मेरी प्रकाशित पुस्तकें :-


(1) एक लपाग ( गढ़वाली कविता-गीत संग्रह)- समय साक्ष्य, (2) गढ़वाळि भाषा अर साहित्य कि विकास जात्रा (गढ़वाली भाषा साहित्य का ऐतिहासिक क्रम )-संदर्भ एवं शोधपरक पुस्तक - विन्सर प्रकाशन, (3) लोक का बाना (गढ़वाली आलेख संग्रह )- समय साक्ष्य, (4) उदरोळ ( गढ़वाली कथा संग्रह )- उत्कर्ष प्रकाशन ,मेरठ


Thursday, August 8, 2019

समीक्षा - 'उदरोळ 'गढ़वाली कथा संग्रह

          हिन्दी की प्रतिष्ठित  मासिक प्रत्रिका  ' हलन्त ' के  अगस्त-2019 के अंक में संदीप रावत जी की गढ़वाली  कथा संग्रह  "उदरोळ " की समीक्षा  साहित्यकार ,विचारक व समीक्षक डॉ. चरणसिंह केदारखंडी जी द्वारा ------

**पहाड़ी लोकजीवन का साहित्यिक इंद्रधनुष है 'उदरोळ' **
                                - डॉ. चरणसिंह केदारखंडी
   
      श्रीनगर गढ़वाल में बसे और पेशे से रसायन विज्ञान के शिक्षक श्री संदीप रावत गढ़वाली भाषा, समालोचना ,कहानी और काव्य विधा के उदीयमान नक्षत्र हैं। वे शिक्षा और साहित्य के साथ साथ गढ़संस्कृति की सराहनीय सेवा कर रहे हैं। युवा पीढ़ी के इस लिख्वार की प्रतिभा ने गढ़ साहित्य के वेहद प्रतिष्ठित नामों जैसे दिवंगत भगवती प्रसाद नौटियाल, व्यंग्यकार भाई नरेंद्र कठैत,डॉ अचलानंद जखमोला, भीष्म कुकरेती ,गीतकार नेगी दा, श्रीमती बीना बेंजवाल और कवि ओमप्रकाश सेमवाल को सम्मोहित किया है। उनकी अभी तक प्रकाशित रचनाओं ने बौद्धिक जगत में व्यापक सराहना पायी है, जिसने निश्चित रूप में रावत जी को बेहतर करने के लिए प्रेरित किया होगा। पहाड़ में रहकर जिन लोगों की स्वासों में पहाड़ के दुःख दर्द, भूख नांग, बेकारी और विडंबनाएं सकारात्मक संभावनाओं का स्पर्श पाती हैं, संदीप रावत उनमे से एक हैं। एक ऐसे समय में जब आर्थिक और शैक्षिक रूप से समृद्ध उत्तराखंड की नयी पीढ़ी अपनी बोली भाषा, तीज त्यौहार ,संस्कृति और सरोकारों से निरंतर दूर होती जा रही है, ऐसे में प्रोफेसर दाता राम पुरोहित और संदीप रावत होने के गहरे निहितार्थ हैं।
      अपने व्यवहार और आचरण में पहाड़ी सरलता और खुशबू का एहसास लिए संदीप जी की सृजन यात्रा पहली कृति 'एक लपाग' से शुरू हुई। दूसरी कृति के रूप में उन्होंने 'गढ़वळि भाषा अर साहित्य कि विकास जात्रा' लिखी जो अब तक रचे गए गढ़वाली साहित्य की समालोचनात्मक मीमांसा है ।संदीप जी 'रंत रैबार' ,'खबर सार' ,डाँडी-कांठी सहित गढ़वाली को स्थान देने वाली हिंदी की सम्मानित पत्रिकाओं (जैसे हलंत,युगवाणी और रीजनल रिपोर्टर ) में भी खूब छपते हैं ।उनकी तीसरी रचना 'लोक का बाना' इसी तरह के प्रकाशित/अप्रकाशित गढ़वाली आलेख और निबंधों का संग्रह है।
अब रावत जी अपनी चौथी और नवीनतम कृति 'उदरोल' लेकर हमारे बीच आये हैं जो उनकी 34 गढ़वाली कथाओं का संग्रह है। उदरोल शब्द घपरोल के करीब है जिसका अर्थ है विघ्न पैदा करना, दूसरों को लड़ाना, उनके काम में खलल डालना। उदरोल्या आदमी "tall poppy syndrome"  की बीमारी से ग्रसित होता है और "हो त हो नैतर भौ ही खो" के दर्शन को मानता है। मुश्किल ये है कि हम सबके भीतर एक उदरोय्या बैठा हुआ है !
      चौतीस कहानियों 86 पृष्ठओं के इस लघु संग्रह को उनके आकार के बजाय आखर और सन्देश की गहराई से मापकर ही हम उसके साथ न्याय कर सकेंगे। गढ़वाली व्यंग्य और कहानी में बेहद प्रतिष्ठा हासिल कर चुके शिक्षक/साहित्यकार भाई डॉ प्रीतम अपछयाण ने इस संग्रह की सारगर्भित भूमिका लिखी है। जीवन के रंग अपनी पूरी रौ के साथ संग्रह में इस तरह समाहित हैं कि प्रीतम जी को भूमिका में लिखना पड़ा : " इ 'लघु कथा' नीन बल्कन कथा ही छन जो छवटा रूप मा छन "(पृष्ट 10).
      इस कहानी संग्रह में पहाड़ी लोकजीवन का पूरा इंद्रधनुष समाया हुआ है।इसमें दर्द है(पहली कहानी 'हलचिरु') तो रूहानी प्रेम की इबारतें भी हैं(सैंदाण)। इसमें भुतानुराग है( 'चौक' कहानी ) तो मानवता के श्रेष्ठ किस्से भी पिरोये गए हैं(मनख्यात कहानी पढ़कर आप द्रवित हुए बिना नहीं रह सकेंगे).
