भौत दुःखद --
* नि रैनि उत्तराखण्ड कि इक महान विभूति अर गढ़वाळि कथा साहित्य का कालजयी रचनाकार श्रद्धेय श्री मोहन लाल नेगी जी*
(जलम - 23 जनवरी 1930 , बेलग्राम, पट्टी- अठूर, टिहरी गढ़वाल , भग्यान - 26 अक्टूबर 2020 ,देहरादून)
गढ़वाळ्या जण्या- मण्या वरिष्ठतम कथाकार अर लेखक , टिहरी का वरिष्ठतम विद्वान अधिवक्ता श्री मोहन लाल नेगी जी देहरादून मा भग्यान ह्वे ग्येनि । श्री मोहन लाल नेगी जी को दिवंगत होण गढ़वाळि भाषा-साहित्या वास्ता इन क्षति छ जै कि भरपै कब्बि नि कर्ये जै सकेंद । अचणचक तबियत खराब होणा वजौ से 26 अक्टूबर 2020 खुणी वूं को देहरादून मा स्वर्गवास ह्वे ग्ये । मि तैं बि य सूचना देहरादून का वरिष्ठ साहित्यकार श्री शूरवीर रावत जीन द्ये ।
दस गढ़वाळि कथौं पैलो बड़ो ऐतिहासिक गढ़वाळि कथा संग्रै - "जोनि पर छापु किलै(1967)" , वां का बाद फिर गढ़वाळि कथा संग्रै "बुरांस की पीड़(1987)", गढ़वाळि उपन्यास- सुनैना(2012) द्येकि वूंन गढ़वाळि भाषा-साहित्य मा अपणो अमूल्य अर ऐतिहासिक योगदान द्ये । गढ़वाळि साहित्य मा स्व. मोहनलाल नेगी जी का ये योगदान तैं कबि बि अर कै बि तरौं से नि बिसर्ये जै सकेंद । यो गढ़वाली भाषा-साहित्यै अनमोल धरोहर छन । वूं को अपणि मातृभाषा गढ़वाळि भाषै प्रति भौत पिरेम छौ । नब्बे- इक्कानब्बे सालै उमर मा बि श्रद्धेय श्री मोहन लाल नेगी जी एक तपस्वी कि तरौं साहित्य साधना कन्ना रैनि ।
दस गढ़वाळि कथौं वूंन अंग्रेजी मा अनुवाद बि करी । वूं को " मध्य हिमालय की कहानियाँ "सन् 2000 मा प्रकाशित ह्वे । पिछला साल ही नब्बे सालै उमर मा वूंकि 408 पेजों किताब " यादों की गलियाँ " प्रकाशित ह्वे छै । वूं को " रामायण को गढ़वाळि गद्य अनुवाद" अब्बि अप्रकाशित छ । यां का दगड़ा-दगड़ि वु "हिंदी- गढ़वाली -अंग्रेजी "कि डिक्शनरी बि तैयार कर कन्ना छायि । गढ़वाळि कवितौं परैं बि वूंन कलम चलै छै।
सरल - सौम्य सुभौ वळा श्रद्धेय श्री मोहन लाल नेगी जी को आशीर्वाद हमुतैं अर "आखर " तैं सदानि मिली ।
गढ़वाळि भाषा-साहित्य तैं समर्पित "आखर" समिति(श्रीनगर गढ़वाल) का वास्ता य गौरव वळि बात छै कि "आखर "समितिन् डॉ.गोविन्द चातक जी कि जयन्ती परैं (19 दिसम्बर 2019)देहरादून का हिन्दी भवन मा अपणा वीर्येयां कार्यक्रम मा गढ़वाळि साहित्य मा अमूल्य योगदान द्येणा वास्ता श्री मोहन लाल नेगी जी तैं स्व. बचन सिंह नेगी जी दगड़ा *डॉ.गोविन्द चातक स्मृति आखर साहित्य सम्मान- 2019* से सम्मानित करी । इन विभूति तैं सम्मानित कैरिक क्वी बि संस्था या समिति अफुतैं गौरवान्वित मैसूस कर्द अर इलैई एक तरौं से "आखर" समिति बि इन विभूति तैं सम्मानित कैरिक अपणा आप सम्मानित ह्वे छै। ये ही कार्यक्रम मा वूं कि 408 पेजों किताब " यादों की गलियाँ " को लोकार्पण बि ह्वे छौ |
स्व. मोहन लाल नेगी जी तैं यो सम्मान मिल्नी -
(1) सन् 1985 मा " जय श्री सम्मान " से सम्मानित ।
