मेरी प्रकाशित पुस्तकें :-


(1) एक लपाग ( गढ़वाली कविता-गीत संग्रह)- समय साक्ष्य, (2) गढ़वाळि भाषा अर साहित्य कि विकास जात्रा (गढ़वाली भाषा साहित्य का ऐतिहासिक क्रम )-संदर्भ एवं शोधपरक पुस्तक - विन्सर प्रकाशन, (3) लोक का बाना (गढ़वाली आलेख संग्रह )- समय साक्ष्य, (4) उदरोळ ( गढ़वाली कथा संग्रह )- उत्कर्ष प्रकाशन ,मेरठ


Showing posts with label गढ़वाली लेख / आखर समिति श्रीनगर गढ़वाल।. Show all posts
Showing posts with label गढ़वाली लेख / आखर समिति श्रीनगर गढ़वाल।. Show all posts

Tuesday, January 19, 2021

"गजब कु हुनर छ संगीता तिवाड़ी लखेड़ा जी मा " © संदीप रावत, श्रीनगर गढ़वाल।

  "गजब कु हुनर छ संगीता तिवाड़ी लखेड़ा जी मा "
              © संदीप रावत, श्रीनगर गढ़वाल
     हर मनखि मा कुछ न कुछ हुनर य कला जरूर होंद। बस ! वीं कला य हुनर तैं पछ्याणणा जरूरत होंद, फैलास देणा जरूरत होंद । य 'कला' कबि चीजों, अनुभवाें अर ' कै टैम ' तैं अमर बणे देंद। क्वी बि कला मन तैं खुश करद, आनंद देंद। ' कला ' भावनाओं कि अभिव्यक्ति होंद। 'कला ' कथगै तरों कि होंदन। ' दृश्य कला '(विसुअल आर्ट ) मा पेंटिंग, चित्रकारी को महत्वपूर्ण स्थान छ।
     इन्नी , देहरादून मा रौण वळी, भगवान गोपीनाथ जी कि धरती ' गोपेश्वर ' मा पढ़ीं - लिख्यीं अर एक कुशल गृहणी श्रीमती संगीता तिवाड़ी लखेड़ा जी मा बि गजब कु हुनर छ, गजब कि कला छ। जब वूंन मि तैं मेरु ऐन -सैन 'पेंसिल स्कैच' भेजि त मन खिलपत ह्वे ग्ये।

        सै बात त य बि छ कि  -  वो पेंटिंग बि गजबै बणाैंदन। वूं का माँ सरस्वती जी, भगवान बद्रीविशाल जी , राधा - कृष्ण जी, माँ लक्ष्मी जी, भोलेनाथ जी, श्री राम जी आदि कि भौतै बढ़िया पेंटिंग बणाई छन अर महापुरुषाें, कलाकारों का उम्दा पेंसिल स्कैच बणायां छन । 

   यां का अलावा वूं कि अपणि कलम -कूंचि दार्शनिक पक्षों पर बि चलाईं छ। जन कि - वूं कि 'आँखि ' पर बणाईं पेंटिंग द्यखण लैक छ। ब्वलदन बल - 'वु आँखि आँखि नि छन जो सच तैं नि देखि सक्दि, सच्चै दर्शन नि करोंदिंन।' हमारा सुख- दुख, खुशी सब्या कुछ बतै दिंदन आँखि। 
   वूं कि य पेंटिंग भौत कुछ बिंगाणी छ । 
' साकेत गर्ग ' जी कु बि लेख्युं च -
"सुनो प्यारी नैना
हमेशा खुश ही रहना।
दबना न किसी गलत से,
हमेशा सच को सच ही कहना। "
स्कूल टैम बटि वूं तैं चित्रकारी अर पेंटिंग कु शौक छाै, पर वै टैम परैं प्रचार - प्रसार नि करी छौ अर ना ही वु अपणी ईं कला तैं भैर लै सकनि। वूं कि य कला काॅपी का भितर ही रै गे छै अर फिर दबीं ही रैगे।

    बड़ी बात त य बि छ कि लॉक डाउन मा अब वूंन अपणा ये हुनर तैं हौरि निखारि अर फैलास देणा छन। 

       मेरी ईं स्कैच का वास्ता, मि तैं य 'समूण' देणा वास्ता आपाै भौत -भौत आभार अर धन्यवाद आदरणीय श्रीमती संगीता तिवाड़ी लखेड़ा जी। माँ सरस्वती कि कृपा आप परैं सदानि बणी रौवु अर आपका ये हुनर तैं, ईं कला तैं हौरि फैलास (विस्तार) मिलाे, ईं शुभकामना का दगड़ा ---
                                           संदीप रावत
                               न्यू डांग, श्रीनगर गढ़वाल।