" पहाड़ "
पहाड़ रड़णा छन
लोग उंदू सरकणा छन
जो छन यख 
वू पाणी को तरसणा छन,
नीस घाट्यों मा 
ब्वगणी छ गंगा
पर! पाणी-पाणी सारि-सारि कि
यख मुण्डळी खुर्स्येणी छन |
              © संदीप रावत ,न्यू डांग ,श्रीनगर गढ़वाल |
मेरी प्रकाशित पुस्तकें :-
" पहाड़ "
पहाड़ रड़णा छन
लोग उंदू सरकणा छन
जो छन यख 
वू पाणी को तरसणा छन,
नीस घाट्यों मा 
ब्वगणी छ गंगा
पर! पाणी-पाणी सारि-सारि कि
यख मुण्डळी खुर्स्येणी छन |
              © संदीप रावत ,न्यू डांग ,श्रीनगर गढ़वाल |
" जिन्दगी "
भैर -भितर आन्दा-जान्दा
सांस छ जिन्दगी
चार दु:ख चार सुख 
संग्ति आस जिन्दगी
मुठ्ठयों पर थूक लगैकि
अटगदी रान्द जिन्दगी
झूठी गाणि स्याण्यों मा
भटगदी रान्द जिन्दगी
खैंची ताणि लगीं रान्द 
हरदि नि छ जिन्दगी
माटी बणी माटि मा हि
मिली जान्द जिन्दगी  |
      © संदीप रावत ,न्यू डांग ,श्रीनगर गढ़वाल |
           ( 'एक लपाग ' पुस्तक से )
* विकास *
बल !
बड़ा- बड़ा प्वटगा वळा 
गरीबूं का हिस्सा मा बि 
अपणू हिस्सा छन खुज्याणा ,
अर !
विकास का नौ पर 
छूड़ी गलत काम तैं बि
सही छन बताणा |
द बोला !
स्यू सब्या -सब्बि 
तै विकास तैं कांधिम धैरिक 
झणि कख होला दनकाणा ?
अर ! 
अपणा कर्मों का 
डूण्डा हथ्यूं तैं 
झणि कख होला लुकाणा ? 
                     © संदीप रावत ,न्यू डांग ,श्रीनगर गढ़वाल |