(2) सन् 2000 मा केदारखण्ड सांस्कृतिक सम्मान
(3) सन् 2007 मा हिंदी साहित्यिक सम्मान मेरठ,
(4) सन् 2010 मा श्रीदेव सुमन सांस्कृतिक सम्मान।
(5) सन् 2017 मा चिठ्ठी - पत्री सम्मान ।
(6) सन् 2019 मा "डॉ.गोविन्द चातक स्मृति आखर साहित्य सम्मान -2019 "(आखर समिति,श्रीनगर गढ़वाल) ।
"आखर " समिति स्व. मोहन लाल नेगी जी का भग्यान( दिवंगत )होण परैं वूं तैं सादर श्रद्धांजलि द्येंद अर ईं घड़ी मा वूं का शोक -संतप्त परिवारा प्रति संवेदना व्यक्त कर्द।
महान साहित्य साधक स्व. मोहन लाल नेगी जी तैं शत-शत नमन अर विनम्र श्रद्धांजलि ।
© संदीप रावत
अध्यक्ष - आखर समिति
(न्यू डांग,श्रीनगर गढ़वाल )
मेरी प्रकाशित पुस्तकें :-
Monday, October 26, 2020
नि रैनि उत्तराखण्ड कि इक महान विभूति अर गढ़वाळि कथा साहित्य का कालजयी रचनाकार श्रद्धेय श्री मोहन लाल नेगी जी*
Wednesday, April 1, 2020
इक महान विभूति छायि श्रीरामचरित मानस जना महाकाव्य को गढ़वाळि अनुवाद कन्न वळा अर 17 किताब्यूं का रचयिता वरिष्ठ साहित्यकार बचन सिंह नेगी जी ©संदीप रावत
*उत्तराखण्ड कि इक महान विभूति अर गढ़वाळि भाषा -साहित्य मा अनुवाद विधा का पुरोधा छायि श्रद्धेय बचन सिंह नेगी जी*
(जलम 04 नवम्बर 1932 - भग्यान 21मार्च 2020 )
हिन्दी अर गढ़वाळि का सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार , धार्मिक ग्रन्थों कु गढ़वाळि मा अनुवाद कन्न वळा जण्या -मण्या अनुवादकर्ता श्री बचन सिंह नेगी का दिवंगत होण गढ़वाळि भाषा-साहित्य का वास्ता इन क्षति छ जै कि भरपै कब्बि नि कर्ये जै सकेंद | तबियत भौत खराब होणा वजौ से 12 मार्च 2020 बटि स्व.बचन सिंह नेगी जी देहरादून इक अस्पताल (वेड मेड अस्पताल ) मा ICU मा छायि अर वखि 21 मार्च 2020 खुणी राति लगभग 9.35 परैं वूं को स्वर्गवास ह्वे ग्ये छौे | 22 मार्च खुणी लॉक डाउन की वजौ से 23 मार्च खुणी वूं कि अंत्येष्टि हरिद्वार मा ह्वे | पिछला चार साल बटि वूं कि तबियत खराब छै | य सूचना वूं का सुपुत्र डॉ. विनोद सिंह नेगी जीन् संदीप रावत ( अध्यक्ष -आखर समिति) तैं द्ये छै | सोशल मीडिया का माध्यम से श्रीनगर बटि संदीप रावत द्वारा य सूचना हौरि लोगूं अर साहित्यकारों तैं द्यिये ग्ये |
एक तपस्वी कि तरौं श्रद्धेय श्री बचन सिंह नेगी जी चुपचाप सदानि अपणि साहित्य साधना कन्ना रैनि | वूंन पाँच बड़ा-बड़ा धार्मिक ग्रन्थों को गढ़वाळि मा अनुवाद करी अर अपणा संसाधनों से प्रकाशित कैरिक गढ़वाळि भाषा-साहित्य मा अपणो अमूल्य अर ऐतिहासिक योगदान द्ये | गढ़वाळि अनुवाद साहित्य मा स्व.बचन सिंह नेगी जी का योगदान तैं कबि बि अर कै बि तरौं से नि बिसर्ये जै सकेंद | गढ़वाळि कवितौं परैं बि वूंन कलम चलै |
वूं को अपणि मातृभाषा गढ़वाळि भाषा का प्रति भौत ही ज्यादा पिरेम वूं द्वारा लिख्यीं यों पंक्तियों से सिद्ध होंद---
