" द्वी दिन बि अनमोल "
ह्वायि नि अज्यूं अबेर अब बि आँखा खोल ।
अपणि पीड़ा अर हूनर तैंईं पर्वाण बणौ
जीत होलि तेरी जरूर अफुतैं कम ना तोल ।
तिमला का तिमला खत्येंदा नांगू को नांगू द्यिख्येंद
भेद अपणि जिकुड़ी को जै-कै मा सुद्दि ना खोल ।
काचा झाड्यों मा ना चढ़ी ऐंच सुद्दि ना उड़ी
तोली-मोली फिर तू बोली सुद्दि खती ना बोल ।
कुछ नि होण पर्बि त्वेमा बच्यूं रै जालु भौत
शून्य बटि फिर शुरू कन्न दिन बौड़ी आला भोळ ।
ठण्डो रौण हीरा जन , झट्ट तची ना काँच सी
उलखणी छ्वींयूं बटी तू कैर मुण्ड निखोळ ।
ठण्डो रौण हीरा जन , झट्ट तची ना काँच सी
ReplyDeleteउलखणी छ्वींयूं बटी तू कैर मुण्ड निखोळ
सुंदर ग़ज़ल....अगर कठिन शब्दोंs अर्थ भी ग़ज़ला बाद होला त बहुत आभार रेलु... काफी कुछ सीखणु मिललु..
हार्दिक धन्यवाद 🙏
Deleteहाँ जी जरूर