मेरी प्रकाशित पुस्तकें :-


(1) एक लपाग ( गढ़वाली कविता-गीत संग्रह)- समय साक्ष्य, (2) गढ़वाळि भाषा अर साहित्य कि विकास जात्रा (गढ़वाली भाषा साहित्य का ऐतिहासिक क्रम )-संदर्भ एवं शोधपरक पुस्तक - विन्सर प्रकाशन, (3) लोक का बाना (गढ़वाली आलेख संग्रह )- समय साक्ष्य, (4) उदरोळ ( गढ़वाली कथा संग्रह )- उत्कर्ष प्रकाशन ,मेरठ


Thursday, October 24, 2019

आलेख - *बी. मोहन नेगी विविध आयामी व्यक्तित्व के धनी एवं उत्तराखण्ड की अनमोल धरोहर थे * ©संदीप रावत ,न्यू डांग ,श्रीनगर गढ़वाल

   प्रसिद्ध चित्रकार स्व.बी. मोहन नेगी जी की द्वितीय पुण्य तिथि ( 25 अक्टूबर ) पर विनम्र श्रद्धांजलि --

*बी.मोहन जी विविध आयामी व्यक्तित्व के धनी एंव उत्तराखण्ड की अनमोल धरोहर थे | *
             © संदीप रावत ,न्यूं डांग ,श्रीनगर गढ़वाल |
        गढ़वाल की इस उर्वरा भूमि में देश की कई असाधारण प्रतिभाओं ने जन्म लिया ,जिन्होंने अपूर्व ख्याति अर्जित की | बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी प्रसिद्ध चित्रकार उत्तराखण्ड की ऐसी धरोहरों में से एक थे जिन्होंने  निरन्तर अपने प्रयासों से, रंग-लेखनी ,कोलाजों के माध्यम से ,चित्रकारी के माध्यम से  ,कविता पोस्टरों के माध्यम से अपनी एक  अलग पहचान बनाई  और उत्तराखण्ड की संस्कृति,भाषा-साहित्य  को विभिन्न कोलाजों ,चित्रकारी/ रेखांकनों के माध्यम से उजागर करने एंव प्रचार-प्रसार करने में सदैव अग्रणीय भूमिका निभाई |
       बी.मोहन जी के व्यक्तित्व या उनकी बहुआयामी रचना शीलता पर लिखना बहुत कठिन है , कि उनकी रचना धर्मिता के किस पहलू पर विस्तार पूर्वक लिखा जाए -  "उनके द्वारा बनाए गए कविता पोस्टरों के बारे में लिखा जाए या बनाए गए व्यंग्य चित्रों पर , उत्तराखण्ड की ज्वलन्त समस्याओं यथा पलायन, यहां की विलुप्त होती संस्कृति को समय-समय पर अपनी चित्रकारी व कोलाजों के  माध्यम से उजागर करने पर लिखा जाए या फिर यहां की लोक संस्कृति के प्रचार-प्रसार पर , उनके द्वारा बनाए  गए रेखाचित्रों पर लिखा जाए  या फिर उनके द्वारा बनाए गए अनगिनत साहित्यकारों की पुस्तकों के मुखपृष्ठों अर्थात पुस्तक आवरणों पर , उनके पेपरमैसी के काम पर लिखा जाए या फिर बनाए गए मुखौटों पर  , उनके साहित्य प्रेम पर लिखा जाए या फिर उनके कवित्व पहलू पर , उनके द्वारा संकलित/संग्रहित किए गए बहुत पहले बंद पड़े पत्र-पत्रिकाओं के शुरुआती अंको ,दुर्लभ रचनाओं और दुर्लभ पुस्तकों पर या  फिर दुर्लभ पुस्तकों व रचनाओं को अपनी चित्रकारी या कला से नया कलेवर देने पर  , या फिर उनके गढ़वाली भाषा- साहित्य के  संरक्षण एंव प्रचार-प्रसार में योगदान देने पर लिखा जाए | " उनके बारे में एक पूरी पुस्तक भी लिखी जाए तो शायद कम पड़ेगी | 
          बी.मोहन जी की जिस बिधा या प्रतिभा से सभी सबसे ज्यादा परिचित थे वो है कवियों की कविताओं पर उनके द्वारा बनाए गए   "कविता पोस्टर "  |  उत्तराखण्ड में इस विधा को बी.मोहन नेगी ने एक ऊंचाई प्रदान की |    उन्होंने  गढ़वाली, कुमांउनी,जौनसारी ,रवांल्टी ,नेपाली के अलावा  देश- दुनिया के अन्य कवियों की कविताओं पर कविता पोस्टर बनाए | उन्होंने देश-दुनिया के न जाने कितने कवियों की कविताओं को अपनी रंग-लेखनी के माध्यम से यानि चित्रकारी के माध्यम से एक बड़ा फलक दिया | यह मेरा भी सौभाग्य है कि बी.मोहन जी ने मेरी  भी पांच- छह छोटी कविताओं पर कविता पोस्टर बनाकर मुझे कृतार्थ किया | उन्होंने मेरी कविताओं पर बनाए गए कविता पोस्टरों को पत्र-पत्रिकाओं में छपने हेतु स्वंय  भेज दिया था  और साथ ही मुझे भी डाक से बनाए गए कविता पोस्टर भेज दिए थे , ऐसी थी बी.मोहन जी की सरलता, सहजता |
