इना सूण
इना सूण ,इना सूण , मेरा दिदा इना सूण
कख बोकणी छैयि सुद्दि अति गाण्यूं कि दूण ।
मनख्यात बिन मनखीन् चिफळि गिच्चि को क्या कन्न
मैनों बटि नह्ये- धुये ना हो बल सूट- बूट को क्या कन्न
भली नि लग्दि साग- भुज्जि- दाल- रैठो बिना लूण ।
अफुतैं भलि क्वे देख पैलि कर्मोन् अपणो भाग लेख
ईं दुनिया मा अफूं ही चलण सबसे पैलि अक्वेंक
ना छिरकौ तू सुद्दि -सुद्दि ,वचन-प्रवचनों कि स्यूण ।
नखरी छ्वीं-बत्थूंम किलै अच्छ्याणा धरीं तेरि मूण
मनै मैली चदरी हटौ ,भलि छ्वींयूं कि कम्बळि बूण
तू द्यवता ना बस मनखी छै ,ईं बात तैं भलि क्वे गूण ।
काल का गाल सब समायि जान्द एक दिन
करम रैयि जान्द बस अग्वाड़ि आन्द एक दिन
बहम -अहम छोड़ दे तू ,बिस्वासै चदरी भलि क्वे बूण ।
© संदीप रावत , न्यू डांग, श्रीनगर गढ़वाल
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