"वेद पुराण उपनिषद रामैण ,बिटि सारलीक तुलसीन मथे
अपणा अन्तर तैं सुख देणक ,अवधी मा मानस ग्रन्थ रचे |
वे ग्रंथ कि भाव मैं क्या समझू ,या नन्हि च चोंच छ सागर मा
गढ़वाल भूमिम जन्म लिने स्यु कथा लिखणू गढ़वाळि हि मा ||"
--- बचन सिंह नेगी
श्रीरामचरित मानस (गढ़वाली भाषा ) बटि
वूंन श्रीरामचरित मानस,महाभारत ग्रन्थसार, बाल्मीकि रामायण भाग-1 व भाग-2,श्रीमद्भगवतगीता, ब्रह्म -सूत्र(वेदान्त दर्शन) जना बड़ा-बड़ा धार्मिक ग्रन्थों को अनुवाद करी | यो गढ़वाळि अनुवाद, गढ़वाली भाषा-साहित्य का वास्ता अनमोल धरोहर छन | वाकै मा इना कालजयी महाकाव्यों को गढ़वाळि मा अनुवाद कन्नौ वास्ता साधना चयेंद , तपस्या चयेंद,भौत ज्यादा टैम चैंद | वूं कि 12 हौरि पुस्तक प्रकाशित छन अर कुल मिलैकि वूंकि 17 (सत्रह) पुस्तक प्रकाशित छन |
श्रद्धेय बचन सिंह नेगी जी को जलम 04 नवम्बर 1932 मा जिला- टिहरी , सारज्यूला पट्टी का बागी गौं (भागीरथी पुरम का नजीक) मा ह्वे छौ अर वूं को स्वर्गवास 21मार्च 2020 खुणी देहरादून मा ह्वे ग्ये | वूंका छ्वट्टा छौंद यानि बाळपन मा हि बचन सिंह नेगी जी का पिताजि को स्वर्गवास ह्वे ग्ये छौ | सन् 1950 मा प्रताप इण्टर कॉलेज (टिहरी) बटि वूंन इण्टर करि छौ | सन् 1952 मा डी.ए.वी. कॉलेज देहरादून बटि बी.ए.करि अर साहित्य रत्न ,प्रयाग यानि इलाहाबाद बटि करी | सरकारी नौकरी परैं वु सन् 1954 मा कृषि विभाग मा श्रद्धेय बचन सिंह नेगी जी कि नियुक्ति ह्ले छै अर वु सन् 1990 मा जिला परिषद का अपर मुख्य अधिकारी पद बटि रिटैर ह्वेनि |
गढ़वाळि भाषा-साहित्य तैं समर्पित "आखर" समिति(श्रीनगर गढ़वाल) का वास्ता य गौरव कि बात रै कि- डॉ.गोविन्द चातक जी कि जयन्ती परैं (19 दिसम्बर 2019)गढ़वाळि साहित्य मा अपणो अमूल्य योगदान द्येणा वास्ता स्व. बचन सिंह नेगी जी तैं श्री मोहन लाल नेगी जी दगड़ा *डॉ.गोविन्द चातक स्मृति आखर साहित्य सम्मान- 2019* से सम्मानित करी छौ | वूंकि तबियत खराब होणा वजौ से 19 दिसम्बर 2019 खुणी देहरादून का हिन्दी भवन मा आखर समिति द्वारा वीर्येयां ये कार्यक्रम मा श्रद्धेय बचन सिंह नेगी जी कि सुपुत्री निर्मला विष्ट जीन वूं को सम्मान ल्ये छौ | इन विभूतियों तैं सम्मानित कैरिक क्वी बि संस्था या समिति अफुतैं गौरवान्वित मैसूस कर्द अर इलैई एक तरौं से "आखर" समिति बि इन विभूति तैं सम्मानित कैरिक अपणा आप सम्मानित ह्वे |
वूं तैं जो सम्मान मिला छा ,वो -
(1)सन् 2001 मा उत्तराखण्ड क्षत्रिय कल्याण समिति बटि सम्मानित |
(2) सन् 2016 मा "महानायक भक्त दर्शन सम्मान" (काफल पाको फाउंडेशन) |
(3) सन् 2007 मा राष्ट्रीय हिंदी परिषद ,मेरठ द्वारा " हिन्दी गौरव सम्मान "
(4) सन् 2019 मा "डॉ.गोविन्द चातक स्मृति आखर साहित्य सम्मान -2019 "(आखर समिति,श्रीनगर गढ़वाल) |
