मेरी प्रकाशित पुस्तकें :-


(1) एक लपाग ( गढ़वाली कविता-गीत संग्रह)- समय साक्ष्य, (2) गढ़वाळि भाषा अर साहित्य कि विकास जात्रा (गढ़वाली भाषा साहित्य का ऐतिहासिक क्रम )-संदर्भ एवं शोधपरक पुस्तक - विन्सर प्रकाशन, (3) लोक का बाना (गढ़वाली आलेख संग्रह )- समय साक्ष्य, (4) उदरोळ ( गढ़वाली कथा संग्रह )- उत्कर्ष प्रकाशन ,मेरठ


Saturday, June 29, 2019

संदीप रावत की गढ़वाली कविताएं - उलटन्त,जुगराज रयां,सब्र को बीज ,कब आली बारी, बचपन


                     * संदीप रावत  *
        ( शिक्षक , गढ़वाली लेखक)
जन्म- 30 जून 1972
जन्म स्थान - ग्राम : अलखेतू(कसाणी),पोस्ट- बगड़ी(वाया-पोखड़ा), पट्टी-तलाईं ,जिला -पौड़ी गढ़वाल
वर्तमान पता-   न्यू डांग, श्रीनगर गढ़वाल  (उत्तराखंड )
सम्प्रति - प्रवक्ता(रसायन), रा.इ.कॉ.धद्दी घण्डियाल बडियारगढ़ (टि. ग.)
पिता का नाम - श्री महावीर सिंह रावत |
माता का नाम - स्व0 कमला रावत |
प्रकाशन -  चार गढ़वाली पुस्तकें प्रकाशित
(1) एक लपाग ( गढ़वाली कविता-गीत संग्रह)
(2) गढ़वाळि भाषा अर साहित्य कि विकास जात्रा (गढ़वाली भाषा साहित्य का ऐतिहासिक क्रम )
(3) लोक का बाना (गढ़वाली आलेख संग्रह )
(4) उदरोळ ( गढ़वाली कथा संग्रह )

©संदीप रावत की कविताएं -
   
  (1)   कविता : 
            
         *उलटन्त *

गंडेळों का सिंग पैना ह्वेगैनी,
जूंको का हडगा कटगड़ा ह्वेगैनी
किताळों कि बैकबून मजबूत ह्वेग्ये,
अर! मच्छरौं का टँगड़ा सीधा ह्वेगैनी |

किरम्वळा अब तड़ाक नि देंदा, डंक मन्ना
सरैल मा जहर कि मिसाइल छ्वडणा
उप्पनोंन बि तड़काणु छोड़ियाळि
तौं पर अब डी डी टी अर निआन असर नि कन्ना  |

संगुळा अर झौड़ा बज्रबाण बण्यां
न्योळा अर गुरौ अब दगड्या बण्या
बिरौळा कि बरात मा मूसा ब्रेकडांस कन्ना
अर! चौंर्या स्याळ बाघ ना, शेर बण्या  |

भौंरा -मिरासि फूलों मा जहर छ्वळणा
बल उल्लू दिन मा द्यखणा
हंस, काणा अर गरुड्या चाल हिटणा 
घूण, अन्न $ बदला, मनखि तैं घुळणा  |

हूंदा खांदा गौं मा घेंदुड़ा पधान बण्या
जूंका अब ल्वे ना, इमान चुसणा 
बिरौळा अब खौं बाघ बणी गैनी
अर!  कुकरौं कि दौड़ मा, भ्वट्या शेर बण्या  |

   (2) कविता :
          
        *जुगराज रयां *

जुगराज रयां वू मनखी
जु अपणु फजितु कैकि अब्बि बि
गौं मा मुण्ड कोचिक बैठ्यां छन
अपणा पित्र कूड़ा
अर थर्प्यां द्यबतौं मा द्यू -धुपणो कन्ना छन |

जुगराज रयां वू
औजी, धामी -जागरी
जु अब्बि बि नौबत, धुंयाल बजौणा छन
घर -गौं तैं ज्यूंदो रखणा छन |

