* संदीप रावत *
( शिक्षक , गढ़वाली लेखक)
जन्म- 30 जून 1972
जन्म स्थान - ग्राम : अलखेतू(कसाणी),पोस्ट- बगड़ी(वाया-पोखड़ा), पट्टी-तलाईं ,जिला -पौड़ी गढ़वाल
वर्तमान पता- न्यू डांग, श्रीनगर गढ़वाल (उत्तराखंड )
सम्प्रति - प्रवक्ता(रसायन), रा.इ.कॉ.धद्दी घण्डियाल बडियारगढ़ (टि. ग.)
पिता का नाम - श्री महावीर सिंह रावत |
माता का नाम - स्व0 कमला रावत |
प्रकाशन - पाँच गढ़वाली पुस्तकें प्रकाशित
(1) एक लपाग ( गढ़वाली कविता-गीत संग्रह)
(2) गढ़वाळि भाषा अर साहित्य कि विकास जात्रा (गढ़वाली भाषा साहित्य का ऐतिहासिक क्रम )
(3) लोक का बाना (गढ़वाली आलेख संग्रह )
(4) उदरोळ ( गढ़वाली कथा संग्रह )
(5) तू हिटदि जा (गढ़वाली गीत संग्रह )
©संदीप रावत की कविताएं -
(1) कविता :
*उलटन्त *
गंडेळों का सिंग पैना ह्वेगैनी,
जूंको का हडगा कटगड़ा ह्वेगैनी
किताळों कि बैकबून मजबूत ह्वेग्ये,
अर! मच्छरौं का टँगड़ा सीधा ह्वेगैनी।
किरम्वळा अब तड़ाक नि देंदा, डंक मन्ना छन
सरैल मा जहर कि मिसाइल छ्वडणा छन
उप्पनोंन बि तड़काणु छोड़ियाळि
तौं पर अब डी डी टी अर निआन असर नि कन्ना।
संगुळा अर झौड़ा बज्रबाण बण्यां
न्योळा अर गुरौ अब दगड्या बण्या
बिरौळा कि बरात मा मूसा ब्रेकडांस कन्ना
अर! चौंर्या स्याळ बाघ ना, शेर बण्या।
भौंरा -मिरासि फूलों मा जहर छ्वळणा
बल उल्लू दिन मा द्यखणा।
हंस, काणा अर गरुड्या चाल हिटणा
घूण, अन्न $ बदला, मनखि तैं घुळणा।
हूंदा खांदा गौं मा घेंदुड़ा पधान बण्या
जूंका अब ल्वे ना, इमान चुसणा
बिरौळा अब खौं बाघ बणी गैनी
अर! कुकरौं कि दौड़ मा, भ्वट्या शेर बण्या।
(2) कविता :
*जुगराज रयां *
जुगराज रयां वू मनखी
जु अपणु फजितु कैकि अब्बि बि
गौं मा मुण्ड कोचिक बैठ्यां छन
अपणा पित्र कूड़ा
अर थर्प्यां द्यबतौं मा द्यू -धुपणो कन्ना छन |
जुगराज रयां वू
औजी, धामी -जागरी
जु अब्बि बि नौबत, धुंयाल बजौणा छन
घर -गौं तैं ज्यूंदो रखणा छन |
जुगराज रयां वू
मां- बैणी
जु अज्यूं बि कखि दूर गौं मा
थड्या, चौंफळा खेलणा छन |
जुगराज रयां वू सब्बि
जु अपणि ब्वे तैं नि छ्वड़णा छन
जु जांदरौं तैं द्यखणा छन
तब बि अपणा गौं मा छन |
(3) कविता :
* कब आली बारी *
कुकुर लग्यां छन पत्यला चटण पर
बिरौळा मिस्यां छन थाळी
गूणी -बांदर स्याळ टपरौणा
कब आली हमारी बारी ,
गुरौ बैठ्यां छन यखा खज्यना पर
संग्ति कुण्डळी मारी
भ्रष्ट सुंगरौंन चबट्ट कैर्याली
ईमान कि सैरी सारी |
(4) कविता :
*सब्र को बीज *
एक बीज सब्र को
हमारा भितर होण चैंद ,
हव्वा कैs बि दिशा हो
धीरज नी खोण चैंद |
अर ! खाद -पाणी मीनत की
सदानि दिदा होण चैंद ,
अफुं पर विश्वास कैर
जै - कै मा नी रोण चैंद |
एक बीज सब्र को
हमारा भितर होण चैंद |
(5 ) कविता :
* बचपन *
टीवी ,मोबाइल ,
कम्प्यूटर अर
किताब्यूं का नीस
दबणू च बचपन ,
दूध- घ्यू अर दैS का बदला
चाउमीन चौकलेट
छकणू छ बचपन |
कमरों का भितर
आज ग्वड्यूं छ
फस्सोरिक स्ये नि
सकणू छ बचपन ,
खेली नि सकणू
हैंसी नि सकणू
झसकेणू अर छळेणू छ बचपन |
© संदीप रावत ,न्यू डांग ,श्रीनगर गढ़वाल
गढ़वाली लेखक/ कवि, गीतकार
मो0- 9720752367
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