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Monday, October 21, 2019

आलेख - **भारत में आम जन जीवन की एक आदर्श स्तिथि * * © संदीप रावत ,न्यू डांग ,श्रीनगर गढ़वाल |

आलेख- *भारत में आम जनजीवन की एक आदर्श स्तिथि *
                  
            © संदीप रावत ,न्यू डांग ,श्रीनगर गढ़वाल |
    
         यहां पर अपने देश में  सभी के जीवन की आदर्श स्तिथि के बारे में कुछ लिखने की शुरुआत सभी लोगों की मँगल कामना हेतु मैं अपनी ही गढ़वाली रचना की दो पंक्तियों से करता हूं -

**ना भूखू रौवु ना तीसू क्वी ,ना नांगू ना रूदों रुफड़ाणू क्वी ,
मेरी जन्मभूमि हे भारत माता ! गौ-गँगा माता ईं धरती मा**
        
       जब हम जिंदगी के एक आदर्श स्तिथि की बात करते हैं तो सोच-विचार करना लाजमी है |  हर एक हाथ को काम यानि रोजगार ,सभी के लिए शिक्षा ,सबके लिए स्वास्थ्य सुविधा , सबके लिए अच्छा सा  घर (छोटा हो या बड़ा ,  ये प्रश्न नहीं ),सबकी सुरक्षा , शांति और साथ-साथ कुछ उम्मीदें |
         हमारे देश ने  विज्ञान ,टेक्नोलॉजी एवं औद्योगिकीकरण में काफी उपलब्धियां हासिल कर ली हैं ,परन्तु अभी भी कई चुनौतियां शेष हैं |  हर किसी की जुबान पर आज *विकास* शब्द है और देश से लेकर राज्य तक ,शहर से लेकर गाँव तक विकास की चर्चा होती है | साथ ही इस शब्द के साथ उम्मीदें जग रही हैं और उम्मीदें बढ़ रही हैं | इस दिशा में पूरे देश में प्रयास हो रहे हैं  और देश में विकास कुछ हद तक हो भी रहा है ,परन्तु सभी के सपने साकार होने में वक्त लग सकता है | देश के प्रत्येक नागरिक को अपने सपनों में मानवीयता एवं संवेदनाओं को भी जगह देने की आवश्यकता है और साथ ही  प्रत्येक नागरिक द्वारा राष्ट्र की मजबूती के लिए नि:स्वार्थ भाव से योगदान देने की आवश्यकता है |
       यह भी सोचना आवश्यक है कि -अपने देश में विभिन्न वर्गों के  क्या सभी परिवारों में विकास हो रहा होगा ? क्या सभी लोगों की सोच में परिवर्तन हो रहा है ? क्या  पूरे देश, हर राज्य , हर शहर एवं घर-गाँवों में महिलाओं की स्तिथि वास्तव में बेहतर हो चुकी है? क्या देश में अभी भी सभी जगह स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध हो पा रही हैं?
         यह माना जा रहा है कि  भारत एक सबसे युवा देश है  और युवा शक्ति हमारे देश की उम्मीद है | परन्तु नई पीढ़ी के प्रति उत्तरदायित्व भी बहुत हैं |  जो समाज अपनी नई पीढ़ी के प्रति उत्तरदा़यित्वों का सही ढंग से निर्वाह नहीं करेगा तो उस समाज की गतिशीलता कम होती जाएगी और वह समाज  पिछड़ सकता है  | आज के समय में शिक्षा की सर्वांगीणता, गुणवत्ता एवं उपयोगिता बढ़ाने की आवश्यकता  है | नई पीढ़ी को पथभ्रष्ट होने से बचाना होगा और उसको अपनी जड़ों से जोड़ना भी आवश्यक है |
       आज हमारे देश में शिक्षा का ग्राफ काफी बढ़ा है | परन्तु सामने यह सवाल भी खड़ा है कि जो अपनी शिक्षा पूर्ण कर चुके हैं ,क्या उन्हें काम मिल गया है? रोजगार मिल गया है? वास्तविकता यह है कि यहां बढती हुई जनसंख्या के अनुसार सार्वजनिक क्षेत्र में रोजगार नहीं बढ़े हैं | सभी सरकारी नौकरी की चाह रखते हैं ,परन्तु यह संभव भी नहीं कि सभी को सरकारी नौकरी के अवसर मिल जाएं |
        निजी क्षेत्रों में भी रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने की आज आवश्यकता है |उद्योगों को बढ़ाने की बहुत आवश्यकता है , परन्तु अत्यधिक मुनाफाखोरी पर लगाम भी आवश्यक है | देश की प्रगति के लिए सभी को स्वार्थ से किनारा करना आवश्यक है | जिसका भी अपना रोजगार है ,उसे अपने रोजगार हेतु संसाधन उपलब्ध हो सकें यह आवश्यक है | हमारे देश में जो अन्नदाता (किसान) हैं उनकी समस्याओं की ओर भी ध्यान देना उतना ही जरूरी है ,जितनी अन्य बातें |
            कभी गर्मी में लू बहुत जिन्दगियां लील जाती है | अब सर्दी का आगमन हो चुका है , दिसम्बर-जनवरी  माह में ठण्ड का प्रकोप बढ़ जाता है | यह बिडम्बना है कि कई बेघर लोगों के लिए ठण्ड जानलेवा साबित हो जाती है | अत: सभी के लिए बुनियादी आवश्यकताओं की मांग को नकारा नहीं जा सकता | अतीत से सबक लेना आवश्यक है और सभी का साथ-साथ  चलना आवश्यक है ,उदारवाद की आवश्यकता है |
        अति भौतिकता की चकाचौंध में वस्तुओं को जोड़ते-जोड़ते ,इकट्ठा करते-करते हम लोग ही इक सामान बन गए हैं | ईश्वर तक को इक सामान मान चुके हैं |सांसारिक जंजाल बढ़ चुका है और अति लोभ के कारण हम सभी वस्तुओं का गुलाम बनते जा रहे हैं | वस्तुओं  के अनियंत्रित उपभोग पर नियंत्रण भी आवश्यक है तभी मानसिक शांति आ पाएगी | इस संदर्भ में महाकवि गोपालदास नीरज की ये पंक्तियां याद आती हैं-      

"जितना कम सामान रहेगा
उतना सफर आसान रहेगा |
जितनी भारी गठरी होगी
उतना तू  हैरान रहेगा |
          सब खुशहाल रहें ,सभी आगे बढ़ें , आवो साथ चलें |
      © संदीप रावत ,न्यू डांग ,श्रीनगर गढ़वाल |

        

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