मेरी प्रकाशित पुस्तकें :-


(1) एक लपाग ( गढ़वाली कविता-गीत संग्रह)- समय साक्ष्य, (2) गढ़वाळि भाषा अर साहित्य कि विकास जात्रा (गढ़वाली भाषा साहित्य का ऐतिहासिक क्रम )-संदर्भ एवं शोधपरक पुस्तक - विन्सर प्रकाशन, (3) लोक का बाना (गढ़वाली आलेख संग्रह )- समय साक्ष्य, (4) उदरोळ ( गढ़वाली कथा संग्रह )- उत्कर्ष प्रकाशन ,मेरठ


Tuesday, October 11, 2022

''मेरा जीवन से जुड्यां कुछ किस्सा, मेरा जीवन का हिस्सा " -संदीप रावत ,न्यू डांग , श्रीनगर गढ़वाल ।

''मेरा जीवन से जुड्यां कुछ किस्सा, मेरा जीवन का हिस्सा "
        -संदीप रावत ,न्यू डांग , श्रीनगर गढ़वाल ।
      पौड़ी जिला का इंटर कॉलेज वेदीखाल (वीरोंखाल ब्लॉक )मा मेरा पिताजी श्री महावीर सिंह रावत एक शिक्षक छायि अर मेरी दर्जा एक बटि हाई स्कूल तकै पढ़ै वखि ह्वे छै। हम हफ्ता - द्वी हफ्ता मा अपणा गौं अलखेतू- कसाणी (पोखड़ा ब्लॉक )आणा -जाणा रौंदा छायि किलैकि माँजि पैलि वखि रौंदि छै। हमारा चौका तिरवाल दळम्या डाळाे छौ। ब्वेन बतै छौ कि वा डाळी मेरा दादा जीन लगै छै। मेरा अपणा दादा जी नि देख्यां छा, पण वे दळम्या डाळा का रूप मा मि वूं तैं देख्यदु छौ।। जब बि मि छ्वटु छौ अर घार जांदु छौ त वे डाळा नीस बैठी पढ़दु बि छौ अर गीत बि लगांदु अर मिसांदु छौ। मेरु जलम अपणा ही गौं मा ह्वे छौ त मि तैं याद छ कि - वे दळम्या डाळा नीस ब्वे बि बैठदि छै अर मि अपणी ब्वे कि खुचली मा बैठदु छौ, उंगदु छौ। वे ही डाळा सामणी मि कथगै बार गोली -गुच्छी खेल्दु छौ अर ब्याखुनि दां अपणा दगड़्याें दगड़ा गप्प -सप्प लगांदु छौ। वु दळम्या डाळाे बि एक तरों से मेरु दगड़्या छौ। वे दगड़ि कतगै बार मि यखुली मा बच्यांदु बि छौ।
मेरा पिताजी को ट्रांसफर देवप्रयाग ह्वे ग्ये त दर्जा दस कन्नौ बाद जब हम सब्या लोग बि र यानि देवप्रयाग ऐग्यो। जन कि यख होंद ही छ, चाहे मजबूरी मा ही होंद, पर - 'पोथीला बि फुर्र उड़ीनी अपणा घोलु छोड़िक ' अर फिर हम सब्या श्रीनगरा तरफां ऐ गयां। मतलब मेरी ब्वे बि हम दगड़ा ऐग्ये त वां का कुछ टैम बाद तक बि मैना - द्वी मैना अपणा गौं मा हमारि आणि - जाणी लगीं रै। पर, व्यस्तता अर दूर होणा वजौ से बाद मा आणि - जाणि जरा कम ह्वे गे छै । हर्बी -हर्बी कैरिक बगत बि सौंफळी मारी सटगणु रै। ब्वे -बुबा, बड़ों अर गुरुजनों आशीर्वाद से मि बि मास्टरी नौकरी परैं लगि गयूं अर ब्योबंद बि ह्वे गे।
अपणा गौं जाणे भारी रौंस लगीं रांदि छै त ब्याे का कुछ टैम बाद एक दिन मि रैट -पैट ह्वेकि अपणी ब्वारि दगड़ा अपणा गौं पौंछि गयूँ एक दिन। हौरि जगौं कि तरौं मेरा गौं मा बि अब भौं कुछ बदलि ग्ये छौ । मथी अपणि कुलदेवी (भगवती )दर्शन कन्ना बाद जब मि अपणा चौक मा पौंछयुं त क्या देख्दु कि - वु दळम्या डाळाे कट्ये गे छौ। जब मिन यो देखि त हकदक रै गयूं। सुन्नताळ ह्वे ग्ये मी कु तैं। मेरा दादाजी लगाईं वा डाळी यानि वा निशानी अब नि रै। मेरी आंख्यूं मा अंसधरि अर मेरा दिल परैं क्या बीती, मी जाणदु। अब क्या ब्वन? जौंन वे दलम्या डाळाे काटि छौ वू बि हमारा ही स्वारा-भारा छा अर वून बोलि कि - मजबूरी मा यो काम ह्वे। ज्यू त ब्वन्नू छौ कि अंगर्याळ बणी छिबटी जौं वूं पर, पर क्या कन्न। मि बि एक -द्वी दिन बाद अपणी घरवाळी दगड़ा श्रीनगर ऐ गयूँ। भौत दिन तक वो दळम्या डाळाे मेरी आंख्यूँ मा रिटणु रै।
हमारा जीवन मा इन घटना घटणी रौंदन जो कि बाद मा यि घटना किस्सा बणी जांदन अर किस्सा कथों रूप ले लिंदन। ठीक इन्नी यो किस्सा बि मेरा 'उदराेळ ' कथा संग्रै कि कथा ' दळम्या डाळाे ' रूप मा ये कथा संग्रै को एक हिस्सा बणी।
      इन्नी हौरि छ एक किस्सा मेरा छवट्टा -छौंद कु।गलतियों पर अपणा पिताजी घप्पक बि भौत खईं मेरी, जो कि मेरा वास्ता एक तरों से प्रसाद ही छौ। जब दर्जा सात मा छौ त एक बार मि दगड़यों दगड़ी वेदिखाल मा बस अड्डा से जरा दूर किसाणा गौं तरफां गयां छा अर वख एक पाणी हौज छै। जब हम वां का माथ अटगणा छायि त मि कलतम्म वीं हौज मा पड़ी गयूं । असंद क्या मोरण-बचण ह्वे ग्ये मी खुणी। मी दगड़ा छोरोंन तब हल्ला मचायि अर क्वी सयाणु आदिम उना बटि जाणा छायि त वूंन भैर निकाल मि तैं। वे दिन नै जिंदगी मिली छै मि तैं, किलैकि थोड़ा हौरी देर होंदी त ह्वे गे छै सांस बंद । सकस्याट ह्वे गे छौ बिजाम । य खबर मेरा घर मा माँ - पिताजि तक बि पौंछि गे छै। ब्वे त ब्वे ही होंद, र,वे -र,वेकि बुरा हाल छा ब्वे का। पिताजिन त भली कैरिक क्लास लियाली छै मेरी... कि किलै दनकणा छायि वख? अर फिर तब त दगड़ा मा सुटान बि। बाद मा फिर हम दगड़्या वीं तरफां जरूर जांदा छायि पर वीं हौज का धोरा नि जांदा छा।