वूं कि साहित्य साधना अर काम द्यखण से यो मैसूस होन्द कि - जै सम्मान अर पच्छ्याण का श्रद्धेय बचन सिंह नेगी जी हकदार छायि वो वूं तैं अपणा राज्य अर गढ़वाळि भाषा- साहित्य विरादरी मा नि मिली | अर ! य बि आश्चर्य कि बात छ पैलि बटि ज्वा जगा (देहरादूण) साहित्यिक गतिविधियूं काे केन्द्र रायि वखि इना महान साहित्य साधक गुमनाम रैनि |
"आखर " समितिन् श्री बचन सिंह नेगी जी का भग्यान( दिवंगत )होण परैं वूं तैं सादर श्रद्धांजलि द्ये अर वीं घड़ी मा वूं का शोक -संतप्त परिवार का प्रति संवेदना व्यक्त करी | सब्या जगौं मा लॉकडाउन (कोरोना वाइरस द्वारा फैलण वळि महामारी का वजौ से) होण से फोन कांफ्रेंस का जरिया इक श्रद्धाजंली सभा को आयोजन बि पत्रकार/लेखक शीशपाल गुसाईं (देहरादून) द्वारा कर्ये ग्ये | डॉ.अरुण कुकसाल (श्रीकोट/श्रीनगर ) ,साहित्यकार श्री महावीर रवांल्टा( अराकोट), पत्रकार महिपाल सिंह नेगी (टिहरी ) ,वरिष्ठ साहित्यकार श्री नरेन्द्र कठैत (पौड़ी ) , युगवाणी के संजय कोठियाल , मैती आन्दोलन के पद्म श्री कल्याण सिंह रावत , संदीप रावत( आखर ,श्रीनगर) , श्री शूरवीर रावत (देहरादून ) , डॉ.सत्यानन्द बडोनी , श्री जय सिंह रावत , श्री चन्दन सिंह नेगी ,श्री चन्द्रदत्त सुयाल द्वारा ईं फोन कांफ्रेंस का माध्यम से स्व.बचन सिंह नेगी जी तैं श्रद्धांजलि द्यिये ग्ये |
प्रकाशित पुस्तक--
पुस्तक. - प्रकाशन वर्ष
1. रामचरित मानस (गढ़वाली अनुवाद)-- 2001
2. बाल्मीकि रामैण (गढ़वाली भाषा )-- - 2008
3. श्रीमद् भगवत गीता (गढ़वाली भाषा अनुवाद)-2002
4. ब्रह्म- सूत्र (गढ़वाली भाषा)-- 2009
5. महाभारत ग्रन्थसार (गढ़वाली भाषा)- --2007
6. गढ़वाली कविताएं ----2009
7.गढ़गौरव महाराणी कर्णावती (गढ़वाली काव्य)- 2010
8. प्रभा खंडकाव्य (हिंदी)--2001
9. गंगा का मायका (केदारखण्ड गढ़वाल- हिंदी गद्य ) --2002
10. डूबता शहर टिहरी (उपन्यास)--2004
11.आशा किरण (हिंदी काव्य) --- 2005
12. वेद संहिताएं (सामान्य परिचय) ---2010
13. मेरी कहानी --- 2009
14. गढ़वाल के इतिहास पर कुछ लेख --2010
15. देवभूमि उत्तराखण्ड -- 2014
16. भाव वीथिका (काव्य संग्रह ) --2005
17. गद्य मंजूषा (गद्य रचनाएं ) --2009
कुछ -कुछ साहित्य अब्बि बि अप्रकाशित छ |
महान साहित्य साधक स्व. बचन सिंह नेगी जी तैं शत-शत नमन अर विनम्र श्रद्धांजलि |
© संदीप रावत
(न्यू डांग,श्रीनगर गढ़वाल )
Wednesday, March 25, 2020
संदीप रावत ,न्यू डांग,श्रीनगर गढ़वाल 26/03/2020
आप सब्यूं तैं सादर प्रणाम | आजकल ज्वा "कोरोना " कि मार सैर्या दुन्या मा होणी छ ,वां से अफुतैं बि बचौण अर हौर्यूं तैं बि बचौण , बस! फिलहाल अपणा-अपणा घौर मा रौण | भयों ! सैन-सफै कु ध्यान रखण अर दगड़ा-दगड़ि सरकार द्वारा आजकल जो निर्देश दिये जाणा छन वूं तैं मनण हम सब्यूं कि जिन्दगी का वास्ता भौत जरूरी छ | माँ भगवती कि कृपा अर हम सब्यूं कि सावधानी से सब ठिक ह्वे जालु | ये टैम परैं --
" दगड्या "
दिदा ! दुन्या मा
कु अपड़ो ?