जुगराज रयां वू
मां- बैणी
जु  अज्यूं बि कखि दूर गौं मा
थड्या, चौंफळा खेलणा छन |

जुगराज रयां वू सब्बि
जु अपणि ब्वे तैं नि छ्वड़णा छन
जु जांदरौं तैं द्यखणा छन
तब बि अपणा गौं मा छन |

(3)  कविता :  
                * कब आली बारी *
      
      कुकुर लग्यां छन पत्यला चटण पर
       बिरौळा मिस्यां छन थाळी
       गूणी -बांदर स्याळ टपरौणा
       कब आली हमारी बारी ,
       गुरौ बैठ्यां छन यखा खज्यना पर
       संग्ति कुण्डळी मारी
       भ्रष्ट सुंगरौंन चबट्ट कैर्याली
       ईमान कि सैरी सारी |

(4) कविता :  
                   *सब्र को बीज *
             एक बीज सब्र को
             हमारा भितर होण चैंद ,
              हव्वा कैs बि दिशा हो
              धीरज नी खोण चैंद |
                         अर ! खाद -पाणी मीनत की
                               सदानि दिदा होण चैंद ,
                               अफुं पर विश्वास कैर
                                 जै - कै मा नी रोण चैंद |
                                एक बीज सब्र को
                                 हमारा भितर होण चैंद |
(5 ) कविता :
                 * बचपन *
          टीवी ,मोबाइल ,
           कम्प्यूटर अर
           किताब्यूं का नीस
            दबणू च बचपन ,
            दूध- घ्यू अर दैS का बदला
            चाउमीन  चौकलेट
            छकणू  छ बचपन |
                            कमरों का भितर
                             आज ग्वड्यूं छ
                             फस्सोरिक स्ये नि
                             सकणू छ बचपन ,
                             खेली नि सकणू
                              हैंसी नि सकणू
                             झसकेणू अर छळेणू छ बचपन |
      © संदीप रावत ,न्यू डांग ,श्रीनगर गढ़वाल
                गढ़वाली लेखक/ कवि, गीतकार
                  मो0- 9720752367
 
     

         

 
 

 

संदीप रावत की गढ़वाली कविताएं - उलटन्त,जुगराज रयां,सब्र को बीज ,कब आली बारी, बचपन


                     * संदीप रावत  *
        ( शिक्षक , गढ़वाली लेखक)
जन्म- 30 जून 1972
जन्म स्थान - ग्राम : अलखेतू(कसाणी),पोस्ट- बगड़ी(वाया-पोखड़ा), पट्टी-तलाईं ,जिला -पौड़ी गढ़वाल
वर्तमान पता-   न्यू डांग, श्रीनगर गढ़वाल  (उत्तराखंड )
सम्प्रति - प्रवक्ता(रसायन), रा.इ.कॉ.धद्दी घण्डियाल बडियारगढ़ (टि. ग.)
पिता का नाम - श्री महावीर सिंह रावत |
माता का नाम - स्व0 कमला रावत |
प्रकाशन -  पाँच गढ़वाली पुस्तकें प्रकाशित
(1) एक लपाग ( गढ़वाली कविता-गीत संग्रह)
(2) गढ़वाळि भाषा अर साहित्य कि विकास जात्रा (गढ़वाली भाषा साहित्य का ऐतिहासिक क्रम )
(3) लोक का बाना (गढ़वाली आलेख संग्रह )
(4) उदरोळ ( गढ़वाली कथा संग्रह )

(5) तू हिटदि जा (गढ़वाली गीत संग्रह )

©संदीप रावत की कविताएं -
   
  (1)   कविता : 
            
         *उलटन्त *

गंडेळों का सिंग पैना ह्वेगैनी,
जूंको का हडगा कटगड़ा ह्वेगैनी
किताळों कि बैकबून मजबूत ह्वेग्ये,
अर! मच्छरौं का टँगड़ा सीधा ह्वेगैनी। 

किरम्वळा अब तड़ाक नि देंदा, डंक मन्ना छन
सरैल मा जहर कि मिसाइल छ्वडणा छन
उप्पनोंन बि तड़काणु छोड़ियाळि
तौं पर अब डी डी टी अर निआन असर नि कन्ना। 

