" गढ़वाली लोक साहित्य के पहले संग्रहकर्ता एवं अनुवादक थे मूर्धन्य लोक साहित्यकार डॉ. गोविन्द चातक जी " ---- संदीप रावत
मूर्धन्य लोक साहित्यकार डाॅ. गोविंद चातक जी का जन्म 19 दिसम्बर, 1933 को ग्राम-सरकासैंणी (निकट - मोलधार ) पट्टी- लोस्तु -बडियारगढ़ , टिहरी गढ़वाल में हुआ था। इनके पिताजी स्व. धाम सिंह कंडारी जी स्कूल में अध्यापक थे एवं माता जी स्व. चंद्रा देवी जी ग्रहणी थीं। आछरीखुंट से दर्जा 4 पास करने के बाद वे पिता के साथ मसूरी आ गये। बचपन से ही वे लिखने-पढ़ने में बहुत अच्छे थे। 4-5 दिन पैदल मार्ग से वे मसूरी आये थे और दर्जा 6 में उनका एडमिशन हुआ और घनानंद इंटर कालेज, मसूरी से इंटरमीडिएट किया। घनानंद इंटर कालेज, मसूरी में डॉ.चातक जी को उनके शिक्षक,प्रसिद्ध लेखक शंभु प्रसाद बहुगुणा जी ने उनकी साहित्यिक अभिरुचि को आगे बढ़ाने में बहुत योगदान दिया।
डॉ.गोविन्द सिंह कंडारी जी ने अपना नाम "गोविन्द चातक " रखा । ‘चातक पक्षी’ की तरह उनमें साहित्य सजृन की ‘प्यास’ सदैव रही। किशोरावस्था से ही उनकी कविताएं व कहानी विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छपने लगीं थी। घनानंद इंटर कालेज, मसूरी से इंटरमीडिएट करने के उपरांत स्नातक की पढ़ाई इलाहबाद विश्वविद्यालय से की। इलाहबाद में उनका संपर्क मोहन उप्रेती जी, बृजेन्द्रलाल शाह, रमा प्रसाद घील्डीयाल 'पहाड़ी ', भजन सिंह 'सिंह ', केशव धुलिया, इलाचंद्र जोशी आदि प्रतिभाओं से हुआ।
डाॅ. गोविन्द चातक जी ने MA आगरा विश्वविद्यालय से किया। फिर " गढ़वाली की उपबोलियां व उसके लोकगीत " विषय पर आगरा विश्वविद्यालय से ही Ph.D की और लोक साहित्य में D.Lit.की उपाधि प्राप्त की। दिल्ली में All India Radio (Drama Section ) में
नौकरी करने के पश्चात् "Rajdhani College, Dehli " में हिंदी के प्राध्यापक बने और रीड़र के पद से सेवानिवृत्त हुए। 9 जून, 2007 को उनका देहान्त हुआ ।
डाॅ. गोविन्द चातक जी की 25 किताबें प्रकाशित हुईं । वर्ष 1955
डाॅ. गोविन्द चातक जी ने गाँव -गाँव जाकर लोक साहित्य का संग्रह किया। असाधारण प्रतिभा के बावजूद वे सामान्य रूप से और बिल्कुल साधारण रूप से आम लोगों /गाँव के लोगों से मिलते थे, उनके बीच रहते थे। उन्होंने लोकसाहित्य पर माइक्रो लेवल पर सोचा और काम किया।
डॉ. गोविन्द चातक जी दिल्ली जैसी महानगरीय जिन्दगी को छोड़कर वापस गढ़वाल में ही रहना चाहते थे। गढ़वाल विश्वविद्यालय के शुरुआती समय में वे "हिंदी विभाग" में आना चाहते थे, परन्तु ऐसा हो नहीं पाया। दिल्ली विश्वविद्यालय से अवकाशप्राप्त होने के बाद डॉ. चातक जी ने श्रीकोट, श्रीनगर (गढ़वाल) में निवास हेतु 'देवधाम कुटी' बनाई। परन्तु उन्हें पुनः उन्हें दिल्ली में ही रहना पड़ा।
गढ़वाली लोक साहित्य के पहिले संग्रहकर्ता एवं अनुवादक लोक साहित्य अर संस्कृति के गम्भीर अध्येता -शोधार्थी , हिंदी के सुप्रसिद्ध नाट्यालोचक , नाटककार स्व. डॉ गोविन्द चातक जी को उनकी जयन्ती के सुअवसर पर सादर श्रद्धा सुमन अर्पित। 🙏🙏🙏
संदीप रावत
अध्यक्ष - आखर समिति
श्रीनगर गढ़वाल।
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