          श्री नरेन्द्र कठैत जी द्वारा कई हिन्दी कवियों की कविताओं के लगभग 500 गढ़वाली अनुवाद  किए गए हैं और इन गढ़वाली अनुवादों में से  बी0 मोहन जी ने लगभग 200 अनुवादों पर   रेखांकन किया यानि कविता पोस्टर बनाए | यह जुगलबंदी बहुत चर्चित रही है | नरेन्द्र कठैत जी द्वारा हिमवंत कवि चन्द्र कुंवर बर्त्वाल जी की  गढ़वाली अनुवादित लगभग 70 -72 कविताओं पर   बी.मोहन जी ने कविता पोस्टर पोस्टर बनाए  और इन सहित चन्द्र कुंवर बर्त्वाल की रचनाओं पर उन्होंने लगभग 100  कविता पोस्टर बनाए |
        उत्तराखण्ड की  भाषाओं के कविता पोस्टरों की जगह- जगह प्रदर्शनी लगाकर इसके माध्यम से उन्होंने यहां भाषा आन्दोलन में भी सक्रिय व अग्रणीय भूमिका निभाई | उनके बनाए गए कविता पोस्टरों से गढ़वाली-कुमांउनी भाषाओं का खूब प्रचार-प्रसार हुआ ,क्योंकि कविता पोस्टरों को देखकर लोग कवि की पूरी कविता जरूर पढ़ते | अब कई लोगों ने उन से प्रेरित होकर चित्र कला और कविता पोस्टर को अपनी कलात्मक अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया है  , जिनमें अतुल गुसांईं "जाखी " , दीपक नेगी , आशीष नेगी आदि प्रमुख हैं |
         बी.मोहन जी ने लगभग सौ पुस्तकों व पत्रिकाओं के मुख पृष्ठ यानि पुस्तक आवरण/कवर पेज बनाए हैं | मेरी चारों प्रकाशित गढ़वाली पुस्तकों के मुख पृष्ठ उन्हीं के द्वारा बनाए गए हैं | मेरे निजी संकलन में लगभग 35 पुस्तकें  ऐसी हैं जिनके मुख पृष्ठ बी.मोहन जी द्वारा बनाए गए हैं | उनके द्वारा सबसे पहला मुख पृष्ठ गढ़ गौरव श्रद्धेय नरेन्द्र सिंह नेगी जी की पुस्तक "खुचकण्डी " के लिए बनाया गया था | प्रसिद्ध साहित्यकार श्री नरेन्द्र कठैत जी की प्रकाशित सभी 14 पुस्तकों के मुखपृष्ठ   बी.मोहन जी द्वारा ही बनाए गए हैं |
              मेरा  बी.मोहन जी से आमने-सामने परिचय सन् 2008 में श्री विमल नेगी जी के सम्पादकत्व में प्रकाशित होने वाले गढ़वाली पाक्षिक " उत्तराखण्ड खबरसार" के पौड़ी अवस्थित कार्यालय में हुआ था | बाद में पौड़ी ,श्रीनगर रोड़ के नीचे उनके निवास पर भी कई बार जाने का मौका मिला | उनके निवास पर जाने पर उनकी कलाकृति या रचना धर्मिता व साहित्य प्रेम उनके निवास के प्रवेश द्वार  पर ही दिख जाता है | उनके हाथों से बहुत सुन्दर ढंग से लिखी हुईं तारादत्त गैरोला द्वारा रचित "सदेई " की ये पंक्तियां - " हे ऊंची डांड्यो तुम निसी ह्वावा "  गेट के सामने याने प्रवेश द्वार के अन्दर  की दाईं तरफ वाली दीवार पर लिखी हुईं हैं |
        गढ़वाली भाषा-साहित्य की दुर्लभ और पुरानी पुस्तकों व रचनाओं ,बहुत पहले बंद हो चुके अखबारों के पहले अंको का उन्होंने संग्रह किया ,उन्हें सहेज कर रखा | साथ ही अपनी चित्रकारी व रेखांकन से कई दुर्लभ रचनाओं को नया कलेवर देकर प्रचार-प्रसार करने के साथ ही कई दुर्लभ रचनाअों को लुप्त होने से बचाया |