अर कैको दगड़ो ?
बस, एक दगड़्या खास
अर वा छ तेरी आस
नि होण निरास !
© संदीप रावत , न्यू डांग ,श्रीनगर गढ़वाल |
Monday, September 30, 2019
" समोदर अर पंद्यारु " ©संदीप रावत ,न्यू डांग,श्रीनगर गढ़वाल |
"समोदर अर पंद्यारु "
समोदर -
दिखेणौ बड़ो ,
पर,रूखो अर खारो |
पंद्यारु -
छ्वटु सि
अर छाळो ,
पण ! न झणि
कतगौं कि
तीस बुझालो |
सर्वाधिकार © संदीप रावत ,न्यू डांग ,श्रीनगर गढ़वाल |
Wednesday, September 4, 2019
शिक्षक दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। महान विचारक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी को शत -शत नमन🙏🙏🙏💐💐.---संदीप रावत ,न्यू डांग ,श्रीनगर गढ़वाल
आप सभी को सादर प्रणाम।🙏🙏शिक्षक दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। महान विचारक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी को शत -शत नमन🙏🙏🙏💐💐
वास्तव में शिक्षक की भूमिका पिछले काफी समय से बिल्कुल बदल गयी है। वह सिर्फ ज्ञान देने वाला नहीं रहा और आज शिक्षक आज एक महत्वपूर्ण भूमिका में है।मानवीय सन्दर्भदाता की भूमिका में तो एक शिक्षक हमेशा से ही रहा है। मैं एक शिक्षक जरूर हूँ परन्तु मैं एक 'शिष्य ' और 'बच्चा 'आजीवन रहूँगा।🙏 ' शिष्य ' और बच्चों में सीखने और कुछ करने की असीम संभावनाएं सदैव रहती हैं।
अपने इस जीवन में मैनें जिन भी व्यक्तियों , चीजों , भावों से सीखा शिक्षक दिवस के सुअवसर पर उन सभी व्यक्तियों, गुरुजनों, मित्रों एवं सुधीजनों को हृदय से नमन करता हूँ।🙏🙏हार्दिक आभार एवं हार्दिक धन्यवाद।
" गुरु "
जो नै पौध तैं
फूंजि-फांजिक चमकान्द
अर ! बाटु बतान्द ,
अपणा चेलों तैं
अफुं से बि ऐंच द्यखण चान्द ,
अर! बग्त औण परैं
अपणा सिखायां -पढ़ायां
नौन्याळों से हन्न (हरण ) चान्द
वे तैं *गुरु *ब्वल्ये जान्द |
© संदीप रावत ,न्यू डांग ,श्रीनगर गढ़वाल |
(सम्प्रति - प्रवक्ता/रा.इ.कॉ.धद्दी घण्डियाल,टि.ग.)
Tuesday, August 20, 2019
गढ़वाली रचना- " जग्वाळ "( © संदीप रावत ,न्यू डांग,श्रीनगर गढ़वाल)
" जग्वाळ "
कबि घामै चटकताळ
कबि ऐ बसग्याळ
कब्बि रडी़नि कूड़ी-पठाळ
रै ग्येनि बस ,ढाळ- पंदाळ
संग्ति रै बिकासै जग्वाळ
पर!