     एक लोक साहित्यकार के तौर पर संदीप जी आंचलिक भाषा के लुप्त हो चुके शब्दों, स्वादों, ध्वनियों और एहसासों का कोलाज पाठक के सामने इतने रुचिकर तरीके से रखते हैं कि उनके सम्मोहन से बच पाना असंभव लगने लगता है !
'उदरोल' की ज्यादातर कहानियां दो पृष्ठ की हैं,यानी चाय की प्याली ख़त्म करने से पहले पाठक एक कहानी पूरी पढ़ लेता है लेकिन उसके सन्देश को समझने के लिए पूरा सप्ताह भी कम है।
     पहली कहानी 'हलचिरु' है जो दो भाईचारे (भयात),प्रेम और फिर दुःखद बँटवारे का तफसरा है हालाँकि कहानी उनके मिलन में संपन्न होती है इसलिए 'हलचिरु' इतना नहीं चुभता। लेखक समाज के दुःख दर्दों ,उसकी बीमारियों और विकृतियों का दृष्टा होने के साथ साथ समाज का वैचारिक अगुआ और मार्गदर्शक भी होता है। पहाड़ी समाज आज भी बहुत सारी कुरीतियों के फेर में है जिसकी वजह से भोला भाला आदमी अपनी गाढ़ी कमाई को तांत्रिकों और 'बक्या' लोगों के हवाले कर देता है। इसी आलोक में लिखी गई है 'बक्या' कहानी जो समकालीन समय के लिए आईना है। 'चौक' कहानी में पाठक पहाड़ों के लिए अभिशाप बन चुके पलायन के दर्द पर आधारित  है । पूरे बीस साल बाद जब कहानी का नायक संजू अपने गांव लौटता है तो चौक की हालत देखकर अवाक् रह जाता है :
"आज वे चौक कि हालात देखिक वे कि आँखयूँ मा अंशुधरि ए ग्येनि।पैली कन आबाद रानु छो यो चौक !  ये चौक मा पैली कन घपल चौदस मचीं रांदि छै ,पर आज सब्या कुछ बदलि ग्ये छो"(पृष्ठ 32)।
    संग्रह की 12वीं कहानी 'मनख्यात' यानी मानवता युद्ध के दर्शन पर आधरित है। भक्ति और अंध राष्ट्रवाद के सतही जोश के अतिरिक्त भी युद्ध की एक भयावह और ज़मीनी सच्चाई होती है । युद्ध कोई नहीं चाहता।मरना कोई नहीं चाहता : ये दुनियां एक सैनिक को भी बहुत भाती है; जान को कौड़ियों के मोल कोई नहीं बिकाना चाहता है। लेखक ने इस दिशा में सही चिंतन किया है :
"लड़े कब्बि बि कैका वास्ता भली नि रै। चाहे वो अपूणु ह्वा या पर्यावु ,लड़े त लड़े होंद जैमा सदानि ल्वे कि खतरि होंद"(41).
     आदिवासी कबीलों की तरह आपस में एक दूसरे को मिटाने को आतुर आज के देशों के लिए कितना बड़ा सन्देश है ! 'सैंदाण' का अर्थ 'प्रेम की निशानी या समौण से है जिसे हम सौवेनिर भी कहते हैं। ये मोहन और मधु के रूहानी और अफलातूनी प्रेम का अफसाना है जिसमे दिवंगत पत्नी की निशानी (बेटी मोनी) की ख़ातिर नायक जीवन समर्पित कर देता है। 'रामु चकडै़त' दोस्तों के बीच होने वाले लोभ ,स्वार्थ और धोखे के प्रति सावधान करती कहानी है। वही शीर्षक कहानी 'उदरोळ ' में "मुस्या" चंट की दास्ताँ हैं जिसका काम लोगों के हँसते खेलते परिवारों में विग्रह पैदा करना है। गांव इस तरह के खुरापातियों के मुख्यालय बने हुए हैं जहाँ मामूली चीज़ों के लिए आप लोगों को उलझते देख सकते हैं...
कुल मिलाकर मुझे उदरोळ समकालीन पहाड़ी जनजीवन का बोलता आईना प्रतीत होता है।अपनी बोली भाषा और समाज संस्कृति से जुड़े हर संवेदनशील आदमी को इस किताब को पढ़ना और खरीदना चाहिए।
  © समीक्षक - डॉ. चरणसिंह केदारखंडी                 
                पुस्तक - उदरोळ ( गढ़वाली कथा संग्रह)
                               कथाकार - संदीप रावत
                          प्रकाशक - उत्कर्ष प्रकाशन ,मेरठ
                             
  नोट -  पुस्तक प्राप्ति स्थान -
            (1) उत्कर्ष प्रकाशन / फ्लिफ कार्ड
      (2) अनूप सिंह रावत ,रावत डिजिटल ,नई दिल्ली
        (3 ) विद्या बुक डिपो ,नई दिल्ली  |
         (4) भट्ट ब्रदर्स ,बसंत विहार ,देहरादून  |
     (5) ट्रांस मीडिया ,निकट रेनबो स्कूल ,श्रीनगर गढ.
     (6) सरस्वती पुस्तक भंडार ,श्रीनगर गढ़वाल |
                                        

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