मेरी प्रकाशित पुस्तकें :-


(1) एक लपाग ( गढ़वाली कविता-गीत संग्रह)- समय साक्ष्य, (2) गढ़वाळि भाषा अर साहित्य कि विकास जात्रा (गढ़वाली भाषा साहित्य का ऐतिहासिक क्रम )-संदर्भ एवं शोधपरक पुस्तक - विन्सर प्रकाशन, (3) लोक का बाना (गढ़वाली आलेख संग्रह )- समय साक्ष्य, (4) उदरोळ ( गढ़वाली कथा संग्रह )- उत्कर्ष प्रकाशन ,मेरठ


Sunday, January 3, 2021

मनखि अर प्रकृति कि रुमैलि दुन्या का उमैला सम्बन्धों कि कथा च "औगार "(कथाकार -महेशानन्द ) -----समीक्षक ©गीतेश सिंह नेगी, सूरत, गुजरात।

मनखि अर प्रकृति कि रुमैलि दुन्या का उमैला सम्बन्धों  कि कथा च "औगार "

                          --गीतेश सिंह नेगी

पहाडै लोकजीवन मा फ्योंली भौत खास च । अजर अमर रिस्ता च फ्योंली अर पहाड़ौ । बिगैर पाड़ै फ्योंली अर बिगैर फ्योंली पाड़ै गाणि अर खूबसूरती द्वी अद्धा अधूरी सी लग्दिन । फ्योंली सिरप एक फूल नि, हमर लोकै एक भौत ही लोकप्रिय कथै एक चिंंतौलि नायिका बि च फ्योंली जैंतैं केंद्र मा रखी तैं 'औगार' जन्न बेजोड़ कथा रची फ्योंली जन्न कुंगला अर उमैला मनै चिंतौंला लिख्वार, गढ़वाळि का जण्या मण्या कथाकार महेशानंद जीन ।

'औगार ' कथा का खास चरित्र गोबिन्दु अर फ्योंली छन। कथा मा कल्पनाशीलता देखण लेक च अर या कथा, कथाकारै बेजोड़ कल्पना शक्ति को परचौ बि दिन्द अर आखिर मा या कथा यथार्थ का धरातल परै बि अपड़ि पूरी सक्या दगड़ि खड़ी दिखेन्द।

' औगार ' कथा एक आम प्रवासी जीवनै यथार्थै धरातल परै पूरी संवेदना अर प्रेम दगडी अंग्वाल बोटि हिटणी छ जैमा कथै नायिका फ्योंली , नायक गोबिन्दु मा अपड़ि 'औगार' कन्नी च। असल मा या सिरप फ्योंली 'औगार' नि या फ्योंली नौ से सर्या पाड़ै 'औगार' च अर या औगार पहाड़ै हर वे हम जन्न ग़ोबिन्दु से च जु बालापन्न मा ही अपडा प्रेम ईं फ्योंली अर ये पाड़ बटि उन्दू जैकि दूर चली ग्ये। कथा मा ग़ोबिन्दु फ्योंली तैं खोजणु पर वा वे तैं कखि दिखेणी नि । वू फ्योंली तैं धै लगौन्द पर फ्योंली वे तैं नि दिखेन्दी किलैकि फ्योंली अपड़ि बरसों बटि हुँदा जाणी उपेक्षा से खींन्न च त वा ग़ोबिन्दु समणि नि औंदी वा वे तैं या बात बिंगौंण अर जिन्दगी कु एक खास सबक सिकौण चांदी । वा वे तैं इन्ना वुना धै मारिक अटगौंणी रैन्दी पर वेका कखि हत्थ नि औंदी । आखिर मा वा अपडा मनै 'औगार' ग़ोबिन्दु मा लगै दिन्द कि वा वे से दूर क्यो छ ? वू किलै नि भेंटे सकणा छन ? वा गोबिन्दु तैं सचै दगड़ि परचौ करान्द अर वे तैं अपड़ असल उमैला मुल्क , अपड़ि रुमैलि दुन्यम लेकि जांद। यखम कथाकारन प्रकृति कु जन्न सैंदिष्ट अर सुन्दर चित्रण करयूं छ वू अफ्फम बेजोड़ छ अर कथाकारै कलमैं सक्या अर शब्द रचणै कला को भल्ली कै परचौ दियूँ च ।

फ्योंली अर ईं रौंतेली रुमैलि धर्ती तैं भेंटेंकि ग़ोबिन्दु तैं वीन्का असीम सौन्दर्य का दर्शन हूंदीन वे तैं भारी रौंस लगदी। अब फ्योंली वेतैं अपडा सबन्धों की सम्लौंण दिलोंद की या ही वा जग्गा छ जख हमरि पैली भेंट ह्वे छाई या ही च तेरि असल धर्ती अगर ज्यू तू वीं स्वार्थ अर काजोल पाणि सी धर्ती तैं छोड़िक यख सदानि कु आ सकदी त मैं प्रेम मा त्वे खुणी त्यार आण परै बाटों पर मंदरी सी पसर्ये जौलू।

