुकरणीय पहल छ। पर आज यांसे बि बढिक काम कन्नै जर्वत छ। सब्बि सम्पादक, प्रकाशक अर लिख्वार आपस मा मिलिक तैं क्वी कारगर योजना बणै सक्दन। , जांसे गढ़वाळि साहित्यौ प्रचार - प्रसार हो अर आम लोगूं की पौंच मा बि किताब होवुन।
सु.पु.--  गढ़वळि भाषा का प्रचार - प्रसार मा सोशल मीडिया की भूमिका का बारा मा आप क्य स्वचदन ?
सं.रा.--  भाषा का प्रचार - प्रसार मा सोशल मीडिया आज बड़ी भूमिका निभौणू छ। स्थापित साहित्यकारों का दगड़ा - दगड़ नया लिख्वारों का वास्ता बि यो एक अच्छो अर बड़ो मंच साबित होणू छ। लोग यूट्यूब अर फेसबुक मा कविता - गीतों का वीडियो द्यखणा छन, चर्चा - परिचर्चा, कवि सम्मेलन मा साहित्यकारों तैं लाइव द्यखणा छन। अमेजन, फ्लिपकार्ट, गूगल, ई बुक पर गढ़वाळि किताब बि मिलि जाणी छन। गूगल पर एक क्लिक का माध्यम से कतगै साहित्यकार अर वूंको काम समणि ए जांद।
सु.पु.-- गढ़वळि भाषा का नै लिख्वारु तैं आप क्य रैबार दींण च्हेल्या ?
सं.रा.--  नै छ्वाळि का जादातर लिखदरा बस लिखण परैं हि लग्यां छन, पढ़णा कम छन। रचनौं मा मीनत जरूरी छ, मौलिकता जरूरी छ। नै - नै विषयों पर बि लिखणै कोसिस कन्न चैंद। शार्टकट अर नकल से बचण प्वाड़लो। पद्य का दगड़ा गद्य परैं बि नै लिख्वारौं तैं ध्यान द्येण चैंद।
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                                   ...सुशील पोखरियाल।
         (रंत रैबार,अंक 24 मई 2021मा प्रकाशित )

6 comments:

  1. सार्थक और प्रेरक प्रस्तुति

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  2. आखर ब्लाग में प्रकाशित करने हेतु आपका हार्दिक आभार 🙏🌹🤷

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  3. भोत महत्वपूर्ण साक्षात्कार। नमन 🙏

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