मेरी प्रकाशित पुस्तकें :-


(1) एक लपाग ( गढ़वाली कविता-गीत संग्रह)- समय साक्ष्य, (2) गढ़वाळि भाषा अर साहित्य कि विकास जात्रा (गढ़वाली भाषा साहित्य का ऐतिहासिक क्रम )-संदर्भ एवं शोधपरक पुस्तक - विन्सर प्रकाशन, (3) लोक का बाना (गढ़वाली आलेख संग्रह )- समय साक्ष्य, (4) उदरोळ ( गढ़वाली कथा संग्रह )- उत्कर्ष प्रकाशन ,मेरठ


Wednesday, December 16, 2020

गढ़वाली साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर एवं शिक्षक महेशानन्द जी (पौड़ी ) द्वारा " गढ़वाळि भाषा अर साहित्य कि विकास जात्रा " की समीक्षा..

  "गढ़वाळि भाषा अर साहित्य कि विकास जात्रा " इत्यासकार- संदीप रावत
(क्या च यीं किताबा भित्र ? )
                      समीक्षक - महेशानन्द ( पौड़ी )
     संदीप रावत जी कु जलम ह्वा 30 जून 1972 म्. गौं अलखेतू (कसाणी) पोखड़ा, पौड़ी गढ़वाल. आपन एम0एस0सी0 रसायन विज्ञान बटि कैरि. बी0एड0 कऽ दग्ड़ा आप संगीत प्रभाकर बि छयाँ. रसायन विग्याना जणगूर संदीप रावत जी गढ्वळि साहित्या तोक(क्षेत्र) मा एक गीतकार, कबितेरा भौ मा जण्य-पछ्यण्ये जंदन. वूंकि पैलि किताब च- ‘‘एक लपाग’’ (गीत कविता संग्रै), दुस्रि किताब च- ‘‘गढ़वाळि भाषा अर साहित्य कि विकास जात्रा’’ (एक ऐतिहासिक समालोचनात्मक पुस्तिका), तिस्रि किताब- ‘‘लोक का बाना’’ (निबंध संग्रै) चौथि पोथि च- ‘‘उदरोळ’’ (कहानी संग्रै) अर पाँचवीं किताब- ‘‘तु हिटदि जा’’ (गीत संग्रै)
   संदीप जी कु सांसब्वळु (साहसकि) काम च- ‘‘गढ़वाळि भाषा अर वींकि साहित्ये विकास जात्रौ चौबुट-चाबटी इकबट कन.‘‘ य भारि असौंगि धाण छै. यीं किताबै जतगा बि पुलबैं कराँ हम, कमती च. इत्यास लिखण क्वीं सौंगि धांण नी. इत्यास लिखण वळु लिख्वार एक न्यायाधीस हूँद. इत्यासकार जु धांणू थैं मड़कै-मुड़कैकि नि ल्हाउन, जु सकळु च वे सणि ऐन-सैन ल्येखि द्याउन त ऐथरै छ्वाळ्यू खुण वु एक सैन्वर्यू सि बाठु ह्वे जांद. 
     याँकै लब्ध भीष्म कुकरेती जी संदीप जी कि पुलबैं मा यीं किताबम् लिखणा छन- ‘‘संदीप पैला इना साहित्यकार छन जौंन एक ही पोथि मा समग्र रूप से गढ़वाळि भासा मा सब्बि बिधौं जन कि- भाषा विज्ञान, पद्य/काब्य, कथा, व्यंग चित्र, व्यंग, चिट्ठी-पत्री, समालोचना जन बिधों को इतिहास इकबटोळ कार, समालोचना ल्याख. यानि कि संदीप आधिकारिक रूप से पहला साहित्यकार छन जौंन सब्बि बिधौं को ‘‘क्रिटिकल हिस्ट्री ऑफ गढ़वाली’’ की पोथि ‘‘गढ़वाळि भासा अर साहित्य कि विकास जात्रा’’ गढ़वाळि मा छाप.’’ भीष्म कुकरेती जीन् संदीपै गढ़वळि साहित्ये अन्वार डेविड डाइसेस, डॉ0 फ्रेडिरिक बियालो, फ्रेडिरिक ओटो व जार्ज कॉक्स, जार्ज सेंट्सबरी जना बिज्जाम बिद्यसि लिख्वारू फर सुबरा (सुशोभित की).