संगुळा अर झौड़ा बज्रबाण बण्यां 
न्योळा अर गुरौ अब दगड्या बण्या
बिरौळा कि बरात मा मूसा ब्रेकडांस कन्ना 
अर! चौंर्या स्याळ बाघ ना, शेर बण्या। 

भौंरा -मिरासि फूलों मा जहर छ्वळणा 
बल उल्लू दिन मा द्यखणा। 
हंस, काणा अर गरुड्या चाल हिटणा 
घूण, अन्न $ बदला, मनखि तैं घुळणा। 

हूंदा खांदा गौं मा घेंदुड़ा पधान बण्या
जूंका अब ल्वे ना, इमान चुसणा 
बिरौळा अब खौं बाघ बणी गैनी
अर!  कुकरौं कि दौड़ मा, भ्वट्या शेर बण्या। 

   (2) कविता :
          
        *जुगराज रयां *

जुगराज रयां वू मनखी
जु अपणु फजितु कैकि अब्बि बि
गौं मा मुण्ड कोचिक बैठ्यां छन
अपणा पित्र कूड़ा
अर थर्प्यां द्यबतौं मा द्यू -धुपणो कन्ना छन |

जुगराज रयां वू
औजी, धामी -जागरी
जु अब्बि बि नौबत, धुंयाल बजौणा छन
घर -गौं तैं ज्यूंदो रखणा छन |

जुगराज रयां वू
मां- बैणी
जु  अज्यूं बि कखि दूर गौं मा
थड्या, चौंफळा खेलणा छन |

जुगराज रयां वू सब्बि
जु अपणि ब्वे तैं नि छ्वड़णा छन
जु जांदरौं तैं द्यखणा छन
तब बि अपणा गौं मा छन |

(3)  कविता :  
                * कब आली बारी *
      
      कुकुर लग्यां छन पत्यला चटण पर
       बिरौळा मिस्यां छन थाळी
       गूणी -बांदर स्याळ टपरौणा
       कब आली हमारी बारी ,
       गुरौ बैठ्यां छन यखा खज्यना पर
       संग्ति कुण्डळी मारी
       भ्रष्ट सुंगरौंन चबट्ट कैर्याली
       ईमान कि सैरी सारी |

(4) कविता :  
                   *सब्र को बीज *
             एक बीज सब्र को
             हमारा भितर होण चैंद ,
              हव्वा कैs बि दिशा हो
              धीरज नी खोण चैंद |
                         अर ! खाद -पाणी मीनत की
                               सदानि दिदा होण चैंद ,
                               अफुं पर विश्वास कैर
                                 जै - कै मा नी रोण चैंद |
                                एक बीज सब्र को
                                 हमारा भितर होण चैंद |
(5 ) कविता :
                 * बचपन *
          टीवी ,मोबाइल ,
           कम्प्यूटर अर
           किताब्यूं का नीस
            दबणू च बचपन ,
            दूध- घ्यू अर दैS का बदला
            चाउमीन  चौकलेट
            छकणू  छ बचपन |
                            कमरों का भितर
                             आज ग्वड्यूं छ
                             फस्सोरिक स्ये नि
                             सकणू छ बचपन ,
                             खेली नि सकणू
                              हैंसी नि सकणू
                             झसकेणू अर छळेणू छ बचपन |
      © संदीप रावत ,न्यू डांग ,श्रीनगर गढ़वाल
                गढ़वाली लेखक/ कवि, गीतकार
                  मो0- 9720752367
 
     

         

 
 



 

Friday, June 28, 2019

गढ़वाली सरस्वती वंदना (तेरू ही शुभाशीष च), गढ़वाली गीत ( मि वे मुल्क कु छौं)

गढ़वाली  कवि एवं गीतकार संदीप रावत (श्रीनगर गढ़वाल ) की रचनाएं -

(1) गढ़वाली सरस्वती वंदना -
                  *तेरू ही शुभाशीष च *
तेरू ही शुभाशीष च हे जो कुछ बि पायि मिन
माता सरस्वती हे माँ , माता सरस्वती हे माँ
माता भगवती हे माँ .....