खड़ा ह्वे ग्येनि कतगै सवाल |
© संदीप रावत ('एक लपाग 'बटि )न्यू डांग ,श्रीनगर गढ़वाल |
गढ़वाली (सरस्वती )वंदना - द्वी आखरूं कु ज्ञान द्ये ( © संदीप रावत ,न्यू डांग ,श्रीनगर गढ़वाल)
*द्वी आखरूं कु ज्ञान द्ये (गढ़वाळि सरस्वती वंदना)*
अज्ञानै अँध्यारी रात मा द्वी आखरूं कू ज्ञान द्ये
घुली जौ रस बाच मा वीणा कि इन तू तान द्ये |
द्यू जगौ सदभाव कु ,चौतर्फां उदंकार हो
चौतर्फां उदंकार हो ,
अभाव मा तू भाव भ्वरी ,सबका जिकड्यूं प्यार हो
माँ ,सबका जिकड्यूं प्यार हो ,
विद्या-बुद्धि संग भला,विद्या बुद्धि संग भला कर्मों कु मिजान द्ये
घुली जौ रस बाच मा ,वीणा कि इन तू तान द्ये |
सुबाटोम् हिटै सदानि ,जीणा कु तू द्ये सगोर
माँ जीणा कु तू द्ये सगोर
माया-मोहक हटै जिबाळ ,मन कु खैड़-मैल सोर
माँ ,मन कु खैड़-मैल सोर
शब्दों का ब्रह्म कमल खिल्याँ ,शब्दों का ब्रह्म कमल खिल्याँ
हमुतैं इनु वरदान द्ये
घुली जौ रस बाच मा ,वीणा कि इन तू तान द्ये |
सच्चा ध्यो से हम सदानि ,कर्म अपणु करदी जौं
माँ , कर्म अपणू करदी जौं
तेरी अरज हम सदानि ,दीन भौ मा करदी रौं
माँ ,दीन भौ मा करदी रौंवु
ज्ञान को छै तू समोदर ,ज्ञान को छै तू समोदर
हमु बि जरा तू ज्ञान द्ये
घुली जौ रस बाच मा ,वीणा कि इन तू तान द्ये |
©गीतकार एवं कम्पोजर - संदीप रावत ,न्यू डांग ,श्रीनगर गढ़वाल
(प्रवक्ता ,रा.इ.कॉ. धद्दी घण्ड्यिाल ,बडियारगढ़,टि.ग. )
Saturday, August 17, 2019
Wednesday, August 14, 2019
गढ़वाली रचना - "रखड़ी कु त्योहार "(© संदीप रावत ,न्यू डांग ,श्रीनगर गढ़वाल )
" रखड़ी कु त्योहार "
रखड़ी - धागू बंधौंणौ जाणा
भैs ,बैण्यू का घार ,
कखी छन बैsणी आणी-जाणी
अपणा भैय्यूं का ध्वार |
द्यो-द्यबतौं से मंगणी बैsणी
भैय्यूं कि राजि-खुसि अर प्यार ,
भैs बि , बैण्यूं रग्सा खातिर
कन्नाs सौं-करार |
रखड़ी-धागों रूप मा द्येखा
अयूं छ भलु त्योहार ,
भै-बैण्यूं का बीच खत्येणू
संग्तिs प्यार -उल्यार |
-ऐग्ये रखड़ी कु त्योहार ,ऐग्ये रखड़ी कु त्योहार..
© संदीप रावत ,न्यू डांग ,श्रीनगर गढ़वाल |
Monday, August 12, 2019
गढ़वाली कविता - *आजौ मनखी *(© संदीप रावत ,न्यू डांग ,श्रीनगर गढ़वाल)
*आजौ मनखी*
आज,
बुबा-अपणा लड़िक बिटीक
लड़िक- ब्वे बुबा बिटीक
मनखी- परिवार बिटीक
परिवार- समाज बिटीक
अलग होणू छ ,
किलैकि !
वो
आजौ मनखी छ |
© संदीप रावत ,न्यू डांग ,श्रीनगर गढ़वाल |
Thursday, August 8, 2019
समीक्षा - 'उदरोळ 'गढ़वाली कथा संग्रह
हिन्दी की प्रतिष्ठित मासिक प्रत्रिका ' हलन्त ' के अगस्त-2019 के अंक में संदीप रावत जी की गढ़वाली कथा संग्रह "उदरोळ " की समीक्षा साहित्यकार ,विचारक व समीक्षक डॉ. चरणसिंह केदारखंडी जी द्वारा ------
**पहाड़ी लोकजीवन का साहित्यिक इंद्रधनुष है 'उदरोळ' **
- डॉ. चरणसिंह केदारखंडी
