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Tuesday, July 23, 2019

गढ़वाली रचना - जिन्दगी ( संदीप रावत ,न्यू डांग श्रीनगर गढ़वाल)

                 " जिन्दगी "

भैर -भितर आन्दा-जान्दा
सांस छ जिन्दगी
चार दु:ख चार सुख
संग्ति आस जिन्दगी
मुठ्ठयों पर थूक लगैकि
अटगदी रान्द जिन्दगी
झूठी गाणि स्याण्यों मा
भटगदी रान्द जिन्दगी
खैंची ताणि लगीं रान्द
हरदि नि छ जिन्दगी
माटी बणी माटि मा हि
मिली जान्द जिन्दगी  |
      © संदीप रावत ,न्यू डांग ,श्रीनगर गढ़वाल |
           ( 'एक लपाग ' पुस्तक से )

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