गीत, शब्द, लय ,ताल ,छन्द त्वेसे ही औंदन
मिठ्ठी वाणी,मिठ्ठा बोल कण्ठ त्वेसे ही औंदन
मेरा कण्ठ -कलम मा वास हो , कण्ठ -कलम मा वास हो
माता सरस्वती हे माँ..
तेरू ही शुभाशीष च हे जो कुछ बि पायि मिन..

मि निराट अग्यानी छौ ,खोटु छौ मि भारी माँ
कुबट्ट बटि सुबाटोम् त्वेन ही मी राखी माँ
सत का बाटाें हिटदी रौंवु , सच सदानि लिखदी रौंवु
माता सरस्वती हे माँ....
तेरू ही शुभाशीष च हे जो कुछ बि पायि मिन
     © संदीप रावत ,श्रीनगर गढ़वाल

(2)गीत-
            *मि वे मुल्क कु छौं *

मि वे मुल्क कु छौंऊँ जख डांडी काँठी बच्यान्द
हवा गीत लगान्द अर डाळी साज बजान्द।

मुण्ड मा हिमालै कु मुकुट सज्यूं पैतळ्यूं हरि -हरद्वार
बनी- बनी की छन जैड़ी -बूटी, बनी -बनी फूल-फुल्यार
सडक्यूं का उंचा-निसा घूम पुंगडी पठाली भली सुहान्द
मी वे मुल्क कु छौऊँ जख डांडी -काँठी बच्यान्द।

द्वादश ज्योतिर्लिंग मा केदार , जख भू बैकुंठ धाम
ऋषि मुनि द्यो- द्यबतौं की धरती जै देव भूमि बोलदान
गंगा जमुना कु मैत जख ,ज्योत अखंड जगी रान्द
मी वे मुल्क कु छोऊँ जख डांडी- काँठी बच्यान्द।

हिंसोळा किनगोड़ा,तिमला,काफळ करहिंस्वाळी कि मिठास
छ्युतम्यळि,आडू,-अखोड़, सीमळा कु कनु भलु चलमुळु स्वाद
बारा बनी की रस्याळ सक्या मनख्यूं की बढान्द
मी वे मुल्क कु छौंऊँ जख डांडी काँठी बच्यान्द।

लगदा मंडाण, नचदन पण्डौं झमकदो झुमैलो झुमान्द
भला -भला गीतों का.झमकों मा मनखी खैरी अपणी भुलान्द
कफू, हिलाँस का सुर सुणेंदा घुर -घुर घुघुती घुरान्द
मी वे मुल्क कु छौंऊँ जख डांडी -काँठी बच्यान्द।

मन कुंगळा मनख्यों का अर क्वांसो छन पराण
सेवा -सौंळी न्यूत- ब्यूंत की रीत मा जख रस्याण
मिठ्ठी -मयळदी बोली -भाषा जिकुड़्यूं छ्पछ्पी लान्द
मी वे मुल्क कु छौंऊँ जख डांडी- काँठी बच्यान्द |
© संदीप रावत ,श्रीनगर गढ़वाल |
      
              
     
            

Friday, June 14, 2019

गढ़वाली रचना - देखी सक्दि त देखी ले

                  * देखी सक्दि त देखी ले *
मन कि आँख्यून अफुथैं अफूं देखी सक्दि त देखी ले
घुप अँध्यरा मा बि उज्याळु  देखी सक्दि त देखी ले  |

भितर  अपणू ल्वे   बगद  कै$न कब्बि नि देखी रे
भितर तेरा कतगा सक्या परेखी  सक्दि परेखी ले  |

फेल-पास से कुछ नि होंद  सबसे बड़ी करमों कि जात
हो आज मा तू भोळ अपणू  देखी  सक्दि  त देखी ले  |

अपणा हिस्सा को द्यू अफ्वीं यख बळण पड़द मेरा दिदा
कै$का  सारा कब   तै रैलू अफूं हिटीक त देखी ले  |

दुख कि घाण दिक्क -पराण जीवन का हिस्सा -किस्सा छन
हो पीड़ मा बि  आस देखी सक्दि छैयी त देखी ले  |
    
Copiright रचनाकार व कम्पोजर/गीतकार © संदीप  रावत ,न्यू डांग ,श्रीनगर गढ़वाल |