*द्वी आखरूं कु ज्ञान द्ये (गढ़वाळि सरस्वती वंदना)*
अज्ञानै अँध्यारी रात मा द्वी आखरूं कू ज्ञान द्ये
घुली जौ रस बाच मा वीणा कि इन तू तान द्ये |
द्यू जगौ सदभाव कु ,चौतर्फां उदंकार हो
चौतर्फां उदंकार हो ,
अभाव मा तू भाव भ्वरी ,सबका जिकड्यूं प्यार हो
माँ ,सबका जिकड्यूं प्यार हो ,
विद्या-बुद्धि संग भला,विद्या बुद्धि संग भला कर्मों कु मिजान द्ये
घुली जौ रस बाच मा ,वीणा कि इन तू तान द्ये |
सुबाटोम् हिटै सदानि ,जीणा कु तू द्ये सगोर
माँ जीणा कु तू द्ये सगोर
माया-मोहक हटै जिबाळ ,मन कु खैड़-मैल सोर
माँ ,मन कु खैड़-मैल सोर
शब्दों का ब्रह्म कमल खिल्याँ ,शब्दों का ब्रह्म कमल खिल्याँ
हमुतैं इनु वरदान द्ये
घुली जौ रस बाच मा ,वीणा कि इन तू तान द्ये |
सच्चा ध्यो से हम सदानि ,कर्म अपणु करदी जौं
माँ , कर्म अपणू करदी जौं
तेरी अरज हम सदानि ,दीन भौ मा करदी रौं
माँ ,दीन भौ मा करदी रौंवु
ज्ञान को छै तू समोदर ,ज्ञान को छै तू समोदर
हमु बि जरा तू ज्ञान द्ये
घुली जौ रस बाच मा ,वीणा कि इन तू तान द्ये |
©गीतकार एवं कम्पोजर - संदीप रावत ,न्यू डांग ,श्रीनगर गढ़वाल
(प्रवक्ता ,रा.इ.कॉ. धद्दी घण्ड्यिाल ,बडियारगढ़,टि.ग. )
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