' ले ईं दा बि मिन दौ त्वे फर छोड़ी यालि। धाकनाधारि आंदी छै इख बौड़ी कि ना '

वेक बाद वा ग़ोबिन्दु हत्थ छोड़ि दिन्द। ग़ोबिन्दु तैं लग्गी जन्न वू गगराट कै उंद लमडुंणु हो ।

महेशानन्द जीक औगार कथा शुरवात मा एक प्रेम कथा की सी बाण दिखेन्द, फिर या एक खुदेड कथा जन्न ऐथिर बढ़द अर आखिर मा या पलायन पीड़ा से उपजीं कथा सी महसूस ह्वे सकद पर अगर कथा तैं पूरी तरां पढ़णा बाद अगर हम अफ्फु तैं पुछला कि ग़ोबिन्दु को छ ? फ्योंली को छ ? अर आखिर ग़ोबिन्दु अर फ्योंली कु आपस मा रिश्ता नाता सम्बन्ध क्या च ? त हम सै तरां से कथा तैं समझी सक्दो कथा का मनोविज्ञान तैं समझी सक्दोंं ।

कथा कु मनोविज्ञान बतोन्द कि औगार प्रकृति अर मनखि का प्रेम सम्बन्धों अर जन्म जन्म को दगडै अंग्वाल बोटदि,धै लगौंन्दी कथा च ज्वा मनखि अर प्रकृति का बीच बढ़दि दूरी फर वेका असल कारण पर मुख्य चरित्र फ्योंली मार्फत अपणी बात मुखर ह्वेकी रखद।

कथा मनखि तैं केवल समस्या नि बतोन्दी वे तैं अद्धबाटा मा नि छोड़दि बल्कि अपड़ि ईं उमैंली अर रुमैलि धर्ती दगड़ि अपडा जलड़ों दगड़ि जुड़णौ,जीवन मा अग्वाडी बढणौ बाटु बि बतोन्द। कुल मिलैकि मनखि अर प्रकृति का रुमैलि दुन्या का उमैला सम्बन्धो की कथा च औगार। पहाड़ से अपडा जलड़ों बटि कट्याँ- छिटग्याँ मनखि तैं अपडा जलड़ों परैंं बौड़िक आणा वास्ता फ्योंलीक धै लगौन्द कथा छ औगार ।

सवाल यो च कथा कु मुख्य पात्र ग़ोबिन्दु को च अर या फ्योंली को च ? म्यार देखणन हर वू मनखि जु अपडा जलडौं बटि कटे ग्याई वू ग़ोबिन्दु छ । मि तै लगद मि ग़ोबिन्दु छौ मि ही छौ ग़ोबिन्दु जैका सुपिन्यो मा रोज आन्द या निर्दयी फ्योंली । अर फ्योंली बणिक अपड़ि औगार मैमा लगान्द यू पाड। अगर मनै बात लिखूं त औगार ग़ोबिन्दु अर फ्योंली कथा नि या म्यारा,आपका अर पाड का अजर अमर सम्बन्धो की एक भौत ही भावुक अर कलकली कथा च । कथा का बीच मा जब ग़ोबिन्दु फ्योंली का हत्थ छोड़ी आसमान बटि लमडद अर हर्बी हर्बी वींतैं धै लगान्द ...

फ्योंली ! फ्योंली !! फ्योंली !!!
मि आणू छौं मे थै जग्वाळ ।

त इन्न सी लगद कि एक सुन्दर कथा कु कतगा मार्मिक अन्त हुण वलु च सैद,एक घड़ी आँखियूँ मा असधरि सी आ जांदीन पर ऐथिर पैढिक कथाकारै बेजोड़ कल्पनाशीलता अर असल सल्लीपन्नो परचौ मिलद जब दस वर्षों एक प्रवासी नौनु विक्की जैन गढ़वाळि कब्बी नि बोली वू। स्वीणा मा खुट्टा छिबणाणु,मुम्यांणु अर छुड़ी गढ़वाळि मा बुल्द -

'फ्योंली ! फ्योंली मि आणु छौं । मैं थैं जग्वाळ'

वेका नींद बिचलणा कुछ देर बात कथा कु अन्त मा जब विक्की अर वेका परिजन गौं जाणै बात फाइनल करदीं त ईं सब्बि बात बि अफ्फु साफ ह्वे जांद कि ग़ोबिन्दु को छाई अर फ्योंली को छाई ? ग़ोबिन्दु फ्योंली तैं क्यो धै लगाणु छाई अर फ्योंलीन वेकु हत्थ अपड़ि रुमैलि उमैली धर्ती मा लिजैकि छट्ट क्यो छोड़ि अर क्या शर्त रखी ? आखिर फ्योंली चाणी क्या छाई?