     जक्ख मनिख रांदु ह्वलु वुक्ख भासा बि जलम ल्हालि. यु परकिरत्यु नियम च. खुरगुदन्यू (खोज का) एक सवाल यौ च कि डौंरौ (वाद्य यंत्र) जलम् कक्ख ह्वे ह्वलु. डौंर दग्ड़ि थकुलि बजाणौ रिवाज कब बटि ह्वा; डौंर दग्ड़ि थकुलि बजये जांद. थकुलि कांसी हूंद. कांसी थकुलि थैं लखड़न बजा त् वाँकि छाळि बाच नि आंद. कांसी थकुलि बजाणु जड़ौ (बारह सिंगा) कु सिंग चयेंद. जड़ौ कऽ सिंगन जब कांसी थकुलि बजए जांद तब वऽ छणकदि च. ह्वे सकद कि डौंर-थकुलि उत्तराखंडि आदिवास्यूँ कु बाद्य यंत्र रै हो. जौं आदिवास्यूँ खुण हम नाग, जग्स (यक्ष) कोल, भील, किरात, तंगण, कुलिंद, पुलिंद बोलि दिंदाँ. बुनौ न्यूडु यौ च कि जु जागर, धुंयेळ, मांगळ गीत, थड़्य गीत जौं मा चौंफळा, तांदि, चांचरि, झैमैको, दखै-सौं अर छोपदि गीत छन. झुमैला अर द्यूड़ा जु कि डांडौं-सार्यूँ लगए जंदन; वूंकि रंचना तै जुग बटि हूंद आ जु कि अणलिख्याँ साहित्य मा छन. आणा, मैणा, पखणा अर भ्वींणा बि तै जुग बटि बण्द ऐनि जौं थैं हम मुखागर अंठम् धैरी आणा छाँ. रौखळि, अड़दासा रंचनाकार कु रै ह्वला ?
  संदीप रावत यीं कितबी पैलि वाड़ि कऽ दुस्रा अध्याय (गढ़वाळि भाषा) मा लिखणा छन- ‘‘ब्वले जै सकेंद कि गढ़वाळि भाषा एक अलग भाषा छै पैली बटि जैंको असतित्व साख्यूँ पैली बटि छ......जब राजा कनकपाल ऐनि यख या राजा अजयपालन् पैली देवलगढ़ अर फिर श्रीनगर राजधानी बणै छै त् वो अफू दगड़ि गढ़वाळि भाषा थोड़ा ल्है होला ? गढ़वाळि भाषा त् पैली बटि रै होलि यख, बस ईं भाषौ रूप कन रै होळू या स्वचणै बात छ अर सवाल बि छ.’’ 
     हम थैं गढ्वळि भासै वऽ तणकुलि पखण पोड़लि ज्व भौत गैरि खाड पौंछि ग्या. खतऽखति दौंपुड़ा (मैदानी भागों के) मनिख इक्ख आंद ग्येनि अर गढ्वळि भासै अन्वार सौंटळेण (बदलने लगी) बैठि ग्या. एक बात संदीप रावत ठिक लिखणा छन कि गढ्वळि अर कुमौनि पैलि एक्कि भासा रै ह्वलि. राजों कऽ जुग मा जैकु खुंख्रु तैकु लग्वठ्या वळा किस्सा रैनि. इलै यि भासा दुबंल्या ह्वे ग्येनि. 
