गढ़वाली कवि एवं गीतकार संदीप रावत (श्रीनगर गढ़वाल ) की रचनाएं -
(1) गढ़वाली सरस्वती वंदना -
*तेरू ही शुभाशीष च *
तेरू ही शुभाशीष च हे जो कुछ बि पायि मिन
माता सरस्वती हे माँ , माता सरस्वती हे माँ
माता भगवती हे माँ .....
गीत, शब्द, लय ,ताल ,छन्द त्वेसे ही औंदन
मिठ्ठी वाणी,मिठ्ठा बोल कण्ठ त्वेसे ही औंदन
मेरा कण्ठ -कलम मा वास हो , कण्ठ -कलम मा वास हो
माता सरस्वती हे माँ..
तेरू ही शुभाशीष च हे जो कुछ बि पायि मिन..
मि निराट अग्यानी छौ ,खोटु छौ मि भारी माँ
कुबट्ट बटि सुबाटोम् त्वेन ही मी राखी माँ
सत का बाटाें हिटदी रौंवु , सच सदानि लिखदी रौंवु
माता सरस्वती हे माँ....
तेरू ही शुभाशीष च हे जो कुछ बि पायि मिन
© संदीप रावत ,श्रीनगर गढ़वाल
(2)गीत-
*मि वे मुल्क कु छौं *
मि वे मुल्क कु छौंऊँ जख डांडी काँठी बच्यान्द
हवा गीत लगान्द अर डाळी साज बजान्द।
मुण्ड मा हिमालै कु मुकुट सज्यूं पैतळ्यूं हरि -हरद्वार
बनी- बनी की छन जैड़ी -बूटी, बनी -बनी फूल-फुल्यार
सडक्यूं का उंचा-निसा घूम पुंगडी पठाली भली सुहान्द
मी वे मुल्क कु छौऊँ जख डांडी -काँठी बच्यान्द।
द्वादश ज्योतिर्लिंग मा केदार , जख भू बैकुंठ धाम
ऋषि मुनि द्यो- द्यबतौं की धरती जै देव भूमि बोलदान
गंगा जमुना कु मैत जख ,ज्योत अखंड जगी रान्द
मी वे मुल्क कु छोऊँ जख डांडी- काँठी बच्यान्द।
हिंसोळा किनगोड़ा,तिमला,काफळ करहिंस्वाळी कि मिठास
छ्युतम्यळि,आडू,-अखोड़, सीमळा कु कनु भलु चलमुळु स्वाद
बारा बनी की रस्याळ सक्या मनख्यूं की बढान्द
मी वे मुल्क कु छौंऊँ जख डांडी काँठी बच्यान्द।
लगदा मंडाण, नचदन पण्डौं झमकदो झुमैलो झुमान्द
भला -भला गीतों का.झमकों मा मनखी खैरी अपणी भुलान्द
कफू, हिलाँस का सुर सुणेंदा घुर -घुर घुघुती घुरान्द
मी वे मुल्क कु छौंऊँ जख डांडी -काँठी बच्यान्द।
मन कुंगळा मनख्यों का अर क्वांसो छन पराण
सेवा -सौंळी न्यूत- ब्यूंत की रीत मा जख रस्याण
मिठ्ठी -मयळदी बोली -भाषा जिकुड़्यूं छ्पछ्पी लान्द
मी वे मुल्क कु छौंऊँ जख डांडी- काँठी बच्यान्द |
© संदीप रावत ,श्रीनगर गढ़वाल |
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