कथा का आखिर मा "माजी ! येल सच्ची गढ़वाळि बोली क्या?" जन्न लैन लिखींक कथाकारन एक जोरदार अर झन्नाटेदार सवाल वू सब्यूँक् वास्ता छोड़ि जु अपडा जलडौं बटि छटगेकि अपड़ि भाषा संस्कृति से बि छटग्ये, बिंगलै ग्यीं ।

'दूर बटि टिरेने किलक्वार अर धधडाटल सब्यूक् कंदुड फोड़ी देनी '

यू अंतिम पंक्तियों का दगड़ि कथाकारन अपड़ि लेखन क्षमता अर गढ़वाळि भाषा की शब्द सम्पदा द्वी को एक दा हौरि दमदार परचौ देकि ईं सुन्दर गढ़वाळि कथा को समापन कैरिक औगार कथा संग्रै की हौरि कथाओं तैं पढ़णै सप्रेम साधिकार न्यूतों दे ।

औगार अर फ्योंली लोककथौ कथानक भले एकसार ही छन , द्वी कथाओं मा भले ही वी अनुभव वी परिस्थिति अर वी शिक्षा छन पर फिर्बी औगार कथा मा कथाकारै बेजोड़ लेखन कला अर शब्द चित्रण शैली देखणौ मिलद दगड़ा दगड़ि गढ़वाळि भाषै हर्चदि शब्द सम्पदा अर सक्या द्वी सैंदिष्ट देखणो मिल्दीन।

लोककथा फ्योंली का अपडा जलड़ों बटि कटेकि सुख सुविधाओं वळा राजसी भोग विलास अर दिखलौटी दुन्या मा जाणै अर फिर खुदे खुदेकि घुटे घुटेकि अन्तै एक मार्मिक कथा च जैमा फ्योंली मोरणा बाद अपड़ि आखिरी इच्छा से धार मा समाधि दिए जांद अर फिर सर्या घाटी मा वा पिंगला फूल बणिक फैली जांद जबकि श्री महेशानन्द जीक औगार कथा फ्योंली का प्रेम का कारण अपडा जलडौं बटि छटग्याँँ एक प्रवासी परिवारे घर बौड़णै सुखद कथा छ। एक सुखांत कथा छ त एक मार्मिक अर दुखान्त कथा छ।

लोककथा की फ्योंली का अनुभव अर सीख औगार कथै फ्योंली अनुभव प्रेम रूप मा ग़ोबिन्दु तैं (हमतैं ) दिंद साफ साफ दिखेन्द। बोले जा सकद कि लोककथै फ्योंली चरित्रे तुलना मा औगार कथै फ्योंली जादा सशक्त ,प्रखर अर अनुभवी च वा लोककथै फ्योंली सी मासूम नि लगदि।

कथाकर गढ़वाळि भाषा शब्द सम्पदा का जणगुरु छन्न ,कलमैं बेजोड़ सल्लि छन्न । युंन अपडा शब्द शिल्पन औगार कथौ द्वी मुख्य चरित्र फ्योंली अर ग़ोबिन्दु तैं दमदार ढंग से उकर्युंं च ,संवाद असरदार छन अर कम शब्दों मा गैरि चोट करण वळा छन्न ,दुर्लभ शब्दों आणा पखाणो को भौत सुन्दर इस्तमाल हुयूँ छ। औगार कथा मा ग़ोबिन्दु अर फ्योंली की धधम धै का बीच ,लुकाच्वारी का बीच प्रकृति को जन्न सैंदिष्ट चित्र महेशानन्द जिकु खैंचियूँ छ वो दुर्लभ छ।
पौड़ी का वरिष्ठ गढ़वाळि साहित्यकार अर उत्तराखण्ड ख़बरसार का संपादक , श्री विमल नेगी जीक उक्ति कि 'वो अबि रतब्योणी कु सी गैणु छ जु औंण वळा समैमा हमतैं दिना सूरजा दरसन जरूर करालो' महेशानन्द जीक पैलो कथा संग्रै कि पैली कथा 'औगार' पैढिक एकदम सै लगद अर या कथा वूंंकी कलमे सक्या को शंखनाद करद साफ देखे सुणै बि जा सकद।

   गढ़वाळि कथा साहित्य प्रेमियूं वास्ता औगार कथा अर ये कथा संग्रै कि हौरि कथा बि पढ़ण अर ससम्मान संग्रै कैरिक धरण लैक छन।

     एक भाषा साहित्य प्रेमी रूप मा औगार कथा व हौरि कथाओं तैं आपै जग्वाळ रैली।

कथा - औगार
कथा संग्रै - औगार
कथाकार - श्री महेशानन्द
प्रकाशक - ख़बरसार प्रकाशन,पौड़ी
प्रकाशन वर्ष - 2013
कथाकार सम्पर्क सूत्र : 99274 03469

  आदरणीय श्री महेशानन्द जी अर सब्बि गढ़भाषा साहित्य प्रेमियूं तैं सादर शुभकामना दगड़ि।

©गीतेश सिंह नेगी, सूरत (गुजरात )

No comments:

Post a Comment