प्लास्टिक का फूल रे !
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भलो दिख्येंदि भैर-भैर
रंगीलो , हाइ-फाइ , दन ,
पण! कख रंगै सकदि तू
कैकु बि मन ?
कब दे सकदि हव्वा तैं 
जरा-सी बि गन्ध ?
प्लास्टिक का फूल रे !
तेरी कानि सदानि काणी
ना तेरी जैड़, ना क्वी धरती, 
ना खाद-पाणी !
  
18/07/2020                © संदीप रावत ,
                                  न्यू डांग, श्रीनगर गढ़वाल
मेरी प्रकाशित पुस्तकें :-
Saturday, July 18, 2020
कविता - प्लास्टिक का फूल रे !©संदीप रावत ,श्रीनगर गढ़वाल
Sunday, July 12, 2020
रचना - इना सूण © संदीप रावत,न्यू डांग ,श्रीनगर गढ़वाल
इना सूण
इना सूण  ,इना सूण , मेरा दिदा इना सूण
कख बोकणी छैयि सुद्दि अति गाण्यूं कि दूण  ।
मनख्यात बिन मनखीन् चिफळि गिच्चि को क्या कन्न
मैनों बटि नह्ये- धुये ना हो बल सूट- बूट को क्या कन्न 
भली नि लग्दि साग- भुज्जि- दाल- रैठो बिना लूण    ।
 अफुतैं भलि क्वे देख पैलि कर्मोन् अपणो भाग लेख
 ईं दुनिया मा अफूं ही चलण  सबसे पैलि  अक्वेंक  
  ना छिरकौ तू सुद्दि -सुद्दि ,वचन-प्रवचनों कि स्यूण  ।
नखरी छ्वीं-बत्थूंम किलै अच्छ्याणा धरीं तेरि मूण
मनै मैली चदरी हटौ ,भलि छ्वींयूं कि कम्बळि बूण 
तू द्यवता ना बस मनखी छै ,ईं बात तैं भलि क्वे गूण  ।
काल का गाल  सब समायि जान्द एक दिन
करम रैयि जान्द  बस अग्वाड़ि आन्द एक दिन  
बहम -अहम छोड़ दे तू ,बिस्वासै चदरी भलि क्वे बूण  ।
              
             © संदीप रावत , न्यू डांग, श्रीनगर गढ़वाल
