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Saturday, November 28, 2020

गढ़वाली रचना - द्वी दिन बि अनमोल ©संदीप रावत, न्यू डांग, श्रीनगर गढ़वाल।

             " द्वी  दिन बि अनमोल "

 जिंदगी का द्वी दिन बि  बड़ा अनमोल
ह्वायि नि अज्यूं अबेर अब बि आँखा खोल ।


            अपणि पीड़ा अर हूनर तैंईं पर्वाण बणौ 
             जीत  होलि तेरी जरूर अफुतैं कम ना तोल ।


तिमला का तिमला खत्येंदा नांगू को नांगू द्यिख्येंद
भेद अपणि जिकुड़ी को  जै-कै मा सुद्दि ना खोल ।


                काचा झाड्यों मा ना चढ़ी ऐंच सुद्दि ना उड़ी 
                तोली-मोली फिर तू बोली सुद्दि खती ना बोल ।


 कुछ  नि होण  पर्बि त्वेमा  बच्यूं रै जालु भौत 
 शून्य बटि फिर शुरू कन्न दिन बौड़ी आला भोळ ।


                ठण्डो रौण हीरा जन , झट्ट तची ना  काँच सी 
                 उलखणी छ्वींयूं बटी तू कैर  मुण्ड निखोळ  ।

2 comments:

  1. ठण्डो रौण हीरा जन , झट्ट तची ना काँच सी
    उलखणी छ्वींयूं बटी तू कैर मुण्ड निखोळ

    सुंदर ग़ज़ल....अगर कठिन शब्दोंs अर्थ भी ग़ज़ला बाद होला त बहुत आभार रेलु... काफी कुछ सीखणु मिललु..

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    1. हार्दिक धन्यवाद 🙏
      हाँ जी जरूर

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