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Sunday, December 6, 2020

"साहित्य अकादमी " पुरस्कार से सम्मानित हिन्दी -गढ़वाळि का सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री प्रेम लाल भट्ट जी बि भग्यान ह्वे ग्येनि " - संदीप रावत, न्यू डांग, श्रीनगर गढ़वाल

   "साहित्य अकादमी " पुरस्कार से सम्मानित हिन्दी -गढ़वाळि का सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री प्रेम लाल भट्ट जी बि भग्यान ह्वे ग्येनि "

प्रेम लाल भट्ट ( जन्म -08 मई 1931, सेमन, देवप्रयाग मा। भग्यान - 06 दिसम्बर 2020, दिल्ली मा )

हिन्दी - गढ़वाळि का सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री प्रेम लाल भट्ट जी को बि ब्याळी 06 दिसम्बर 2020 खुणी दिल्ली मा स्वर्गवास ह्वे ग्ये।
   गढ़वाळि साहित्यकारों मा वूं को भौत बड़ो स्थान अर मान छ । वो उच्चकोटि का रचनाकार छायि । वूंन कम लेखीक बि गढ़वाळि भाषा मा अपणो अमूल्य योगदान दे । वूंन गढ़वाळि निबंध साहित्य अर गढ़वाळि काव्य तैं नयो ब्योंत दे। वूंन गढ़वाळि साहित्य तैं " उमाळ " ( सन 1979 मा प्रकाशित गढ़वाळि काव्य संग्रै ), "भागै लकीर "( सन 1987 मा प्रकाशित गढ़वाळि खण्ड काव्य ) अर " उत्तरायण "( सन 1987 मा प्रकाशित गढ़वाळि महाकाव्य ) जन अनमोल कृति गढ़वाळि साहित्य तैं देनि।
सन 2008 मा प्रेम लाल भट्ट जी स्व. सुदामा प्रसाद प्रेमी जी दगड़ा गढ़वाळि साहित्या वास्ता " साहित्य अकादमी " पुरस्कार से सम्मानित ह्वे छा।

वूं कि "बिडंबना" रचना भौत प्रसिद्ध च, ज्वा गढ़वाळि कि उत्कृष्ट कवितों मा शामिल च--

" कैन बोलि या रिसी मुन्यूं की
द्यौ अर द्यब्तौं की धरती च
तुम्हीं बता क्या रूखा माटा मा फसल प्यार की उग सकणी च ?
जख भुम्याळ भूखा मौन्ना छन
मेघ तिस्वाळा ही घुमणा छन
रक्षपाल रक्षा का बाना
त्राहि त्राहि ही सब कन्ना छन
वख बल कबि द्यवता रहेंदा छा
बात क्या या तुम तैं खपणी च ?
तुम्हीं बता क्या रूखा माटा मा फसल प्यार की उग सकणी च ?
देव बाला छन भूखा पेट जू
घास का फंची सान्नी सन्नी छन
सोळ हाथ का पाठगौं से जू
ज्वान्नि कि ल्हास ल्हसोण्णी छन
एक मील से रिसि कन्या क्वी
डिब्लु पाणि कू ल्है सकणी च ?
तुम्हीं बता क्या रूखा माटा मा फसल प्यार की उग सकणी च ?"
भगवान वूं कि आत्मा तैं शांति दियां, अपणा श्री चरणों मा जगा दियां अर वूंकि सैर्या कुटुमदरि तैं ये दुख तैं सैणै सक्या दिंया। महान साहित्यकार " स्व.श्री प्रेमलाल भट्ट " जी तैं विनम्र श्रद्धांजलि। ॐ शान्ति 
                                  संदीप रावत 
                            न्यू डांग ,श्रीनगर गढ़वाल। 
                                    
                           स्व.श्री प्रेमलाल भट्ट जी 

                                   

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