     यीं कितबी पवांणम् गढ्वळि भासा जणगूर शिवराज सिंह ‘निःसंग' जी लिखणा छन कि- ‘‘गढ़वाळि साहित्ये रचना की शुर्वात कब अर कनक्वे ह्वे येको ठीक-ठीक पता नि चली सकद, किलैकि गढ़वाळ मा 9वीं, 10वीं, 14वीं, 15वीं अर 18वीं सदी मा विनासकारी भ्वींचळौं का कारण जो तहस-नहस ह्वे वामा वे काल को साहित्य बि धरती की गोद मा समै गै.’’ तौबि हम्मा जु मुखागर छौ वु, अज्यूं बि ज्यूँद च. तै जुग मा एक हूँदि छै कथगुलि. ज्व लुक्खू सरेल बिळमाणु कथ्था सुणांदि छै. वूँ कथगुल्यूँन झणि कतगा कथ्था गैंठ्येनि. अनपढ़ छा वु. वून एक-से-एक रंगतदार कथ्था मिसै द्येनि. अमणि हम वूँ कथ्थों खुण लोककथा बुलदाँ. वूँकि रंची कथ्था हम मा बचीं रै ग्येनि, वूँ साहित्यकार्वा नौ कु बार-भेद-पताळ हर्चि.
शिवराज सिंह निःसंग जी लिखणा छन कि- गढ़वाळि साहित्य का इतिहास मा गढ़वाळि भासा अर साहित्य कि छाळ-छांट कन्न वळी पोथ्यूं मा अवोध बंधु बहुगुणा कि ‘‘गाड म्यटेकि गंगा’’ अर शैलवाणी, डॉ0 हरिदत्त भट्ट शैलेश कि हिन्दी मा लेखीं पोथि ‘‘गढ़वाळि भाषा और उसका साहित्य’’ प्रमुख छन. अर डॉ0 जगदम्बा कोटनाला कि गढ़वाळि पद्य पर ‘‘गढ़वाळि काव्य का उद्भव, विकास और वैशिष्ट्य’’ हिन्दी मा लेखीं शोधपरख पोथि छपेनी. अब यीं कड़ी मा संदीप रावत कि या गढ़वाळि साहित्य मा अपणी अलग तरौं कि विवेच्य अर ऐतिहासिक पोथि- ‘‘गढ़वाळि भाषा अर साहित्य कि विकास जात्रा’’ बि जुड़ी गे.’’
‘‘गढ़वाळि भाषा अर साहित्य कि विकास जात्रा’’ गढ़वाळि साहित्य मा एक मील स्तम्भ च इन भीष्म कुकरेती जी लिखणा छन. खोज कन वळा नया लिख्वारू खुण य किताब अछीकि एक सौंगु सि बाठु जन च. यीं किताबम् नया पुरणा सौब लिख्वारा बारा मा लिख्यूँ च. गढ्वळिम् एक भ्वीणु (पहेली) इन च- जैंति हे, जैंती, मि मैला मुलुक लागु, म्यारा नौनौं बि सैंति. याँकु मतलब च कि हे धरती, हे धरती, मि अगने बढणू छौं, म्यारा फल/सब्जी थैं सैंतणी रै. यीं पहेल्यू उत्तर च- लगुलु. साहित्यकारू थैं बि यीं पहेली से आणु (शिक्षा) ल्हीण चयेंद कि हम साहित्य थैं लेकि ऐथर त जाणा छाँ पण जु पैथर छुटणू च, वे बि सैंकि रखां. इन नि हो कि हम धुद्याट कै अटगणा राँ अर पैथर बुसकंत फैलेणि रौ. इलै जु साहित्य कु इत्यास लिखणा छन वूँकि पीठिम् साबास्या हत एक न बिछक हूण चयेणा छन. ये कारिज मा संदीप रावतै भौत बड़ि सहेल मने जालि.