       सन्  2013 में  गढ़वाली गद्य की पुस्तक "गढ़वाली भाषा अर साहित्य कि विकास जात्रा " ( सन 2014 में प्रकाशित) लेखन के दौरान  जब कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां जुटाने मैं उनके आवास पर गया तो उन्होंने मुझे भीमराज सिंह कठैत द्वारा लिखित गढ़वाली उपन्यास "शेरू " की फोटो स्टेट व बाइंड की हुई  प्रति भेंट की | इस उपन्यास की प्रतियां उन्होंने स्वयं फोटो स्टेट की थीं एवं स्वयं बाइंड करके कई साहित्यकाराें को मुफ्त में भेंट की थी | गढ़वाली साहित्य की  पहली  गढ़वाली कथा "गढ़वाळि ठाठ " ( सदानन्द कुकरेती जी द्वारा लिखित) जोकि सन् 1913 में "विशाल कीर्ति" मासिक पत्र में प्रकाशित हुई थी, उस कथा का आधा भाग मैंने बी0मोहन जी के घर में उनके नये-पुराने गढ़वाली साहित्य के संकलन में शामिल "विशाल कीर्ति " के "अगस्त-सितम्बर-अक्टूबर, सन् 1913" के अंक में स्वयं देखा व पढ़ा | उसका उद्धरण /संदर्भ मैंने अपनी पुस्तक में भी दिया है  | ऐसे ही अनगिनत दुर्लभ पत्र-पत्रिकाओं एवं  पुस्तकों  का उन्होंने रख रखाव किया था |
          बी.मोहन जी के संकलन में  मैंने  गढ़वाली भाषा में छपे हुए पॉम्पलेट/पर्चे, पोस्टर ,शादी के कार्ड ,निमंत्रण पत्र देखे जिनमें से कछ-कुछ का जिक्र भी मैंने अपनी पुस्तक (गढ़वाळि भाषा अर साहित्य कि विकास जात्रा ,सन् 2014 में प्रकाशित)में किया हुआ है |  गढ़वाली भाषा-साहित्य में व्यंग्य चित्रों की शुरुवात भी बी.मोहन जी ने ही की थी |
         उनकी सहजता व सरलता ऐसी थी कि वे सभी के साथ एक जैसा व्यवहार रखते थे -  चाहे कोई वरिष्ठ साहित्यकार हो या नया लेखक /कवि | अपने मजाकिया अंदाज में बी0 मोहन जी नए कवि एवं लेखकों को गम्भीर सीख दे जाते थे | जून 2015 में  जब वे श्रीनगर रेनबो पब्लिक स्कूल के पास एक कोचिंग सैंटर में बच्चों को "पेपरमेसी " सम्बन्धी जानकारी देने आए थे तो उन्होंने वहां पर मुझे भी फोन करके बुला लिया | साथ ही पौड़ी में गढ़वाली कथाकार श्री महेशानन्द जी के एक कथा संग्रह "डडवार" के लोकार्पण अवसर पर बी0मोहन जी के साथ मंच पर बैठने का सौभाग्य  प्राप्त हुआ था |  वे   क्षण भी मेरे लिए अदभुद थे | वास्तव में  बी0मोहन जी एक निष्काम कर्मयोगी , असाधारण प्रतिभा के धनी परन्तु सहज-सरल व संवेदनशील  व्यक्ति थे |    
      उनके अवसान से गढ़वाली भाषा -साहित्य जगत एंव रंग-लेखन /चित्रकला जगत में जो खालीपन आया है उसे भरना फिलहाल बहुत मुश्किल है |  सुकृत्यों के लिए जिनका नाम , यश और कीर्ति होती है ,वे सदैव जीवित रहते हैं | उनके द्वारा बनाए गए  कविता -पोस्टरों , पुस्तकों के बनाए गए मुख पृष्ठों, कोलाजों , रेखांकनों  के रूप में बी.मोहन जी  सदैव जीवित रहेंगे | गढ़वाली भाषा- साहित्य की विकास यात्रा में उनके अतुलनीय एवं अमूल्य योगदान को सदैव याद किया जाएगा |इस महान विभूति को विनम्र श्रद्धांजलि एंव श्रद्धा सुमन अर्पित!

  (नोट - यह आलेख वरिष्ठ गढ़वाली साहित्यकार श्री नरेन्द्र कठैत द्वारा  बी.मोहन नेगी जी पर सम्पादित स्मृति ग्रंथ * सृजन विशेष एवं स्मृति शेष* मे प्रकाशित है | )

© संदीप रावत ,न्यू डांग ,श्रीनगर गढ़वाल  |

  

   

No comments:

Post a Comment