श्रीनगर गढ़वाल में बसे और पेशे से रसायन विज्ञान के शिक्षक श्री संदीप रावत गढ़वाली भाषा, समालोचना ,कहानी और काव्य विधा के उदीयमान नक्षत्र हैं। वे शिक्षा और साहित्य के साथ साथ गढ़संस्कृति की सराहनीय सेवा कर रहे हैं। युवा पीढ़ी के इस लिख्वार की प्रतिभा ने गढ़ साहित्य के वेहद प्रतिष्ठित नामों जैसे दिवंगत भगवती प्रसाद नौटियाल, व्यंग्यकार भाई नरेंद्र कठैत,डॉ अचलानंद जखमोला, भीष्म कुकरेती ,गीतकार नेगी दा, श्रीमती बीना बेंजवाल और कवि ओमप्रकाश सेमवाल को सम्मोहित किया है। उनकी अभी तक प्रकाशित रचनाओं ने बौद्धिक जगत में व्यापक सराहना पायी है, जिसने निश्चित रूप में रावत जी को बेहतर करने के लिए प्रेरित किया होगा। पहाड़ में रहकर जिन लोगों की स्वासों में पहाड़ के दुःख दर्द, भूख नांग, बेकारी और विडंबनाएं सकारात्मक संभावनाओं का स्पर्श पाती हैं, संदीप रावत उनमे से एक हैं। एक ऐसे समय में जब आर्थिक और शैक्षिक रूप से समृद्ध उत्तराखंड की नयी पीढ़ी अपनी बोली भाषा, तीज त्यौहार ,संस्कृति और सरोकारों से निरंतर दूर होती जा रही है, ऐसे में प्रोफेसर दाता राम पुरोहित और संदीप रावत होने के गहरे निहितार्थ हैं।
अपने व्यवहार और आचरण में पहाड़ी सरलता और खुशबू का एहसास लिए संदीप जी की सृजन यात्रा पहली कृति 'एक लपाग' से शुरू हुई। दूसरी कृति के रूप में उन्होंने 'गढ़वळि भाषा अर साहित्य कि विकास जात्रा' लिखी जो अब तक रचे गए गढ़वाली साहित्य की समालोचनात्मक मीमांसा है ।संदीप जी 'रंत रैबार' ,'खबर सार' ,डाँडी-कांठी सहित गढ़वाली को स्थान देने वाली हिंदी की सम्मानित पत्रिकाओं (जैसे हलंत,युगवाणी और रीजनल रिपोर्टर ) में भी खूब छपते हैं ।उनकी तीसरी रचना 'लोक का बाना' इसी तरह के प्रकाशित/अप्रकाशित गढ़वाली आलेख और निबंधों का संग्रह है।
अब रावत जी अपनी चौथी और नवीनतम कृति 'उदरोल' लेकर हमारे बीच आये हैं जो उनकी 34 गढ़वाली कथाओं का संग्रह है। उदरोल शब्द घपरोल के करीब है जिसका अर्थ है विघ्न पैदा करना, दूसरों को लड़ाना, उनके काम में खलल डालना। उदरोल्या आदमी "tall poppy syndrome" की बीमारी से ग्रसित होता है और "हो त हो नैतर भौ ही खो" के दर्शन को मानता है। मुश्किल ये है कि हम सबके भीतर एक उदरोय्या बैठा हुआ है !
चौतीस कहानियों 86 पृष्ठओं के इस लघु संग्रह को उनके आकार के बजाय आखर और सन्देश की गहराई से मापकर ही हम उसके साथ न्याय कर सकेंगे। गढ़वाली व्यंग्य और कहानी में बेहद प्रतिष्ठा हासिल कर चुके शिक्षक/साहित्यकार भाई डॉ प्रीतम अपछयाण ने इस संग्रह की सारगर्भित भूमिका लिखी है। जीवन के रंग अपनी पूरी रौ के साथ संग्रह में इस तरह समाहित हैं कि प्रीतम जी को भूमिका में लिखना पड़ा : " इ 'लघु कथा' नीन बल्कन कथा ही छन जो छवटा रूप मा छन "(पृष्ट 10).
इस कहानी संग्रह में पहाड़ी लोकजीवन का पूरा इंद्रधनुष समाया हुआ है।इसमें दर्द है(पहली कहानी 'हलचिरु') तो रूहानी प्रेम की इबारतें भी हैं(सैंदाण)। इसमें भुतानुराग है( 'चौक' कहानी ) तो मानवता के श्रेष्ठ किस्से भी पिरोये गए हैं(मनख्यात कहानी पढ़कर आप द्रवित हुए बिना नहीं रह सकेंगे).
एक लोक साहित्यकार के तौर पर संदीप जी आंचलिक भाषा के लुप्त हो चुके शब्दों, स्वादों, ध्वनियों और एहसासों का कोलाज पाठक के सामने इतने रुचिकर तरीके से रखते हैं कि उनके सम्मोहन से बच पाना असंभव लगने लगता है !