     यीं किताबौ हैलु-मैलु (बनाउ-श्रृंगार) संदीप रावतौ अनमनि भाँत्यू कर्यूँ च. पैलि वाड़ि बटि दिखेंद- ‘‘अग्याळ’’. अग्याळम् गढ्वळि भासा बारामा लिख्यूँ च कि य भासा कन च क्या च, यींकि लिपि क्या च, य भासा मनिखा ज्यू मा उबडदा उमाळू थैं बिंगाणै कतगा सक्य रखद. भौत निसाबै बात बुलीं च संदीप जी कि हिन्दि से पुरणु छ गढ़वळि भासौ इत्यास. पैलि गढ्वळ्यू खुण क्य बुलदा छा? कनकै यीं भासौ नौ गढ्वळि पोड़ि ? भासा क्या च अर बोलि क्या च ? क्य यीं भासौ जलम् संसकिरित बटि ह्वे ह्वलु ?एक सरल सि सवाल कैकऽ बि घटपिंडा मा उबडि सकद. जैकु जबाब संदीपौ कुछ इन दियूँ च कि कै बि बोलि-भासा कै हैंकि भासा से पैदा नि हूँद, हौरि भासौं कु वीं पर प्रभाव प्वड़द. संदीप यीं वाड़्या तिस्रा अध्याय- ‘‘गढ़वाळि भासा कि खासियत अर प्रकृति’’ मा लिखणा छन कि विशेष भासा छ गढ़वाळि. इनि अंगळति भासै लिपि क्या च ? क्य कै भासौ खुण क्वी नै लिपि बणाणै जर्वत ह्वे सकद ? फी भासै कुछ खास्यत हुंदन. गढ्वळि भासै क्य खास्यत ह्वलि ? यीं भासा दगड़्य कु-कु ह्वला ? गढ्वळि भासौ सब्द भकार कतगा सगंढ (विशाल) ह्वलु ? कौं-कौं भासौं कऽ सब्द यीं भासा मा रळ्याँ छन ? यूँ सवाल्वा जबाब बंचदरा ये अध्याय मा बांचि सकदन. यीं वाड़्यू निमड़ौंदु अध्याय च- ‘‘ज्यूंदा दस्तावेज छन आणा-पखाणा.’’ मि यूँ आणा-पखणों थैं गढ्वळि भासा ग्हैंणा मनदु. कुछ पखणौं बटि सड़्याण बि आंद. हम थैं वूं थैं फुंड चुटै दीण चयेंद. ऐतिहासिक पखणा खैड़ै सि कड़ाक जन छन. यि पखणा चर-चर-पंच-पंच सब्दूं से मिली बण्याँ छन पण सगळ्यू इत्यास यूँ सब्दू मा कीटि-खूमी भुर्यूँ च. 
गढ़वाळि भासा अर साहित्य की विकास जात्रै दुस्रि वाड़ि बटि चुळ-चुळ दिखेंद- गढ्वळि भासौ ब्याकरण. कौं-कौं लिख्वारुन यीं भासा ब्याकरण फर धाण सरा ? यीं भासा ब्याकरणौ कनु सलपट च ? क्य यीं भासौ ब्याकरण हिन्दि भासा ब्याकरण जन च ? गढ्वळि भासा ब्याकरणिक तत्व कु-कु छन ? जना सवालू जबाब जण्णू खुणै यीं वाड़ि बटि दिखण पोड़लु. 
   तिस्रि वाड़ि नी, भरि-भारी मोरि च. यीं मोरि बटि गढ्वळि भासै चौचक दुफ्रा अपड़ा सेळा घामै निवति सि दींद चितएंद. गढ्वळि भासा साहित्यौ समोदर को च ? गढ्वळि भासौ पैलु कालखंड कु छौ ? खंदलेख, घांडलेख, तामपतर, दानपतर, राजौं कऽ फरमान यि सौब यीं भासै कतगा छाँट-निराळ कर्दन ? यीं भासौ दुस्रु, तिस्रु, चौथु, पाँचौं, छटौं, सातौं कालखंड कु छौ ? यूँ कालखंडौं कऽ लिख्वार कु-कु छा, जौंन यीं भासै पुट्गि भुन्नै ताणि मरिनि ? वून कौं-कौं बिधौं मा अपड़ु सल-सगोर दिखा ? वूँ कितब्यूँ कऽ क्य-क्य नौ छन ? सन् 2000 बटि अजि तकै कु-कु किताब छपेनि ? सब्यूँ कु लेखा-जोखा यीं किताबम् सैंक्यूँ च. यांका दगड़ा पतर-पतरिकौं कि टेकणू कु बि यीं भासा थैं जंके कि रखणम् ताण मरीं रै. वु कु पतरिका छै ? 