         भौत सारा संस्मरण मेरी साहित्यिक जात्रा से जुड्यां छन। बाद मा 'गढ़वाळि भाषा अर साहित्य कि विकास जात्रा(चौदवीं शताब्दी बटि अबारि तक  गढ़वाळि भाषा -साहित्य को ऐतिहासिक विकास क्रम)' ज्वा सन् 2014 मा प्रकाशित ह्वे, ईं पुस्तक तैं लिखण से पैलि अर ईं पुस्तक का लिखणा दौरान वां से जुड़यां कतगै संस्मरण छन। पर, एक घटना कु जिक्र मि जरूर कन्न चांदु। सन 2012 मा देवप्रयाग मि गढ़वाळि भाषा सम्बन्धी ऐतिहासिक धरोहराें साक्ष्य (ताम्रपत्र, रजत पत्र, शिलालेख आदि )देखणा गयुं। जब ये दौरान मि 'खेत्रपाल मंदिर ' मा द्वार अभिलेख देखणु गयूं त, वख वे टैम पर कर्नाटकाै एक सनक्या पुजारी छौ। मिन द्वार अभिलेख त देखियाली छौ, पर तबार्यूं वु पुजारी ऐ गे अर वेन मि तैं डरैकि सड़क तक दौड़े दे। बाद मा मि तैं पता लगी कि वो पुजारी दिमाग से जरा हिल्यूं छाै ।
      इन्नी एक हौरि घटना छ। हमारि श्रीनगर गढ़वाळ का रामलीला मैदाना सामणी दुकान छ । मि बि पैलि अपणी दुकान मा बैठदु छौ। फरवरी सन 2011 मा एक दिन ब्याखुनि दां मि अर बड़ो भै संजय रावत दुकान बढ़ाैणा छा। मेरी वे बगत गिच्चा मा टाैफी रखीं छै। अचंणचक वा टाैफी मेरी गौळी मा अटकि गे त मेरी सांस बि अटकि गे । बस! वे बगत मोरणी - बचणी ह्वे गे छै मै कु तैं। मेरु बड़ो भै बि खाैळयूं रै गे अर फिर वेन मेरी पीठ अर धाैण परैं मारी त मेरी गौळी मा फसीं टाैफी भैर निकलि गे । ईं घटना तुरंत बाद ही ' एक लपाग ' कि य रचना - " भैर भितर आंदा-जांदा सांस च य जिंदगी " उपजि।
       इलैइ बोलदन कि - मनखी तैं जो कुछ बि मिल्द हैंका बटि मिल्द, अपणा समाज अर प्रकृति बटि मिल्द, अपणा अनुभवाें से मिल्द अर ये संग्सार मा मनखि अफुं दगड़ा कुछ बि लेकि नि आन्दु। इलैइ मिन बि जो बि पायि अर जो बि सीखि होर्यूं बटि पायि , ये समाज, प्रकृति अर अनुभवाें से पायि ।
                                         संदीप रावत 
                             न्यू डांग , श्रीनगर गढ़वाल 
                                 मो - 9411155059 
नोट - मेरा जीवन का यो कुछ किस्सा श्री गिरीश बडोनी जी अर श्री अनिल सिंह नेगी जी द्वारा सम्पादित, सन् 2021 मा प्रकाशित पुस्तक 'किसम -किसमा किसमा ' पुस्तक मा 'दळम्यो डाळाे ' नौ से प्रकाशित छन।





2 comments:

  1. भोत मार्मिक घटना ! भावुक कन्न वळि 🌺🙏 यों घटनाओं से भोत कुछ सीखी सकदन । नमन 🙏🙏

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  2. धन्यवाद राकेश

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