'उदरोल' की ज्यादातर कहानियां दो पृष्ठ की हैं,यानी चाय की प्याली ख़त्म करने से पहले पाठक एक कहानी पूरी पढ़ लेता है लेकिन उसके सन्देश को समझने के लिए पूरा सप्ताह भी कम है।
पहली कहानी 'हलचिरु' है जो दो भाईचारे (भयात),प्रेम और फिर दुःखद बँटवारे का तफसरा है हालाँकि कहानी उनके मिलन में संपन्न होती है इसलिए 'हलचिरु' इतना नहीं चुभता। लेखक समाज के दुःख दर्दों ,उसकी बीमारियों और विकृतियों का दृष्टा होने के साथ साथ समाज का वैचारिक अगुआ और मार्गदर्शक भी होता है। पहाड़ी समाज आज भी बहुत सारी कुरीतियों के फेर में है जिसकी वजह से भोला भाला आदमी अपनी गाढ़ी कमाई को तांत्रिकों और 'बक्या' लोगों के हवाले कर देता है। इसी आलोक में लिखी गई है 'बक्या' कहानी जो समकालीन समय के लिए आईना है। 'चौक' कहानी में पाठक पहाड़ों के लिए अभिशाप बन चुके पलायन के दर्द पर आधारित है । पूरे बीस साल बाद जब कहानी का नायक संजू अपने गांव लौटता है तो चौक की हालत देखकर अवाक् रह जाता है :
"आज वे चौक कि हालात देखिक वे कि आँखयूँ मा अंशुधरि ए ग्येनि।पैली कन आबाद रानु छो यो चौक ! ये चौक मा पैली कन घपल चौदस मचीं रांदि छै ,पर आज सब्या कुछ बदलि ग्ये छो"(पृष्ठ 32)।
संग्रह की 12वीं कहानी 'मनख्यात' यानी मानवता युद्ध के दर्शन पर आधरित है। भक्ति और अंध राष्ट्रवाद के सतही जोश के अतिरिक्त भी युद्ध की एक भयावह और ज़मीनी सच्चाई होती है । युद्ध कोई नहीं चाहता।मरना कोई नहीं चाहता : ये दुनियां एक सैनिक को भी बहुत भाती है; जान को कौड़ियों के मोल कोई नहीं बिकाना चाहता है। लेखक ने इस दिशा में सही चिंतन किया है :
"लड़े कब्बि बि कैका वास्ता भली नि रै। चाहे वो अपूणु ह्वा या पर्यावु ,लड़े त लड़े होंद जैमा सदानि ल्वे कि खतरि होंद"(41).
आदिवासी कबीलों की तरह आपस में एक दूसरे को मिटाने को आतुर आज के देशों के लिए कितना बड़ा सन्देश है ! 'सैंदाण' का अर्थ 'प्रेम की निशानी या समौण से है जिसे हम सौवेनिर भी कहते हैं। ये मोहन और मधु के रूहानी और अफलातूनी प्रेम का अफसाना है जिसमे दिवंगत पत्नी की निशानी (बेटी मोनी) की ख़ातिर नायक जीवन समर्पित कर देता है। 'रामु चकडै़त' दोस्तों के बीच होने वाले लोभ ,स्वार्थ और धोखे के प्रति सावधान करती कहानी है। वही शीर्षक कहानी 'उदरोळ ' में "मुस्या" चंट की दास्ताँ हैं जिसका काम लोगों के हँसते खेलते परिवारों में विग्रह पैदा करना है। गांव इस तरह के खुरापातियों के मुख्यालय बने हुए हैं जहाँ मामूली चीज़ों के लिए आप लोगों को उलझते देख सकते हैं...
कुल मिलाकर मुझे उदरोळ समकालीन पहाड़ी जनजीवन का बोलता आईना प्रतीत होता है।अपनी बोली भाषा और समाज संस्कृति से जुड़े हर संवेदनशील आदमी को इस किताब को पढ़ना और खरीदना चाहिए।
© समीक्षक - डॉ. चरणसिंह केदारखंडी
पुस्तक - उदरोळ ( गढ़वाली कथा संग्रह)
कथाकार - संदीप रावत
प्रकाशक - उत्कर्ष प्रकाशन ,मेरठ
नोट - पुस्तक प्राप्ति स्थान -
(1) उत्कर्ष प्रकाशन / फ्लिफ कार्ड
(2) अनूप सिंह रावत ,रावत डिजिटल ,नई दिल्ली
(3 ) विद्या बुक डिपो ,नई दिल्ली |
(4) भट्ट ब्रदर्स ,बसंत विहार ,देहरादून |
(5) ट्रांस मीडिया ,निकट रेनबो स्कूल ,श्रीनगर गढ.
(6) सरस्वती पुस्तक भंडार ,श्रीनगर गढ़वाल |