यीं पोथी चौथि अर निमड़ौंद वाड़ि च- ‘‘गढ़वाळि साहित्ये विधा अर विशेषता’’ याँ बांची हम बींगि सकदाँ कि गढ्वळि भासा मा कतगा अनुवाद, कतगा कविता संग्रै, कतगा कहानि संग्रै, कतगा व्यंग्य, कतगा उपन्यास, कतगा लोककथा अजि तकै छपे ह्वलि, वाँ कऽ बारा मा यीं किताबम् सुबद्यान कै लिख्यूँ च. गढ्वळि पिक्चरू बगत नि बिस्रे सकेंद. जबरि जग्वाळ पिक्चर आ, सरेलम् भरि छपछपि पोडि छै. भासै उन्यत्यू खुण यूं धांणू कु हूण जरूरी च.
    एक भारि गरू सवाल यीं भासौ मानकिकरणौ च. जै खुण हम पक्यूँ पिसुड़ु बुलां त् अंगळ्ति बात नि हो. ये पक्याँ पिसुड़ा थैं जरा ठसोळा, इनु बिबलाट मचलू कि भासै नन्नि मोरि जालि. भुला संदीप रावतन् सैज से अपड़ि धाण सरा. गूदन धाण सरा त् धांण अर्खत नि जांद. वून मानकीकरण कऽ बारा मा जु-जु जन बखद ग्या, तन-तन ऐन-सैन लेखी धैर द्या. संदीप भुला मानकिकरणा फैमळा मा नि पुड़िनि. एक भला समालोचक कऽ गुण यामि दिखे जंदन. 
     कुम्मुर सि करकण वळि बात यीं किताबै या च कि म्यारा सुण-दिखण्म इन आ कि अमेरिकौ एक मनिख जै कु नौ स्टीफन फ्यौल च अर वेन अपड़ु नौ छूड़ू गढ्वळिम् लपतै कि फ्यौंलि दास धैरि द्या. वु छूड़ि गढ्वळि बुल्द. फ्यौंलि दासौ गुरु च सोहन लाल. सगोरु लाल जी खाळ्यूँ डांडा, पसुंडखाळ, पौडिम् रांदा छा. यूँकि जागर नजिबाबाद रेडियो स्टेसन बटि लौंकिद छै. कनि गळि अर कनि भासा! जु नास्तिक बि रै ह्वलु वे फर बि वु दिब्ता गाडि दींदा छा. संतोष खेतवाल जीन् बि गढ्वळि गित्तू गैकि गढ्वळि भासै पुट्गि भोरि. जगदीश बगरोळो नौ कु बिस्रि सकद ? घनानंद खिगताट रस कऽ जाजलि मनिख छन. किसना बगोट एक इना टौकैकार (व्यंग्यकार) छन जु मनिख कऽ जिकुड़ा भित्र खिबळाट कै दिंदन. भौत नौ छन जु एक दाँ बिस्रे ग्येनि त् फिर बिस्रयाँयि रै जाला. यूँ थैं बि हम जगा दींद जाँ. 
     संदीप रावत कु यीं किताब लिखण्म्, छपाण्म् कतगा सरेल पित्ये ह्वलु, कतगा बेळि खपि ह्वलि, इन मि भनकै जण्दु. साहित्य लिखण क्वी सौंगि-सराक नी. भौत खैरि खाण पुड़दन. मि संदीपै उन्यती भलि कंगस्य कनू छौं कि वु इन्नि गढ्वळि भासै स्यव्वा कना रावुन। 

4 comments:

  1. वाह!भौत हि लाजबाब अर विस्तृत समीक्षा।
    किताबा लिख्वार अर समीक्षक द्वियूँ तैं सादर नमन।

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  2. बहुत सुंदर सुंदर अर विस्तृत समीक्षा ...आपका गंभीर प्रयास हेतु बधाई और शुभकामनाएं
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